द फॉलोअप टीम, रांची:
आज यह चर्चा बहुत तेज है कि फेसबुक ने अपना नाम बदलकर मेटा कर लिया है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि आखिरकार मेटा और मेटावर्स क्या है। आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस नये नाम से क्या-क्या बदला है और क्या नहीं बदला है। बता दें कि कंपनी की सिर्फ ब्रांडिंग बदली है यानी फेसबुक कंपनी को अब मेटा (Meta) के नाम से जाना जाएगा। फेसबुक एप का नाम नहीं बदल रहा है और ना ही इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक मैसेंजर का नाम बदल रहा है।
मार्क जुकरबर्ग की नजर में क्या है मेटा
मार्क जुकरबर्ग ने मेटावर्स को एक वर्चुअल एनवायरमेंट (आभासी वातावरण) कहा है। उनके मुताबिक आप महज स्क्रीन पर देखकर एक अलग दुनिया में जा सकते हैं जहां आप लोगों से वर्चुअल रियलिटी हेडसेट, आग्युमेंट रियलिटी चश्में, स्मार्टफोन एप आदि के जरिए जुड़ सकेंगे, गेम खेल सकेंगे, शॉपिंग कर सकेंगे और सोशल मीडिया इस्तेमाल कर सकेंगे। मेटावर्स में आप आभासी रूप से वह सारे काम कर पायेंगे जो आप आमतौर पर करते हैं। जुकरबर्ग ने कहा है कि मेटावर्स के जरिए लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
मेटावर्स क्या है?
बता दें कि मेटावर्स बहुत पुराना शब्द है। 1992 में नील स्टीफेंसन ने अपने डायस्टोपियन उपन्यास "स्नो क्रैश" में इसका जिक्र किया था। उनके किताब में मेटावर्स का मतलब एक ऐसी दुनिया से था जिसमें लोग गेम में डिजिटल दुनिया वाले गैजेट जैसे हेडफोन और वर्चुअल रियलिटी की मदद से आपस में कनेक्ट होते हैं। मेटावर्स का इस्तेमाल गेमिंग के लिए भी हो रहा है। साधारण भाषा में कहें तो मेटावर्स इंटरनेट की एक ऐसी नई दुनिया है जहां लोग ना रहते हुए भी मौजूद रहेंगे, हालांकि मेटावर्स के पूरा होने में अभी लंबा वक्त लगेगा।
ब्रह्मांड से परे
विशेषज्ञों के मुताबिक शब्द "मेटावर्स" उपसर्ग "मेटा" और "वर्स" से बना है। इसका अर्थ होता है ब्रह्मांड से परे। इस शब्द का उपयोग आमतौर पर इंटरनेट के भविष्य के पुनरावृत्ति की अवधारणा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह कथित आभासी ब्रह्मांड 3D से जुड़ा हुआ है।यह साझा आभासी दुनिया को संदर्भित करता है जहां भूमि, भवन, अवतार और यहां तक कि नाम भी खरीदे और बेचे जा सकते हैं, अक्सर क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करते हुए। इन वातावरणों में, लोग दोस्तों के साथ घूम सकते हैं, इमारतों पर जा सकते हैं, सामान और सेवाएं खरीद सकते हैं और कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं।