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शक्ति वामा-7: सभी स्त्रियों के भीतर उपस्थित मां दुर्गा को हमारा प्रणाम !

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या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

स्त्री-शक्ति की उपासना के नौ-दिवसीय आयोजन की शुभकामनाएं। इस आशा के साथ कि स्त्री-शक्ति की पूजा की यह गौरवशाली परंपरा स्त्रियों के प्रति सम्मान के अपने मूल उद्देश्य से भटककर महज कर्मकांड बनकर न रह जाए।-संपादक

ध्रुव गुप्ता, पटना:

दुनिया की लगभग सभी संस्कृतियों में विपत्ति की घड़ी में देवी -देवताओं के आगे नतमस्तक होकर उनकी स्तुतियां गाने, रोने-गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने की परंपरा रही है। संयोग से कुछ बात बन गई तो दैव कृपा और बात न बनी तो अपने ही कर्मों का फल। आस्था इतनी गहरी कि बारहा निराश होकर भी देवी-देवताओं को कोई कुछ नहीं कहता। दासत्व भाव से ग्रसित हम सभ्य समाजों की तुलना में कुछ आदिवासी संस्कृतियों में देवी-देवताओं के साथ मनुष्यों के रिश्ते ज्यादा सहज, मानवीय और सम्मानजनक हैं। अफ्रीका में कुछ कबीले ऐसे भी हैं जो संकट में देवताओं से प्रार्थना तो करते हैं, लेकिन काम न होने पर बात निंदा से लेकर उन्हें अपमानित करने तक पहुंच जाती है। यह शायद देवताओं की क्षमताओं को ललकार कर अपना काम निकालने का जुगाड़ है। पता नहीं इस तरह उंगली टेढ़ी करने से घी निकलता है या नहीं, लेकिन देवताओं से संवाद-विवाद का यह अंदाज़ है मज़ेदार। मिसाल के तौर पर जेम्स बल्लार्ड की चर्चित किताब 'लॉस्ट वर्ल्डस ऑफ अफ्रीका' से उद्धृत एक अफ्रीकी लोकगीत देखिए !

हे देवताओं, तुम्हें पता है
कि तुम किसी काम के नहीं
तुममें कोई शक्ति, कोई दिव्यता नहीं
हमारा शोषण करने वाले व्यर्थ
और नाकारा लोग हो तुम
चाहकर भी तुन सब
हमारा कल्याण नहीं कर सकते !

दुर्गा को पहचानें !

शक्ति-स्वरूपा देवी के तीन स्वरूप माने गए हैं। काली देवी का सर्वथा आदिम, अनगढ़,अनियंत्रित स्वरुप है। इस रूप में वह अवांछित का विनाश करती है। पार्वती अथवा गौरी उनका नियंत्रित, गृहस्थ और ममतालु रूप है। जैसी हमारी दुनिया की ज्यादातर स्त्रियां होती हैं। दुर्गा देवी के आदिम और गृहस्थ रूपों के बीच की स्थिति है। यह परिस्थितियों के अनुरूप करूणामयी भी है और संहारक भी। अपने तीनों स्वरूपों में देवी किसी आकाश, किसी पर्वत-शिखर, किन्हीं मंदिरों अथवा मूर्तियों में नहीं रहती। ये आप स्त्रियों के भीतर ही मौजूद हैं। जैसे ईश्वर हमारे भीतर सांस लेता है। देवी के ये तमाम प्रतीक इसलिए गढ़े गए ताकि इनके बहाने स्त्रियां अपने स्वरूप और अपनी अथाह शक्तियों का साक्षात्कार कर सकें। अगर चुनना पड़े तो आप अपने लिए देवी का कौन-सा रूप चुनना चाहेंगी ? अपना काली रूप कुछ बहुत खास परिस्थितियों में ही चुनें वरना इस दुनिया के ज्यादातर पुरुषों का संहार तय है। पार्वती को तो आप सदियों से जी ही रही हैं। दुर्भाग्य है कि इस रूप में आपकी ममता और करुणा को हम पुरुषों ने आपकी कमजोरी समझ लिया है। 

आईए, इस नवरात्रि आप अपने लिए अपना दुर्गा रूप चुनें! वह दुर्गा जो एक साथ ममतालु भी हैं और संहारक भी। आप अपने भीतर की तमाम करुणा और प्रेम के बावजूद कमजोर नहीं हैं। प्रेम से बड़ी दुनिया की कोई ताकत नहीं होती। यह सृजन भी कर सकती है और आवश्यकता पड़ने पर विनाश भी। पुरुषों की पाशविक शक्ति को अपने सर पर मत चढ़ाएं ! उसे आपके पैरों के नीचे होना चाहिए। सभी स्त्रियों के भीतर उपस्थित मां दुर्गा को हमारा प्रणाम !

 

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(लेखक आईपीएस अफ़सर रहे हैं। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।