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कहीं आप भी हिंदुत्व और हिन्दू धर्म को एक तो नहीं समझते! इसे पढ़ियेगा

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रंगनाथ सिंह, दिल्‍ली:

हाल ही में देखा कि एक पत्रकार हिंदुत्व (Hindutva) और हिन्दू धर्म (Hinduism) को एक बता रहे थे। सरल शब्दों में कहें तो हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है। हिन्दू धर्म कई धार्मिक परम्पराओं का समुच्चय (या सुपरसेट) है। भारत में बहुत बड़ी आबादी ऐसी है जो हिन्दू धर्म का पालन करती है लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा से सहमति नहीं रखती। राजनीतिक दलों में ही कई बड़े दलों के नेता हिन्दू हैं लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं हैं। ममता बनर्जी धार्मिक हिन्दू हैं। अखिलेश यादव धार्मिक हिन्दू हैं। तेजस्वी यादव धार्मिक हिन्दू हैं। यह सूची एक किलोमीटर लम्बी बनायी जा सकती है। लेकिन इतनी लम्बी नहीं बनायी जा सकती कि प्रौढ़ हो चुके पत्रकारों का शैक्षणिक पिछड़ापन दूर किया जा सके। कुछ दिन पहले यह भी पढ़ा कि आदिवासी हिन्दू नहीं होते! चलिए मान लिया लेकिन यह कभी नहीं बताया गया कि आदिवासी ईसाई भी नहीं होते! आदिवासी वनवासी हैं। प्रकृति पूजक हैं। आदिवासी वैसे ही प्रकृति पूजक हैं जैसे बाकी भारतीय समाज है। पेड़ की पूजा, जीव की पूजा, नदी, सूर्य-चंद्र, नक्षत्र, तालाब, झरने, पत्थर के ब्रह्म और डीह की पूजा यही सब अलग-अलग रूप में हर भारतीय धर्म में है।

'हिन्दू' पहचान गैरों की दी हुई है। इसका शुरुआती मतलबयही था कि जो इस भूभाग में रहता है वो हिन्दू है। हिन्द के निवासी हिन्दू या हिन्दी कहे गये।आदिवासियों की क्या बात की जाए, किसी जमाने में भारतीय मुसलमानों को हिन्दू मुसलमान या हिन्दी मुसलमान कहकर उनका जिक्र किया गया है। इस भूभाग में जब दो ऐसे मजहब आ गये जो अपने बुनियादी चरित्र में सियासी थे तो हिन्दू की नई परिभाषा यह हुई कि जो ईसाई और मुसलमान नहीं है वो हिन्दू है। फिर कुछ प्रभावशाली ब्राह्मण-सवर्ण विचारकों की कृपा से हिन्दू का अर्थ वैष्णव या अद्वैत वेदान्तियों से लगाया जाने लगा। सदी दर सदी हिन्दू का अर्थ संकुचित होता गया है। आज स्थिति यह है कि शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोग हिन्दू मतलब हिन्दुत्ववादी पार्टी के सदस्यों तक सीमित कर देना चाह रहे हैं। लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि यह पहचान हजार साल में बनी है और इसे जर्जर होने में भी लम्बा वक्त लगेगा।

शुरुआती दौर में इस भूभाग के लोग उसी अर्थ में हिन्दू कहे गये जैसे आज हम भारतीय कहे जाते हैं। वह भूभाग अब तीन भागों में बँट चुका है। आज हमारी भौगौलिक पहचान भारतीय कहने से जाहिर होती है और हिन्दू एक धार्मिक पहचान भर है। किसी अशिक्षित वनवासी आदिवासी से पूछा जाए कि क्या वो भारतीय है, तो उसका जवाब क्या होगा? मेरे ख्याल से समय के साथ हमें हिन्दू पहचान की उतनी जरूरत नहीं होगी। भारतीय समाज ने लम्बे समय तक खुद को जाति के रूप में पहचाना है। पिछले कुछ दशकों में जिस तरह जातीय पहचान फिर से उभरी है उसे देखते हुए लगता है कि जातीय समाज का नए समीकरण के तहत आपसी-संयोजन होगा। जिस राष्ट्रीयता की भावना के उभार के लिए शुरू में हिन्दू पहचान का इस्तेमाल बढ़ा वह समय के साथ भारतीय पहचान में विलीन हो जाएगी। राष्ट्रीय पहचान के सशक्त होने पर धार्मिक पहचान की महत्ता गौण हो जाएगी। आज भी जो 'भारत माता की जय' नहीं कहना चाहते वो 'जय हिन्द' कहने में संकोच नहीं करते। जिस तरह कभी हिन्दू मुसलमान कहे गये उसी तरह आज भारतीय ईसाई, भारतीय मुसलमान और भारतीय हिन्दू या भारतीय वैष्णव या भारतीय ब्राह्मण कहे जाएँगे। किसी को यह सुनकर या कहकर बुरा नहीं लगेगा। अंग्रेजों ने शुरुआत में हिन्दू का प्रयोग कमतर दिखाने के आशय से ही किया है। ब्राह्मणों-ठाकुरों ने उनपर थोपी गयी पहचान को अपनाकर अपने हक में इस्तेमाल करना शुरू किया। शुरू में ज्यादातर ब्राह्मणों ने हिन्दू पहचान की छतरी के तले जनसमुदाय को लामबन्द किया।  कुछ उसी तरह जैसे आज कुछ जातियाँ ओबीसी को अपने पीछे लामबन्द करने का प्रयास करती हैं। इन बड़ी छतरियों की जरूरत समय के साथ खत्म हो जाएगी। इनकी जगह भारतीयता की बड़ी छतरी ले लेगी।

 

हिन्दू की छतरी से धार्मिक आस्था जुड़ चुकी है तो उसकी उम्र लम्बी हो गयी है। ओबीसी की छतरी तो आरक्षण भर बची है। उसके इतर सामाजिक जागरूकता और शिक्षा का स्तर बढ़ने के साथ ही हर जाति अपनी पहचान लेकर सामने आएगी। भारतीय राज्य से अपना हक माँगेगी। जिस तरह बहुत सारे भारतीय ठाकुर-ब्राह्मण के नेतृत्व में हिन्दू छतरी के नीचे संतुष्ट नहीं हैं। उसी तरह ओबीसी, दलित या आदिवासी की छतरी के नीचे उनके तहत आनी वाली सारी जातियाँ संतुष्ट नहीं रहेंगी। यूपी में चुनाव के मद्देनजर ब्राह्मणों को लेकर जिस तरह का बयानिया सामने आ रहा है वह इसी ओर इशारा कर रहा है कि आने वाले समय में हर जाति स्वतंत्र तोलमोल करेगी। यहाँ यह कहना भी जरूरी है कि भारत में मुसलमान की स्थिति भी हिन्दू से ज्यादा अलग नहीं है। ग्रामीण इलाकों में अक्सर लोग कहते हैं कि जात के मियाँ हैं यानी उनकी पहचान धर्म के बजाय जाति के रूप में की जाती है। मियाँ में भी जुलाहा, खोजा, चूड़ीहारा, नाई, पठान इत्यादि पाये जाते हैं। मुसलमान की छतरी तभी तक तनी है जब तक मुस्लिम-विरोधी बयानबाजियाँ जारी हैं। मुसलमान जब थोड़ा सुरक्षित महसूस करने लगेंगे तो वो भी भारतीयता की बड़ी छतरी के नीचा  शिया, सु्न्नी, अंसार, पठान, जाट, गूर्जर  की जातीय पहचान के साथ सियासी तोलमोल करते नजर आएँगे।

(रंगनाथ सिंह हिंदी के युवा लेखक-पत्रकार हैं। ब्‍लॉग के दौर में उनका ब्‍लॉग बना रहे बनारस बहुत चर्चित रहा है। बीबीसी, जनसत्‍ता आदि के लिए लिखने के बाद संप्रति एक डिजिटल मंच का संपादन। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।