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रांची का एक ऐसा रेस्त्रां जहां आपको मिलेगी झारखंड की संस्कृति की झलक, यहां पत्ते पर परोसे जाते हैं व्यंजन

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द फॉलोअप टीम, रांची 
आदिवासियों के लिए पलाश और सखुआ का फूल आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना 10 साल पहले था। सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी इस फूल की अलग ही महत्ता होती है। पूजा और कई अनुष्ठान भी सखुआ के फूल के बिना अधूरी होती है। आदिवासी आज भी अपनी संस्कृति और पर्यावरण को जिंदा रखे हुए हैं। करमा पूजा हो या सांस्कृतिक नृत्य सभी में प्रकृति की झलक देखने को मिलती है। आज की दुनिया में संस्कृति का विलुप्त होना आम बात है। लेकिन रांची के कांके में आजम एम्बा नाम का एक ऐसा रेस्टूरेंट है, जहां न सिर्फ झारखंड के स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं, बल्कि इस रेस्टूरेंट में आदिवासी संस्कृति के संरक्षण का भी खास ख्याल रखा जाता है। 

व्यवसाय के साथ संस्कृति का संरक्षण
आजम एम्बा झारखंड का ऐसा पहला रेस्टूरेंट है, जहां संस्कृति को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ स्वदिष्ट भोजन भी मिलता है। झारखंड में अलग पहचान से जाने जानेवाले इस रेस्टूरेंट की संचालिका अरुणा तिर्की पिछले 20 सालों से जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के लिए काम कर रही हैं। अरुणा तिर्की बताती हैं कि हमारी लड़ाई किसी से नहीं है। हम बस अपनी संस्कृति को बचा रहे हैं। बता दें कि अरुणा का साल 1999 में एक्सआइएसएस से पढ़ाई पूरी करने के बाद संस्कृति के संरक्षण की तरफ झुकाव हो गया। साल 2016 में सूबे के मुखिया ने व्यंजन बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसमें उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला था। इस प्रथम पुरस्कार ने उन्हें रेस्टूरेंट खोलने का जज्बा दिया।  

रेस्टूरेंट खोलने के पीछे का कारण
इस रेस्टूरेंट को खोलने के पीछे का कारण अरूणा ने बताया कि फॉरेस्ट राइट एक्टिविस्ट के रूप में काम करते हुए उन्हें देश के 3 राज्यों में काम करने का मौका मिला। लोग उनसे पूछते थे कि उनके यहां का भोजन किस तरह का होता है, तो उन्हें पता ही नहीं होता था। इस सवाल ने ही उन्हें अपनी संस्कृति के लिए काम करने को प्रेरित किया। 

रेस्टूरेंट में पत्ते पर परोसे जाते हैं भोजन 
आदिवासी समाज आज भी जल, जंगल और जमीन से स्वयं को जोड़ कर रखे हुए है। पर्यावरण संरक्षण से आदिवासी समाज पूरी तरह जुड़ा हुआ है। अरुणा तिर्की का कहना है कि फास्ट फूड से शरीर को होने वाले नुकसान के प्रति सजग कर रहे हैं। अरुणा ने आदिवासी व्यंजन के उद्गम और उसमें मौजूद पोषक तत्वों पर भी शोध कर बताया कि ऐसा भोजन करने से शरीर को नुकसान नहीं होता बल्कि और स्वस्थ्य रखने में ये भोजन मदद करता है। इस रेस्टूरेंट की खासियत यह है कि सिर्फ खाना ही नहीं बल्कि यहां का तौर तरीका भी उसी संस्कृति की तरह ही की जाती है। यहा पत्ते के प्लेट में खाना परोसा जाता है। इस रेस्टूरेंट से करीब 100 लोगों की आजीविका चलती है।