भारतीय समाज, राजनीति और धर्म को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले अहम व्यक्तित्व से फॉलोअप रुबरू कराना चाहता है। साबरमती का संत नाम से 50 क़िस्त के मार्फत महात्मा गांधी को समझने की कोशिश की गई थी। वहीं सदी के महाचिंतक स्वामी विवेकानंद पर केंद्रित करीब 20 क़िस्त भी आपने पढ़े होंगे। धुर समाजवादी लीडर डॉ .राममनोहर लोहिया के बारे में आप गांधीवादी वरिष्ठ लेखक कनक तिवारी की क़लम से नियमित पढ़ रहे हैं। आज पढ़िये 12वीं क़िस्त-संपादक
कनक तिवारी, रायपुर:
प्रौढ़ता आने पर खान-पान की आदतों में लोहिया बहुत सरलता से मिल जाती वस्तुओं से पेट भरने लग गए थे। यह नकली प्रतिबन्ध नहीं था। एक बार किसी पाश्चात्य भोजन वाले रेस्तरां में जाकर उन्होंने मिठाई की हिन्दी में फरमाइश कर दी। वेटर अपनी नौकरी के लिए अंग्रेजीदां बनाया गया था। उसने अंग्रेजी में ही कहा यहां मिठाई नहीं मिलती। यह पश्चिमी भोजन का रेस्तरां है। उसके चेहरे पर हिंदी या हिंदुस्तानियत के लिए वितृष्णा सी झिलमिलाते देखकर लोहिया ने अंगेरजी में पूछा ‘क्या यहां ‘‘स्कोन्स (केक) मिलते हैं?‘ वेटर बेचारा भौंचक हो गया। उसने यह शब्द ही नहीं सुना था। वह हिंदी जुबान में लौट आया और बोला ‘आप जो कह रहे हैं, वह तो शायद नहीं है, लेकिन आपको पेस्ट्री मिल सकती है।‘ लोहिया भी हिंदी में लौट आए और कहा ‘‘भूल जाओ। तुम लोग सब फोनी वेस्टर्नर्स हो।
लोहिया अंगेरजी गद्य और वक्तृता में महारत रखते थे लेकिन फिर भी उन्होंने हिन्दी में अभिव्यक्ति का अपना एक नया संसार रचा। गांधी ने भी आज़ादी के बाद बहुत दुख में कहा था कि ‘जमाने से कहो गांधी अंगरेजी भूल गया है।‘ लोेहिया का हिन्दी भाषा का प्रेम उस राष्ट्रीयता से लकदक था, जो उन्हें तात्विकता में 56 इंच की छाती का बना देती थी। उनकी देशभक्ति कोई भावुक जोश नहीं, उनके विश्वास का हलफनामा था। जिसके बिना लोहिया के व्यक्तित्व की परिभाषा अधूरी रहेगी। उन्होंने मुल्क को कभी मां के फ्रेम में न देखकर अवाम के संकुल में देखा था यही उनके लिए देश होने का अर्थ था। ठीक यही तो विवेकानन्द भी कहते थे कि देश का मतलब नदी, पहाड़, आसमान, वनस्पति और पशु पक्षी तक नहीं मुख्यतः मनुष्य हैं।
कसैले व्यंग्य भरे फतवे लेाहिया पर कसे जाते रहे कि कुआंरा रहने के कारण स्त्री को लेकर उनके नज़रिए में खास तरह का अबूझा रोमांटिसिज़्म गहरा गया है। स्त्री पुरुष के पारम्परिक और बांझ बना दिए गए रिश्तों के खिलाफ लोहिया में विरोध करता मौलिक किस्म का खुलापन था। कन्नौज के होने के कारण कहते थे मैं रामायण के इलाके अर्थात अयोध्या का हूं। उनमें लेकिन कृष्णकालीन सर्वज्ञात नायिकाओं द्रौपदी और राधा को लेकर जीवन ज़्यादा खदबदाता रहता था। लोहिया ने बेलाग कहा द्रौपदी ही भारतीय नारी का आदर्श हैं। वे स्त्री को अबला या पुरुष पर निर्भर संपत्ति या देह मात्र नहीं मानते थे। उनकी स्थापना थी कि स्त्री स्वायत्त है, परिपूर्ण है और उसमें क्षितिज तक पहुंचने की अनदेखी लेकिन अपूर्व संभावनाएं हैं। नारी शुचिता की वकालत करते लोहिया ने स्त्री को पुरुष के बराबर अधिकार दिया जाये वाला पारंपरिक जुमला ठीकरे की तरह नहीं फोड़ा।
(जारी)
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(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं। छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।