प्रेम कुमार, बेगूसराय:
विधानसभा में बढ़ते चौतरफा दबाव के कारण मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने 1973 में रामचन्द्र खां को बेगूसराय का एसपी बना कर विशेष निर्देश के साथ भेजा कि कामदेव सिंह पर कठोर रुख अपनाया जाए। रामचन्द्र खां ने 1973 से 77 के बीच के अपने कार्यकाल में उनके खिलाफ धुआँधार कार्रवाई कर सचमुच कुछ समय के लिए कामदेव सिंह को पूरी तरह बैकफुट पर ला दिया था। कहते हैं इसी दौरान बेगूसराय से हटकर उन्होंने नेपाल में अपना ठिकाना बना लिया। ऐसा पहली बार हुआ था कि उन्हें बेगूसराय छोड़ना पड़ा नहीं तो हमेशा वो अपने गंगा दियारे में बसे गांव से ही राज चलाने के अभ्यस्त थे। लेकिन नेपाल में जा कर भी उन्होंने अपनी सारी गतिविधियों को न सिर्फ बदस्तूर जारी रखा बल्कि उसे बढ़ाया भी था। बिहार नेपाल बॉर्डर के आसपास उनका एक विशाल घर भी था जो कहा जाता है आज भी है।
अचानक कामदेव सिंह नेपाल में पकड़ लिए गए
इसी बीच अचानक मार्च 1974 में कामदेव सिंह नेपाल के राजबिराज में पकड़े गए। ये खबर जंगल की आग की तरह फैली। तत्कालीन बेगूसराय के एसपी रामचन्द्र खां ने सरकारी स्तर पर खूब लिखा-पढ़ी की और सरकार को उनके प्रत्यर्पण के लिए जोर लगाने को कई चिठ्ठियाँ लिखीं। साथ ही अपने स्तर जो हो सकता था काफी तेजी से वो सब किया लेकिन इस दौरान सरकारी प्रयास होते भर तो नजर आ रहे थे लेकिन नतीजा कुछ निकल नहीं रहा था। रामचन्द्र खां इस दरम्यान इसी सिलसिले में पांच या छह बार नेपाल भी गए। लेकिन बताया जाता है कि नेपाल सरकार ने आईडेंटिफिकेशन परेड के समय कामदेव सिंह की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को खड़ा कर दिया और वहीं सारा मामला ताश के महल की तरह भरभरा कर गिर गया।
लेकिन भारत लाने की कवायद धरी रह गई
कहा जाता है कि कामदेव सिंह के प्रत्यर्पण के मसले पर केंद्र सरकार द्वारा रहस्यमयी तरीके से सुस्ती दिखाई जा रही थी फलतः कामदेव सिंह हाथ नहीं आ पाए और एसपी साहब की सारी कवायद बेकार हो गई। जबकि वास्तविकता ये बताई जाती है कि उस दौरान नेपाल की राजतंत्रात्मक सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन जोर पकड़े हुए था। ऐसे में अपने कब्जे में आए कामदेव सिंह के साथ नेपाल सरकार ने एक डील की। इस डील के अनुसार तत्कालीन नेपाल में सत्तासीन राजतांत्रिक सरकार के खिलाफ खूब सक्रिय एक बड़े कम्युनिस्ट क्रांतिकारी की हत्या का जिम्मा कामदेव सिंह को सौंपा गया।
चमत्कारिक ढंग से रामचन्द्र एसपी पद से हटा दिए गए
नेपाल नरेश से डील तय होने के बाद तीसरे दिन ही उस नक्सल क्रांतिकारी को कामदेव सिंह ने मार दिया और उसकी लाश बिहार नेपाल के सीमावर्ती इलाके के गांव में पाई गई। बस इसी डील के मुताबिक नेपाल सरकार ने कामदेव सिंह को भारत के कानूनी पंजों से बचा कर आजाद कर दिया और रामचन्द्र खां हाथ मलते रह गए। यही था कामदेव सिंह के होने का चमत्कार। रामचन्द्र खां का बेगूसराय में चार साल का कार्यकाल भले ही बहुत जबरदस्त रहा लेकिन लक्ष्य से बहुत दूर रह गया था। 1977 में चमत्कारिक तरीके से रामचन्द्र खाँ बेगूसराय के एसपी पद से हटा दिए गए।
और कामदेव सिंह ने जोरदार तरीके से की बेगूसराय वापसी
और बेगूसराय के मालिक, कम्पनी उर्फ कामदेव सिंह ने फिर जोरदार तरीके से बेगूसराय वापसी की। हलांकि इस बीच गंगा में बहुत पानी बह चुका था और देश में राजनीतिक स्तर पर भी चीजें काफी तेजी से बदल रही थीं जिनका असर कामदेव सिंह की जिंदगी पर भी गहराई से पड़ना था। इमरजेंसी, जनता पार्टी की सरकार और फिर 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी के बीच सत्ता के तेवर उनकी तरफ तिरछे होने शुरू हो गए और इसी बीच बिहार में एक बार जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बन कर राज्य की राजनीति में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शख्सियत के रूप में उभर रहे थे। इसका असर आगे नजर आने वाला था। क्योंकि मिश्र अपने जमाने के सबसे बड़े जोड़तोड़ और तिकड़मों के बादशाह माने जाते थे।
क्रमशः
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(प्रेम कुमार बिहार के बेगूसराय में रहते हैं। स्वतंत्र लेखन करते हैं।)
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