सुभाष चन्द्र कुशवाहा, लखनऊ:
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पी.एम.एम.वाई) की शुरुआत छोटो कारोबारियों के कारोबार हेतु कर्ज उपलब्ध कराने हेतु हुई है। इसके अंतर्गत शिशु लोन, पचास हजार तक, किशोर लोन 5 लाख तक और तरुण लोन 10 लाख तक विभिन्न ब्याज दरों पर उपलब्ध कराया जाता है। योजना का मूल उद्देश्य कोविड काल में बर्बाद हुए छोटे कारोबारियों को कर्ज उपलब्ध कराना है, जिससे वे फिर से अपना खुद का कारोबार शुरू कर सकें। इस योजना के तहत 2020-2021 में 2 करोड़ 94 लाख 16 हजार से ज्यादा लोगों को कर्ज स्वीकृत हुए हैं। कर्ज देने की यह योजना बुरी नहीं है मगर समस्या यह है कि ब्याज सहित इसे चुका पाना तब असंभव है, जब व्यापार का सम्पूर्ण ढांचा चरमरा गया हो। ऐसे में शाॅक ट्रीटमेंट से भला क्या होने वाला है? छोटे कारोबारियों के लिए जरूरी बाजार को निगल लिया गया है। लोगों के जेब में पैसा नहीं है। दूसरी ओर बड़े व्यापारियों ने फुटकर कारोबार तक को अपने हाथों में लेना शुरू कर दिया है। नून-तेल से लेकर कपड़ा-लत्ता तक के कारोबार पर बड़े व्यापारियों का कब्जा हो चुका है। अमेजाॅन और फ्लिपकार्ट जैसे आॅनलाइन बिक्री प्लेटफार्मों ने व्यापार का एक हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया है।
गांवों से लेकर शहरों तक काम-धंधे प्रभावित हुए हैं। नोटबंदी के बाद बिगड़ी निर्माण कार्यों की तस्वीर अभी तक सुधरी नहीं है। किसानों की लागत से ज्यादा फसलों का दाम नहीं मिल पा रहा। इसलिए जनता की क्रय शक्ति भी सीमित हो चुकी है। मुद्रा लोन की अदायगी आखिर छोटे व्यापारी करें तो कैसे ? यही कारण है कि नाॅन परफार्मिंग एसेट(एन.पी.ए.) यानी बैंक कर्जदार द्वारा किश्त चुकाने में नाकामयाबी वाले ‘लोन एकाउंट’, में वृद्धि देखी जा रही है।
लाॅकडाउन की वजह से दुकानें और बाजार बंद हुए मगर किराये की दुकानों का किराया, बिजली बिल, जलकर, भवन कर आदि में कोई राहत तो मिली नहीं, न उनकी कोई क्षतिपूर्ति की व्यवस्था हुई, लिहाजा बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों में अभी भी कुछ दुकानें बंद पड़ी हैं। जो खुली हैं उनमें ग्राहक नहीं हैं। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार जून 2021 के अंत में एन.पी.ए. 2019-20 की तुलना में तीन गुना बढ़ गया है। इस सकल एन.पी.ए. में मुद्रा लोन एन.पी.ए. का हिस्सा, जून 2021 तक बीस प्रतिशत हो चुका है जबकि मार्च 2020 के अंत में यह हिस्सा महज छः प्रतिशत ही था। कई राज्यों के आंकड़े अभी बढ़ते जा रहे हैं। विगत वर्ष की तुलना में जून 2021 के अंत तक पंजाब नेशनल बैंक का एन.पी.ए. 44 प्रतिशत, इण्डियन बैंक का 33 प्रतिशत और बैंक आॅफ महाराष्ट्रा का 31 प्रतिशत बढ़ गया है।
बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कर्ज की अदेयता के कारण सरकारी बैंकों की हालत पहले से बहुत खराब है। अब छोटे व्यापारियों की खराब हालत और कारोबार के सिकुड़ जाने से मुद्रा लोन चुका पाना संभव नहीं हो रहा है। व्यापारियों द्वारा खुदकुशी के मामले प्रकाश में आये हैं। एक साथ पूरा का पूरा परिवार आत्महत्या करते देखा जा रहा है। जून 2021 तक कुल मुद्रा लोन का 9.29 प्रतिशत कर्ज एन.पी.ए. में बदल गया है। यह बात सही है कि छोटे कारोबारियों द्वारा लिया गया कर्ज बड़े उद्योगपतियों की तुलना में बहुत कम है। 2017-18 में कुल 2.46 लाख करोड़ कर्ज में मुद्रा लोन का हिस्सा 7277.31 करोड़, 2018-19 में कुल 3.11 लाख करोड़ कर्ज में मुद्रा लोन का हिस्सा 11,483.42 करोड़, 2019-20 में कुल 3.29 लाख करोड़ कर्ज में मुद्रा लोन का हिस्सा 18835.77 करोड़ ही था। हालात यह है कि कारोबार को बचाने के लिए छोटे व्यापारियों के मुद्रा लेन पर देय व्याज को माफ किए जाने की जरूरत है या इसकी वसूली को फिलहाल स्थगित किए जाने की जरूरत है अन्यथा इसका प्रभाव, व्यापक मंदी के रूप में देखा जा सकता है। ये आंकड़े द इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।
(यूपी सरकार की उच्च सेवा से रिटायर्ड अफसर सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक और संस्कृतिकर्मी हैं। आशा, कैद में है जिन्दगी, गांव हुए बेगाने अब (काव्य संग्रह), हाकिम सराय का आखिरी आदमी, बूचड़खाना, होशियारी खटक रही है, लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) और चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन (इतिहास) समेत कई पुस्तकें प्रकाशित। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन। संप्रति लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन)
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