मनोहर महाजन, मुम्बई:
मैट्रिक पास करने के बाद एक छात्र ने स्कूल प्रिंसिपल से पूछा, भविष्य में क्या करें? प्रिंसिपल ने कहा: "तुम्हारी आवाज़ के अनुसार मुझे लगता है कि तुम्हें 'नेता' बनना चाहिए या 'अभिनेता' बनना चाहिये।" यही लड़का आगे चलकर फिल्मी हस्ती बना। नाम सोहराब मोदी (2 नवंबर 1897-28 जनवरी 1984 )। हिंदी सिनेमा में सोहराब मोदी "लौह पुरुष" के नाम से मशहूर थे। यही नहीं उनकी आवाज़ भी इस कदर बुलंद थी कि उस दौर के नेत्रहीन भी उनकी शेर जैसी दहाड़ में संवाद सुनने के लिए उनकी फिल्में देखने सिनेमाघरों में जाते थे। पारसी होने के बावजूद सोहराब मोदी जिस शैली में हिंदी और उर्दू बोलते थे, दर्शक अथवा श्रोता भौचक्के होकर रह जाते थे और उनके हर संवाद पर तालियाँ बजाते थे। चूंकि उनके पिता उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक सरकारी अधिकारी थे इसलिये उनका बचपन रामपुर की वादियों मे गुज़रा था और वहीं से उन्होंने फर्राटेदार उर्दू बोलना सीखी।

थियेटर करने के बाद जब वह मुंबई आए तो फिल्मों की ओर मुड़ गए। चूंकि वह अपने मन माफ़िक फिल्में बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने फिल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन की स्थापना की। अपने इसी बैनर तले उन्होंने "पुकार" बनाई। यह फिल्म मुगल बादशाह जहांगीर के पौराणिक न्याय के बारे में बताती है कि जहांगीर तब खुद को असहाय पाता है जब एक धोबिन के पति की हत्या का आरोप खुद उनकी बेगम नूरजहां पर लगता है जिससे वो बेपनाह मोहब्बत करते हैं। ये फ़िल्म आज भी एक क्लासिक का दर्जा रखती है। कहते हैं कि सोहराब मोदी पुकार का 'रीमेक' बनाना चाहते थे और दिलीप कुमार को जहांगीर के रोल के लिए साइन करना चाहते थे, लेकिन दिलीप नहीं चाहते थे कि उनकी तुलना पुकार के अभिनेता चंद्रमोहन की बेहतरीन अदाकारी से हो जिसने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया था।

सोहराब मोदी की ख़ासियत रही कि उनके द्वारा हर तरह की सामाजिक, धार्मिक, सुधारवादी और ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया गया। प्राय: हरेक तरह के चरित्र को उन्होंने बेहद संजीदगी से जिया। अपने पांच दशक के फ़िल्मी-जीवन में 38 फिल्मों का निर्माण... 27 फिल्मों का निर्देशन और.. .31 फिल्मों में अभिनय करने वाले सोहराब को भारतीय सिनेमा की 'हीरक जयंती' के (75 वर्ष) के इतिहास का साक्षी एवं फिल्मों की 'शुरुआती दौर' का सशक्त चश्मदीद गवाह माना जा सकता है।

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अपने ज़माने के मशहूर पटकथा-संवाद लेखक अली रजा ने एक बार बड़े दुख के साथ साफ़ तौर पर कहा था: "..फिल्म इंडस्ट्री ने सोहराब मोदी के साथ न्याय नहीं किया। उन्हें फ़िल्म-इतिहास में जितनी जगह मिलनी चाहिए थी नहीं मिली...।" अमूमन हर पुराने फिल्मकार मानते है कि अगर कभी ईमानदारी से भारतीय फिल्म का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें एक पूरा अध्याय सोहराब मोदी का होगा। आज उनकी 124वीं सालगिरह पर हम समस्त सिने-प्रेमी - फ़िल्म-उद्योग में उनके योगदान को सलाम करते हैं।

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।
