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धर्म: प्रकृति रूपी परमेश्वर ने दो ही जातियां बनाई हैंं, स्त्री और पुरुष

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जगदीश चंद्र, दिल्‍ली:
सनातन धर्म और हिन्दू धर्म में अंतर को स्‍पष्ट करने के निमित्‍त लेख का संज्ञान लें और दूसरों के भी संज्ञान में डालने के लिए इसे अधिक अपने मित्रों को साझा करें। प्रकृति से बड़ा इस धरा पर कोई खुदा, ईश्वर, अथवा धर्म या मजहब नहीं है। फरेबी और स्वार्थपरक मानसिक्ता से ग्रसित लोगों ने अपने निज स्‍वार्थों के दोहन के लिए ही मनुष्यों को विभिन्‍न धर्मों, सम्प्रदायों और जातियों मे बांट रखा है। प्रकृति रूपी परमेश्वर ने समस्त जीवधारियों की दो ही जातियां बनाई हैंं, एक स्त्री व दूसरा पुरुष। बिडम्बना देखिए कि स्वार्थी मनुष्यों ने अपने निज हित चिंतन को साधने के लिए मनुष्यों को उनके कर्मों और संस्कारों की अपेक्षा उन्हें जन्म के आधार पर अलग जातियों में बांट कर प्रकृति रूपी परमेश्वर के कानून को ही धता बताने का पाप कुकृत्य कर डाला।  तभी से ही इस देश में उपजे प्राचीन प्रकृति के शाश्वत, सर्वकालिक और सार्वेदेशिक सिद्धांतों मानवीय संवेदनाओं से सुशोभित इस देश के शाश्वत प्राचीनतम सनातन धर्म को धता बताने के उद्देश्य से ही हिन्दू नाम के बिदेशी संस्कारों की जमीं पर उपजे धर्म को निहित स्वार्थ से परिष्कृत लोगों ने हमारे साश्वत सनातन धर्म पर थोपने का कुकृत्य कर डाला। और तभी से इस हम पर थोपे गये हिन्दू धर्म में नाना प्रकार की विसंगतियां और असंगतियां प्रवेश कर गईं। मानवीय संवेदनाओं से सुशोभित धर्म संस्कृति ही इस संसार की प्राचीनतम सनातन धर्म संस्कृति है, जो वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है।  

 

सनातन धर्न को प्राचीनतम धर्म होने का गौरव प्राप्त

इन्हीं समस्त गुणों पर आधरित सनातन धर्न ही संसार का प्राचीनतम धर्म सभ्यता होने का गौरव प्राप्त था। इन्ही गुणों के सबब मानवीय संवेदनाओं पर आधरित इस देश के प्राचीन सनातन धर्म में सभी भारतीयों को अपने झंडे के नीचे लाने की क्षमता है। आओ मेरे देश वासियो इसी के झंडे के नीचे, इसके मानवीय संवेदनाओं के बल पर ही हम भारत माँ के ध्वज को लहराने में सक्षम हो सकते हैं न कि हिन्दू -हिन्दू  चिल्लाने और इसकी पैरवी करने अथवा इसका  गौरव गान कर से समाज और देश को एकजुट रख पाने में सक्षम हो पाएंगे।  यह सर्वविदित सत्य है कि 'सच्चा धर्म नहीं सिखाता कभी किसी से बैर रखना।'  हम सब मां भारती के पुत्र और पुत्रियां हैं और प्रकृति के शाश्वत मूल्यों, संस्कारों और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित सनातन धर्म के तहत ही हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने हिमालय के शांत वातावरण में मानव कल्याण के निमित्‍त विश्व प्रसिद्ध चार वेदों ऋगवेद, सामवेद, यजुर्वेद और अर्थवेद की रचना की थी। प्रकृति के सर्वकालिक, सार्वभौमिक और मानवीय संवेदनाओं से आलोकित और सुशोभित सनातन धर्म पूर्णतय सक्षम है इस देश के अपने सर्व धर्म के बेटे बेटियों को अपने झंडे के नीचे एकजुट करने में। यहां यह भी कहना उपयुक्‍त होगा कि प्रकृति के धर्म के अनुसार ही प्राणियों की केवल दो ही जातियां हैं एक स्त्री व दूसरा पुरुष। खेद है कि इस देश के कतिपय लोगों ने अपने स्वार्थो के वशीभूत हों उनके कर्मों की बजाय उनके जन्म के अधार पर वर्गीकरण की निहायत स्वार्थपरक और गन्दी चाल चली है।

 

जन्म के आधार पर वर्गीकरण करने की मानसिकता अमानवीय 

इसके साथ यह भी शाश्वत सत्य है कि समाज को उनकी शिक्षा कर्मों और संस्कारों की बजाय उनके जन्म के आधार पर वर्गीकरण करने की मानसिकता ही मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं की तौहीन करने का सबसे बड़ा गैर वाजिब और दुष्कर्म कृत्य ही कहा जायेगा, जिसे हिन्दू धर्म के किन्हीं पाखंडी लोगों के परपंच के आधार पर शुरू और सम्पन हुआ। यह सरासर मानवीय  मूल्यों का घोर निरादर और तौहीन करने वाला कृत्य ही था।  जो भी हुआ वह सब गलत और निजस्वार्थो के बलबूते पर ही मनुष्यों को विभाजित करने के  मकसद से किया गया गैर वाजिब कृत्य ही था, जिसे प्रकृति के नियमों व संस्कारों का खुल्‍लम-खुल्‍ला निरादर ही कहा जायेगा और यह क़दापि  मान्य नहीं कहा जा सकता। उपरोक्त चर्चा की पृष्ठभूमि मेें  इस देश भारत के सभी हिन्दू और मुस्लिम व अन्य धर्म के मानने वाले भाइयों व बहनो से गुज़रिश करता हूँ कि प्रकृति यानी कुदरत के शाश्वत धर्म संस्कृति के झंडे के नीचे आ कर एकसूत्र में बंध कर मां भारती के गोरव गाथा लिखने के इस देश में प्रकृति पर आधरित सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करें।  जब तक हम हिंदू व मुस्लिम व अन्य धर्मों में बंटे रहेंगे तब अपनी डफली अपना ही अलग राग अलापते रहेंगें और कभी एकसूत्र में नहीं बन्ध पाएंगे।  इस प्रकार की समाज व्यवस्‍था में सबसे अधिक प्रताड़ित  समाज के निचले पायेदान पर खडे लोगों को ही होना होगा।

(लेखक मूलत:  पौड़ी उत्‍तराखंड के रहनेवाले हैं।  इंडियन काउंसिल ऑफ अग्रीकल्‍चरल रिसर्च में उपसचिव स्‍तर के अधिकारी रहे। रिटायरमेंट के बाद उत्‍तराखंड नवनिर्माण विचार मंच और उत्‍तराखंड नवनिर्माण पार्टी की स्‍थापना की । संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।