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कुमार को देवकी ने दिया अपना नाम - ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद,ए मोहब्बत ज़िंदाबाद!!

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मनोहर महाजन, मुंबई:

ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद,ए मोहब्बत ज़िंदाबाद!! फ़िल्म 'मुग़ल-ए आज़म' में "100 पीस ऑर्केस्ट्रा" पर मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में गूंजते नग़मे को पर्दे पर इतने प्रभावी ढंग से साकार करने वाला फ़नकार कौन था ? जानते हैं आप? शायद जानते हों, शायद न भी जानते हों?? पर मैं उस नग़मे और उससे उभरे ड्रामाई मंज़र और उस कलाकार को आज तक भूल नहीं पाया। आइये उस जाने-पहचाने से चेहरे वाले "अनजान कलाकार" के बारे में जानने का प्रयास करें जिनकी आज 115 वीं सालगिरह होती, अगर वो ज़िंदा होते। इस कलाकार  का जन्म लखनऊ-यूपी के सैयदों के प्रतिष्ठित परिवार में 23 सितम्बर 1906 को हुआ था। उनका असली नाम "सैयद हसन अली ज़ैदी' था। उनका परिवार उन्हें मिज्जन' मियां' कहकर बुलाता था। वह आकर्षक व्यक्तित्व वाले एक सुंदर और लम्बे व्यक्ति थे और शुरू से ही सिनेमा में शामिल होने के इच्छुक थे। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए वे कलकत्ता आ गए और 'न्यू थिएटर्स' में शामिल हो गए। 'सुबह का सितारा'(1932) और 'ज़िंदा लाश'(1932) में 'साइड रोल' करने के बाद, 1933 में फ़िल्म 'पूरन भगत' में वे नायक बने। कुन्दनलाल  सहगल भी फ़िल्म में थे। फ़िल्म रिलीज़ होने वाली थी, तभी अचानक कलकत्ता में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। 'न्यू थिएटर मैनेजमेंट' को कलकत्ता के तनावपूर्ण माहौल में 'पूरन भगत' के नायक के मुस्लिम नाम की घोषणा करना मुश्किल लगा। फिल्म के निर्देशक 'कुमार देवकी बोस' थे, जो एक शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने एक निर्णय लिया और मिज्जन से कहा, "आज से, मैं तुम्हें अपने नाम का एक हिस्सा दे रहा हूं। अब तुम 'कुमार' बन जाओगे। "इस निर्णय और नाम परिवर्तन से फ़िल्म रिलीज़ की समस्या हल हो गई और इस तरह उनका नाम 'कुमार' हो गया। उसके बाद वास्तव में, देबकी बोस ने अपने जीवन में फिर कभी 'कुमार' नाम का प्रयोग नहीं किया!

 

 

'यहुदी की लड़की'(1933) करने के बाद कुमार बंबई आ गए। पहले उन्होंने सागर (3 फिल्में), इम्पीरियल (2 फिल्में) में काम किया और फिर रंजीत स्टूडियोज से जुड़ गए. कुमार ने रंजीत में कई फिल्में कीं, लेकिन 1942 में उन्हें रंजीत से हटा दिया गया। उसी समय, उनके दोस्त, चंद्रमोहन ने भी पुकार (1939) के ब्लॉकबस्टर होने के बावजूद, 'मिनर्वा मूवीटोन' छोड़ दिया कारण? कारण था सोहराब मोदी के एक वादे के बावजूद उनका वेतन नहीं बढ़ाया गया था। दोनों ने अपनी कंपनी शुरू करने का फैसला किया और 16-  मार्च 1942, में 'सिल्वर फिल्म कंपनी' लॉन्च की ग। इसकी पहली फिल्म झंकार(1942 थी)।  इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण किया :भलाई-(1943), बड़े नवाब साब-(1944), देवर-(1946), नसीब-(1945), धुन-(1953) और बहाना-(1960) आदि। कुमार ने इन फिल्मों में काम ही नहीं किया, फ़िल्म 'धुन 'और 'बहाना' का निर्देशन भी किया।

 

कुमार ने एक अन्य अभिनेत्री प्रमिला से शादी की, जो वास्तव में एक यहूदी थी और जिसका असली नाम 'एस्तेर विलियम्स' था। 1947 में प्रमिला भारत की 'पहली मिस इंडिया' बनीं। उन्हें एक बेटा और एक बेटी नक़ी जहान हुई जो ठीक 20 साल बाद 1967 में अपनी मां की तरह 'मिस इंडिया' बनीं। नक़ी ने फ़िल्म "आख़री ख़त" में राजेश खन्ना के साथ नायिका के रूप में काम किया। बाद में उन्होंने बॉम्बे के कामदार के व्यवसायी परिवार में शादी कर ली और 'श्रीमती नंदिनी कामदार' बन गईं।  कुमार के पहले की शादी से 3 बेटे थे। विभाजन के बाद उनकी पहली पत्नी और बच्चे पाकिस्तान चले गए। कुमार ने अपनी स्वयम की कंपनी कुमार स्टूडियो के तहत फ़िल्म आप-बीती-(1948) का निर्माण और निर्देशन किया.। फिर 'शमा प्रोडक्शंस' के तहत, उन्होंने 'नेहले पे देहला'  'धूम धाम' और 'दिलबर' बनाई। बाद में 'आर्टिस्ट यूनाइटेड फिल्म्स' के तहत "बादल और बिजली" और "जंगल किंग" बनाई. इन फिल्मों में वो कोई न कोई  किरदार भी निभाते रहे.कुमार ने 1932 से 1963 तक बतौर अभिनेता 73 फिल्मों में काम किया।

 

1943 की फ़िल्म 'नजमा' से लेकर कुमार ने 'भीष्म प्रतिज्ञा','दायरा', 'महल', 'श्री 420', 'खिलाड़ी','मालिक', 'बैजू बावरा', 'याहुदी की लड़की' जैसी फिल्मों में केवल चरित्र भूमिकाएँ कीं। फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म में उनकी 'संगतराश' (मूर्तिकार) के रूप में उनकी एक यादगार भूमिका थी. फ़िल्म का 'थीम सांग' -"ज़िंदाबाद,ज़िंदाबाद ए मोहब्बत ज़िंदाबाद" उन पर ही चित्रित गया था। 1963 में, कुमार पाकिस्तान चले गए। भारत मे उनकी आख़री रिलिज़्ड फिल्म थी: 'रात और दिन' (1967)। उन्होंने फ़ौरन से पेशतर 'पाकिस्तानी फिल्मों' में काम करना शुरू कर दिया। कुमार ने 22 पाकिस्तानी फिल्मों में काम किया, जिनमें 'हेड कांस्टेबल', 'आज़ाद', 'शबनम', 'नीला', सैक़ा, 'सजदा',' हम दोनो', 'नदिया के पार', इक मुसाफ़िर इक हसीना', 'बालम' आदि शामिल हैं।वहां उन्होंने 1 सुपरहिट और 3 हिट फिल्में दीं.।एक दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने वहां अपने मूल मुस्लिम नाम का इस्तेमाल किए बिना केवल "कुमार" के नाम पर काम करना जारी रखा। बाद में वह  अमेरिका में बस गए और वहीं 4 जून 1982 को उनका देहांत हो गया। विडम्बना ही तो है कि हिन्दी फिल्म-उद्योग के प्रारम्भिक दौर स्तम्भों में से एक 'मिज्जन मियां' उर्फ़ कुमार और उनके 'योगदान' को हमने बहुत जल्द भुला दिया!!

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।