logo

'विकास' के लिए दिया जमीन और मकान, मुआवजा मांगा तो बोले पदाधिकारी- माथा पटको या मर जाओ

12464news.jpg

द फॉलोअप टीम, पाकुड़: 

पाकुड़ जिला के आमड़ापाड़ा प्रखंड अंतर्गत जराकी पंचायत के छोटा पहाड़पुर गांव के रहने वाले गणेश मंडल हताश और निराश हो चुके हैं। सरकार और सरकारी तंत्र ने उनके ही मकान, जमीन और आजीविका को विकास के नाम पर छीनने के बाद प्रताड़ित कर उनकी बेहतर जिंदगी की उम्मीदों का गला घोंट दिया है। गणेश का आरोप है कि अपनी जिंदगी भर की कमाई से बनाए गए मकान का हक मांगने पर जिले के भू अर्जन अधिकारी ने कहा कि "तुम्हें मुआवजा नहीं मिलेगा। तुम माथा पटको या मर जाओ। जाओ, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जिसके पास जाना है, मेरे पास मत आओ"। 

साहिबगंज-गोविंदपुर राजमार्ग के लिए अधिग्रहण
गौरतलब है कि साहिबगंज-गोविंदपुर राजपथ योजना अंतर्गत सड़क निर्माण के लिए साल 2014 में गणेण मंडल के मकान का बाउंड्री बॉल और खपरैल का घर अधिगृहित किया गया। बतौर मुआवजा उनको 1 लाख 25 हजार 941 रुपये का भुगतान किया गया। साल 2015 में चौड़ीकरण के नाम पर दोबारा गणेश मंडल के पक्के मकान का 3 कमरा, रसोई घर और शौचालय सहित 5 कट्ठा जमीन चिह्नित किया गया। इसके एवज में गणेश को महज 4 लाख 61 हजार रुपये का भुगतान किया गया, जबकि गणेश ने जिले के भू-अर्जन अधिकारी को पत्र लिखकर स्पष्ट दावा किया था कि मकान और जमीन को मिलाकर कुल लागत 12 लाख रूपये से ज्यादा की रकम बनती है। उन्होंने 12 लाख रुपये मुआवजा का दावा किया जबकि उनको महज 5 लाख 87 हजार रुपये का ही भुगतान किया गया। 

लोन की किश्त नहीं चुकाने पर पत्नी को हुई जेल
जानने वाली बात ये भी है कि गणेश ने लोन लेकर मकान बनवाया था। उन्होंने पत्नी के नाम से लोन लिया था। गणेश का अनाज क्रय करने का छोटा सा व्यवसाय था। इसी से होने वाली कमाई की बदौलत वे बैंक को लोन की किश्त चुका रहे थे और परिवार का भरण-पोषण भी कर रहे थे। मकान टूटने की वजह से रोजगार बंद हो गया। वे लोन की किश्त नहीं चुका पाए और दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से 1 साल पहले उनकी पत्नी को जेल जाना पड़ा। गणेश कहते हैं कि ये ना केवल दुखदायी है बल्कि अपमानजनक भी है। वे कहते हैं मैं जिले के उपायुक्त कार्यालय से लेकर भू अर्जन अधिकारी तक, सरकारी बाबुओं के दरवाजे का सैकड़ों चक्कर लगाकर चप्पल घिस चुका हूं लेकिन कोई नहीं सुनता। कभी दस्तावेज पूरा नहीं होने का बहाना बनाया जाता है तो कभी साहब नहीं हैं कहकर टरका दिया जाता है। 

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी नहीं मिला मुआवजा
गणेश बताते हैं कि साल 2015 में जब काफी गुहार लगाने के बाद भी उनको मुआवजा का भुगतान नहीं किया गया तो उन्होंने तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को चिट्ठी लिखी। उनकी चिट्ठी पर मुख्यमंत्री ने संज्ञान लिया और 29 अक्टूबर 2015 को झारखंड सरकार के जन शिकायत कोषांग के उप सचिव सह प्रभारी पदाधिकारी ने अधिगृहित मकान का मुआवजा भुगतान को लेकर संताल परगना प्रमंडल के आय़ुक्त को आदेश देते हुए पत्र लिखा। गणेश का कहना है कि यहां भी उनकी लंबी परेड कराई गई। बार-बार घुमाया गया। आखिरकार 5 साल के लंबे इंतजार के बाद 20 अक्टूबर 2020 को आय़ुक्त कार्यालय की तरफ से पाकुड़ के उपायुक्त को मुआवजा भुगतान का निर्देश दिया गया। अब गणेश का संघर्ष उपायुक्त कार्यालय में शुरू हुआ। गणेश को सैकड़ों बार उपायुक्त कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ा। 7 जुलाई 2021 को गणेश ने उपायुक्त को आवेदन दिया और न्याय की गुहार लगाई। उपायुक्त ने गणेश को जनता दरबार में आने की सलाह दी। जनता दरबार में डीसी ने उनको पुन: भू अर्जन अधिकारी के पास भेज दिया। 

हक मांगने पर भू अर्जन पदाधिकारी ने धमकाया
गणेश बड़ी उम्मीदों के साथ 18 अगस्त 2018 को जिले के भू अर्जन पदाधिकारी रविंद्र चौधरी के पास पहुंचे। अपना दुखड़ा सुनाया। न्याय की मांग की। अपना हक मांगा। गणेश को उनका हक तो नहीं मिला, अलबत्ता भू अर्जन पदाधिकारी ने पूरी हनक से कहा कि जाओ तुम्हें मुआवजा नहीं मिलेगा। अब तुम माथा पटको या मर जाओ। जहां जाना है वहां चले जाओ। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जिनके पास जाना है जाओ, लेकिन यहां मेरे पास मत आओ। गणेश ने जब कहा कि मुख्यमंत्री का आदेश है साहब, सुन लीजिए तो पदाधिकारी ने कहा कि पैसा मुख्यमंत्री के पास है कि मेरे पास। गणेश कहते हैं कि वे अब पूरी तरह से नाउम्मीद हो चुके हैं। वे सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाकर थक चुके हैं। उन्होंने कहा कि 18 अगस्त के बाद से उन्होंने किसी भी सरकारी कार्यालय में जाना बदं कर दिया है। 

गणेश का मकान, जमीन और रोजगार सब छिन गया
गणेश ने बताया कि जमाबंदी नंबर-13 और दाग नंबर-372 में मेरा मकान था। उनके पास अनाज क्रय केंद्र के रूप में आजीविका का एकमात्र साधन था। उन्होंने मकान बनवाने के लिए बैंक से कर्ज लिया था। मकान टूटने की वजह से उनका रोजगार छिन गया और पूरा मुआवजा भी नहीं मिला। इसकी वजह से वे लोन की किश्त का भुगतान नहीं कर पाये। चूंकि लोन पत्नी के नाम पर था इसलिए किश्त का भुगतान नहीं करने पर पत्नी को जेल जाना पड़ा। सड़क बन जाने की वजह से उनका मकान पांच फीट नीचे चला गया है। बरसात में सड़क और नालियों का पूरा पानी उनके घर में घुस जाता है। गणेश कहते हैं कि इन पांच वर्षों में उनका बुरी तरह से आर्थिक और मानसिक शोषण हुआ। मकान चला गया। रोजगार छिन गया। सरकारी अधिकारियों ने अपमानित किया। जायें तो कहां जायें।