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हेमंत के एक साल : पिछली सरकार में बंद हुए स्कूल बंद रहे, एक भी नया मॉडल स्कूल नहीं खुला

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सरकार की घोषणा पत्र में शिक्षा से संबंधित ऐसा कोई वादा नहीं था, जिसके पूरा न हो पाने पर सरकार को माफ किया जाए। अगले चार साल में उन वादों का पूरा होना तब संभव था, जब इस एक साल में सरकार की नीयत उन्हें पूरा करने की होती। यह देखना दिलचस्प होगा कि एक साल पूरे होने पर हेमंत शिक्षा के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं या नहीं। अगर हां, तो वे कौन सी होंगी...

विवेक आर्यन, रांची 
रघुवर की नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने राज्य भर के 4,600 स्कूलों को बंद कर दिया था। सरकार ने इसे मर्जिंग का नाम दिया था। इसी के तहत 6,466 और स्कूलों को बंद किया जाना है। हेमंत सोरेन ने सरकार में आने से पहले ही घोषणा की थी कि पिछली सरकार द्वारा बंद किये गए सभी स्कूलों को वे खोलेंगे। लेकिन सरकार बनने के एक साल बाद भी इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इसके अलावा सभी जिलों में मॉडल स्कूल खोलने की भी योजना थी, जिसे लेकर अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है। 
इन सबके लिए सरकार के पास एक वाजिब बहाना कोविड है। लेकिन यह भी सच है कि कोविड सरकारों के लिए सिर्फ चुनौती ही नहीं रही है, बल्कि नाकामियों को छुपाने का जरिया भी रही है। इस बीच यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या देश के अन्य सभी राज्य, जो कोरोना से ज्यादा प्रभावित हैं, वहां भी शिक्षा के क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ। साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि स्कूलों को खोलने के निर्देश देने का कोविड से वाकई कोई संबंध है? 

स्कूल बंद होने की स्थिति में स्कूली बच्चों को नहीं मिला कोई विकल्प 
कोविड महामारी जब आई तो राज्य सरकार ने जिम्मेवारी उठाते हुए सभी स्कूलों को बंद करने के निर्णय लिया। लेकिन स्कूल बंद होने के स्थिति में छोटे बच्चों के लिए स्कूल के अलावा क्या विकल्प दिया जाए, इसकी जिम्मेवारी सरकार ने नहीं ली। झारखंड डिजिटल लिटेरेसी के क्षेत्र में बेहद पीछे है। सभी घरों में मोबाइल नहीं है, इंटरनेट नहीं है, वो सुविधाएं नहीं है कि बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर सके। इस दिशा में सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चे पढ़ाई से दूर तो रहे ही, उनकी परवरिश में भी परिवार वालों को काफी परेशानी हुई। 

कॉलेज में जारी रहे ऑनलाइन क्लास, लेकिन नहीं मिला स्कॉलरशिप 
झारखंड में कोविड के दौरान सभी कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई जारी रही, कॉलेज के फीस भी लिए जाते रहे, लेकिन फिर भी ई-कल्याण के तहत दिया जाने वाला स्कॉलरशिप नदारद रहा। यह स्कॉलरशिप कॉलेजों में लगने वाले ट्यूशन फीस के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के छात्र-छात्राओं को दिया जाता रहा है। लेकिन इस बार राज्य के छात्रों को इस स्कॉलरशिप का फायदा नहीं मिल सका। 

गिरिडीह और साहेबगंज में मेडिकल कॉलेज पर कोई चर्चा नहीं 
हेमंत सोरेन ने अपने घोषणा पत्र में गिरिडीह और साहेबगंज में मेडिकल कॉलेज बनाने की बात की थी। इसके साथ ही चतरा, गढ़वा और गुमला में तकनीकी कॉलेज खोलने की भी घोषणा हुई थी। लेकिन पांचों में से किसी भी जिले में कोई भी योजना सतह पर नहीं नजर आ रही है और ना ही अभी तक इसपर कोई चर्चा ही हुई है। इधर स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा और प्राइवेट स्कूलों के फीस को नियंत्रित करने पर भी सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है। 

बेरोजगार युवाओं को भत्ता भी महज जुमला 
बकौल हेमंत का घोषणा पत्र ग्रैजुएट बेरोजगारों को 5 हजार और पोस्ट ग्रैजुएट बेरोजगारों को 7 हजार रुपये का भत्ता दिया जाना था। लेकिन इसपर भी सरकार ने खामोशी बना रखी है। यहां तक कि जो युवा परीक्षा पासकर नौकरी के लिए आए, उन्हें भी नौकरी नहीं मिली। धरना दे रहे युवाओं के साथ सरकार का बुरा बर्ताव रहा और शिक्षितों को रोजगार देने के मसले पर सरकार पूरी तरह फेल रही। 

राज्य में साक्षरता दर महज 67.63 फीसद है। हालांकि यह देश की साक्षरता दर से अधिक है, लेकिन देश के सबसे पीछे के राज्यों में झारखंड भी है। सरकारों के लिए यह एक चुनौती है कि राज्य में शिक्षा की स्थिति को कैसे बेहतर किया जा सके। इधर कई सालों से राज्य में स्कूलों का संख्या का नहीं बढ़ना परेशानी का सबब है। साथ ही यह स्थिति प्राइवेट स्कूलों की मनमानी का रास्ता तैयार कर रही है।