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माले ने धरती आबा को किया याद, कहा-झारखंड का जलियांवाला बाग है डोंबारी बुरू

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द फॉलोअप टीम, रांची:

सन् 1900 को आज के ही दिन बिरसा मुंडा के नेतृत्व में डोंबारी में विद्रोह की रणनीति बनाते समय अंग्रेजों ने आदिवासियो की जुटी भीड़ पर गोली चला दी थी। जिसमें दो सौ से अधिक आदिवासी शहीद हो गए थे। हालांकि शिलापट्ट में महज छह आदिवासियों की मौत होने की सूचना अंकित है। भाकपा माले और आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने आज डोंबारी बुरू विद्रोह दिवस को सम्मान पूर्वक मनाया। बिरसा केन्द्रीय कारा स्थित वीर बिरसा की आदमकद प्रतिमा पर मल्यार्पण किया गया। वहीं डोंबरीबुरु पहुंच मल्यार्पण कर सभा की गई। जिसमें अड़की समेत आसपास के सैंकड़ों लोग शामिल हुए। माले राज्य सचिव मनोज भक्त ने कहा कि अंग्रेजों से लेकर हमारी सरकारों ने भी बिरसा के संघर्षों को नजरअंदाज किया है। विद्रोह स्थल डोंबारी बुरू देश का दूसरा जलियावाला बाग है।

मौके पर सभी ने आदिवासी और किसान विरोधी केंद्र सरकार को ध्वस्त करने, सभी आदिवासी क्षेत्रों में संविधान की 5वीं अनुसूची को लागू करने और वन अधिकार अधिनियम, 2006 को अक्षरश: लागू करने का संकल्प लिया। सभा में आदिवासी संघर्ष मोर्चा के केन्द्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया, रामगढ़ के जिला सचिव भूवनेश्वर बेदिया, सोहराय किश्कू, सुदामा खलखो, सिनगी खलखो, संतोष मुंडा समेत माले नेता भुवनेश्वर केवट, मोहन दत्ता, जयवीर हांसदा  लखमनी मुंडा, भीष्म महतो समेत कई नेता मौजूद थे।