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प्रधानमंत्री के जन्‍मदिन पर विशेष: समस्याओं को कुचलकर मोदी ने किया कामयाबी का झंडा बुलंद

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डाॅ. जंग बहादुर पाण्डेय, रांची:

कितनी धीमी गति विकास कितना अदृश्य हो चलता है। 
इस महावृक्ष में एक पत्र सदियों बाद निकलता है।
धरा जब जब विकल होती, मुसीबत का समय आता।
किसी भी रूप में कोई महामानव  चला आता।

किसी को समय बड़ा बनाता है और कोई समय को बड़ा बना देता है। कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैं और कुछ लोग आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं। कुछ लोग परत-दर-परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए उर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की ओर भाग जाते हैं। 17 सितंबर 1950 को गुजरात के वड़नगर में जन्मे भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भारत भारती के ऐसे सपूत हैं जिन्होंने कभी समस्याओं से मुंह नहीं मोड़ा अपितु समस्याओं को कुचलकर उस पर कामयाबी का झंडा बुलंद किया। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से  समय को बड़ा बना दिया और वैश्विक क्षितिज पर भारत का नाम रौशन किया। आज उनका जन्मदिन है, कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं। हमारे समीक्ष्य पुरुष विश्वरूपी इस महा वृक्ष में सदियों बाद एक पत्र निकलने वाला जैसा है। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी, पर उन से चलकर कांग्रेसियों ने विदेशियों से सत्ता हस्तांतरित कर ली और देश को धोखे में रखकर उस सत्ता हस्तांतरण को आजादी प्राप्ति का जामा पहना दिया। क्योंकि जिस कूटनीति, फूटनीति, दुर्नीति के बल पर विदेशी अपना कुशासन,  दुशासन चला रहे थे, उसी नीति पर तथाकथित स्वदेशी लोगों ने शासन चलाना प्रारंभ कर दिया। इसे प्रमाणित करने के लिए हम कुछ बिंदुओं का उल्लेख करते हैंं।

 

इन बिंदुओं का उल्लेख जरूरी
1. स्वतंत्रता आंदोलन विदेशी पन के विरोध में था। विदेशीपन के स्थान पर स्वदेशी की स्थापना हमारा मूल उद्देश्य था, किंतु सत्ता हस्तांतरित होते ही हम मन मस्तिष्क से अधिक गुलाम हो गए अर्थात शारीरिक गुलामी खत्म हुई पर मानसिक गुलामी में बढ़ोतरी हो गई और हम विकासशील होने, बनने का डपोरशंखी  नारा देने लगे, जो आज भी सुनाई पड़ रहा है। 
2. आक्रमणकारी शोषक  यह जानता है कि जिस देश पर तथा उसके नागरिक पर अपना वर्चस्व कायम करना है, तो उस देश की प्राचीन संपदा नष्ट कर दी जाए और उसका अवमूल्यन कर उसे व्यर्थ की सामग्री घोषित कर दी जाए। यह देश 10 वीं सदी से ही परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ गया और विश्व के सर्वाधिक समुन्नत वैज्ञानिक,  ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण हमारे शिक्षा को अपदस्थ कर दिया गया और उसकी जगह पर अरबी-फारसी का अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था की गई। फलतः हम अपनी प्राचीन अकूत ज्ञान-संपदा से दूर होते गए और इतनी दूर हो गए कि अपनी भाषा को हम विदेशी भाषा मानने लगे। इस कड़ी में 1835 में मैकाले द्वारा चलाई गई वर्तमान शिक्षा पद्धति को देखा जाएगा, जिसने भविष्यवाणी की थी कि भारतवासी अब केवल रूप रंग चेहरे से भारतीय रहेंगे, मन मस्तिष्क, दिल-दिमाग से वे अंग्रेज बने रहेंगे। अब हम उनके हृदय पर राज्य करते रहेंगे। यह कितना सत्य है इसे बताने की आवश्यकता नहीं। 
3. जिस देश में आर्यभट्ट जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिक हुए हो, वराह मिहिर जैस गणितज्ञ हुए हो, कालिदास, बाणभट्ट सूर,तुलसी जायसी कबीर जैसै साहित्यकार हुए हो, पाणिनि, पतंजलि, कात्यायन, वररूचि, नागेश भट्ट जैसे भाषा वैज्ञानिक, भरत, भामह, दण्डी, वामन, मम्मट, विश्वनाथ, अभिनवगुप्त, पंडितराज जगन्नाथ जैसा काव्यशास्त्री,  चाणक्य जैसे अर्थशास्त्री, तथा अनेक ऋषि-महर्षि, वेद-वेदांग के व्याख्याता हुए हों, वही आज दुर्नीति के कारण पीछे पड़ा हुआ है। नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसा विश्वविख्यात अध्ययन-अध्यापन केंद्र रहे हों, वही दुर्गति पूर्ण है। इसका एकमात्र कारण है स्वदेशीपन का सर्वथा अभाव। 
4. आज 21वीं  सदी में हमारी आंखों के ऊपर जो काली पट्टी बंधी है, उसे खोलने की कोशिश एक आदमी ने अपने समर्थकों के साथ की। सत्वृत्ति वालों की आंखों से उक्त पट्टी जल्द निकल गई और वे उसके साथ हो गए, पर असत्य वृत्ति वाले लोग इसे सहन नहीं कर पा रहे हैं। वे समाज के विभिन्न खेमे में विभक्त हैं। हर व्यक्ति अपने आंतरिक मनोवृति, वंशानुक्रम के वृति को जल्द छोड़ना नहीं चाहता दुर्योधन ने कहा था:
जानामि धर्म न च में प्रवृत्ति:।
जानामि अधर्म न च में निवृत्ति:।।

       

 

ठीक इसी तरह से असत्य वृत्ति वाले लोग जानते हैं कि हम गलत करते हैं पर वे उसे छोड़ नहीं सकते। हत्यारा, लूटेरा, कुकर्मी जब पहली बार गलत काम करता है, तब वह एकांत में बैठकर खूब रोता है और कसम खाता है कि भविष्य में ऐसा नहीं करेगा। वस्तुत: उसकी स्थिति शराबी की है। यही कारण है कि हमारे युगपुरुष तथा विकास पुरुष को विभिन्न खेमे के लोगों ने अपने स्वभाव के अनुरूप देखा है। तुलसीदास ने कहा है : जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।  वह पूर्णत: चरितार्थ हो रही है। तुलसी के राम को लोगों ने अपने स्वभाव के अनुरूप अनुभव किया था, किसी ने अपनी भावना व्यक्त नहीं की थी। आज लोग अपने स्वभावानुरूप उसे अनुभव करते हैं और वचसा उसको प्रकाशित करते हैं। राम को देखने वालों तथा श्री मोदी को देखने वालों में यही अंतर है। विविध रूप इस प्रकार हैं:

1. हत्यारा समुदाय के लोगों ने श्री मोदी को हत्यारा कहा, किंतु विवेच्य व्यक्ति स्थितप्रज्ञ पुरुष की तरह विचलित नहीं हुआ। इसका कुप्रभाव न तो उसके मन पर पड़ा न मस्तिष्क पर। वह विकास पथ की खोज में आगे की तरफ बढ़ता रहा। 
 

2. सैकड़ों खून करने-करवाने वाले ने उसे खूनी कहा, वह युगपुरुष बहरा बना रहा और चरैवेति..... चरैवेति...... उत्तिष्ठ, जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत इत्यादि का नारा बुलंद करते हुए समस्त मानव जाति को जगाता रहा, आगे की ओर बढ़ने तथा विकास करने का पाठ पढ़ाता रहा। 
 

3. कसाई कुलोदभवों ने उसे कसाई के रूप में देखा ,वह क्षण मात्र के लिए भी विचलित नहीं हुआ। वह सबके हित की बात करता रहा और भाईचारा का मंत्र पढ़ाता रहा। 
 

4. उससे क्रुद्ध होकर अपने आपे को खोने के लिए असत्य  वृत्ति खेमे के लोगों ने विभिन्न प्रकार के कुवाक्यों, असंसदीय भाषा का प्रयोग किया, पर उसके संस्कार ने उसे संयत बनाकर रखा और वह स्थित प्रज्ञ बना रहा वस्तुतः वह षडरिपु मर्दन महामानव बना रहा। उसके ऊपर क्षुद्र बेजान और अर्थहीन वाक्यांशों का प्रभाव नहीं पड़ा। वह जो है ,उसे जो जैसा समझे, समझता रहे। 
 

5. राक्षस वंशियों ने उसे अपने कुल वंश परंपरा का मानकर राक्षस कहा, उसने इस तरह के बयान पर ध्यान नहीं दिया ,वह विकास हेतु अपनी कार्यशैली को हर व्यक्ति तक पहुंचाता रहा और प्रगति पथ पर प्रतिपल चलता रहा। उसकी मान्यता है कि असंसदीय भाषा, अपशब्द हमारे देह से चिपकते  नहीं ,बल्कि इस तरह की भाषा का प्रयोग करने वालों का चरित्र प्रकाश में आता है इसलिए इनके अभिधेयार्थ से  विचलित नहीं होना चाहिए। 
 

6. पशु खदान में जन्म लेने वाले अभद्र लोगों ने उसे कुत्ता जानवर कहा और बांधकर कोड़े से पीटने की बात की इस बात से भी हमारा युगपुरुष विकास पुरुष अपने उद्देश्य से विमुख नहीं हुआ, वह केवल सुशासन तथा सबका विकास सबका साथ और सबका विश्वास   की बात करता हुआ अग्रसर होता रहा है, ऐसे ही स्थितप्रज्ञ पुरुष को देखकर यह लोकोक्ति  प्रचलित हुई होगी कि- हाथी चले बाजार, कुत्ते भोंके हजार। इस प्रकार हर व्यक्ति अपने चरित्र कुल तथा स्वभाव के अनुरूप अपने खेमे में लाने की चेष्टा करता रहा, पर वह किसी सीमा में आबद्ध नहीं हो सका यही कारण है कि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता।

 


 

7. आज 20 वीं शताब्दी समाप्त हो गई है और हमारे कुछ तथाकथित उच्च वंशी लोग और मोम का चोला पहनकर 21वी सदी में भी अछूत की बात मानते हैं। हमारे इस सदी का महामानव विकास पुरुष ने महामना मदन मोहन मालवीय जी की काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर स्थित मूर्ति के ऊपर अपने असीम श्रद्धा के कारण पुष्पांजलि दी तथा माला पहनाकर आशीर्वाद लिया। उच्च वंशीय  मोम का चोंगा पहनकर खड़े लोगों ने गंगाजल दूध से उक्त मूर्ति को स्नान कराकर उसे पवित्र करने का नाटक किया अवश्य ,पर उसका प्रभाव उल्टा हुआ क्योंकि शुद्ध पवित्र महामना मालवीय जी की मूर्ति ने उन्हें अभिशप्त किया जिससे वे औंधे मुंह गिरे और उनकी नाक नष्ट भ्रष्ट हो गई जिससे उनका भविष्य अंधकाराच्छन्  हो गया ,वस्तुतः  भगवान भक्तों को अच्छी तरह से पहचानते हैं मालवीय जी की मूर्ति ने हमारे विकास पुरुष की स्तुति पूजा ग्रहण कर उन्हें  अभूतपूर्व आशीर्वाद दिया। 
 

8. सांप्रदायिकता का खोखला प्रचार 1947 से हो रहा है और भारतीय जनता को धोखे में रखकर अपनी अपनी रोटी सेकने में लोग लगे हुए हैं। उसको ध्वस्त करते हुए नरेंद्र मोदी विकास के लिए आगे बढ़ते गए। अधिकांश लोगों ने मान लिया है कि सांप्रदायिकता धोखे के पुतले के अतिरिक्त कुछ नहीं, किसी देश का विकास एक खेमे से नहीं हो सकता जब तक देश का हर व्यक्ति विकास का हिस्सा नहीं होगा, तब तक विकास नहीं माना जाएगा। सर्वधर्म समभाव, बहुजन हिताय की  भाव धारा ही  विकास का मूल मंत्र है। श्री मोदी इसी राह पर चलने वाले पुरुष हैं वे एकांगी विचार वाले व्यक्ति नहीं हैं। 


9.  हिंदू मुस्लमान का भय दिखा कर 1947 से मुसलमान के मतों को अपने पक्ष में करने की चेष्टा होती रही और उसमें बहुत हद तक कुछ दलों को लाभ भी मिला है, पर इस बार का उक्त भय बहुत कुछ कम हुआ है अवश्य,पर इसका भय पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। वस्तुतः इस दिशा में मुस्लिम बुद्धि जीवियों को शोधपरक कार्य करना चाहिए और प्रमाण के साथ यह निष्कर्ष देश के सामने रखना चाहिए कि कौन अपने क्षणिक तथाकथित लाभ के लिए इस तरह के दुर्भाव को प्रचारित करता है।वस्तुतः विकास पुरुष, राष्ट भक्त, राष्ट्र निर्माता के समक्ष ना तो कोई हिंदू रहता है ना कोई मुसलमान, उसके समक्ष केवल राष्ट्र का नागरिक रहता है।राष्ट्र का हर नागरिक एक समान है। हमारे विवेचन का उद्देश्य है कि हम सत असत वृत्ति वाले व्यक्ति को पहचाने और  सत्य पथ पर चलने वाले का साथ दें। अस्तु,  विवेचित तत्वों के आधार पर नरेंद्र मोदी 21 वी सदी के पुरोधा स्थितप्रज्ञ विकास पुरुष निर्विवाद रूप से सिद्ध होते हैं परम पिता परमेश्वर से हमारी प्रार्थना है कि 
बढ़े आप मंगलमय पथ पर रहे तत्व अनुकूल सभी।
आगे बढ़ते पीछे को भी रहें देखते कभी-कभी।।
जय हिंद, जय हिंदी, जय मोदी!

 

(लेखक हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।