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दुमका: सरकारी दावों की काली सच्चाई! 'गड्ढे का गंदा पानी' पीने को विवश कोलाजोड़ा गांव के लोग

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द फॉलोअप टीम, दुमका: 

भारत की आजादी के 70 वर्ष और झारखंड गठन के 20 वर्ष पूरे होने के बाद आपकी कल्पना का गांव कैसा है। जाहिर है आपकी कल्पना के गांव में पक्की सड़क, पेजयल की समुचित सुविधा, बिजली, स्वास्थ्य सुविधा और स्कूल होगा। अच्छी कृषि। सुखी जीवन। जीवन जीने के तमाम मूलभूत साधन होगा। थोड़ा ठहरिए और अपनी कल्पना से बाहर आइये क्योंकि अब आपको हम वास्तविकता दिखाने जा रहे हैं। यहां तस्वीर और स्थिति दोनों बिलकुल उलट है। यहां आपकी कल्पना की कोई वस्तु नहीं। सच काफी स्याह है। जिनको समाधान करना है वही स्वीकार नहीं करना चाहते। 

वास्तविकता वाले गांव की सच्चाई स्याह है
वास्तविकता वाले गांव में ना तो पक्की सड़क है और ना ही पेयजल की सुविधा। जिन लोगों का जन्म नितांत शहर में हुआ है वो तो मानने से भी इंकार करेंगे कि किसी गांव में लोग गड्ढे में जमा पानी भी पीते हैं, लेकिन ये सच है। ताजा रिपोर्ट दुमका जिला के गोपीकांदर प्रखंड स्थित टेगजोर पंचायत अंतर्गत कोलाजोड़ा गांव की है। यहां ग्रामीण गड्ढे का पानी पीने को विवश हैं। स्वच्छ पेयजल की आस लिये इस गांव के लोग रोज संघर्ष करते हैं। संघर्ष के बाद भी मिलता है गड्ढे का गंदा पानी जिसमें पत्तियां सड़ती रहती है। ये समस्या विगत कई वर्षों से बनी हुई है। 


दुमका जिला के कोलाजोड़ा गांव में पेयजल नहीं
दुमका जिला के गोपीकांदर प्रखंड अंतर्गत टेगजोर पंचायत के कोलाजोड़ा गांव में पेयजल की घोर समस्या है। इस गांव में आधा किमी की दूरी पर दो टोला है। मांझी टोला और प्राणिक टोला। इस गांव में दोनों टोलों को मिलाकर कुल पचास घर हैं। गांव आदिवासी बहुल है। गांव में कुल चार चापाकल हैं लेकिन वे सभी फिलहाल हाथी के दांत ही साबित हो रहे हैं। इसमें से एक चापाकल स्कूल में लगा है। स्कूल वाला चापाकल बीते 2 वर्ष से खराब पड़ा है। खेत और बहियार में मौजूद चापाकल भी खराब पड़ा है। मरम्मति के नाम पर उनको खोल दिया गया लेकिन ठीक नहीं किया गया। 


गांव में लगा चारों चापाकल 2 साल से खराब पड़ा है
ग्रामीणों का कहना है कि ये काफी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि गांव में चापाकल लगा दिया गया लेकिन खराब होने पर उसकी मरम्मति नहीं करवाई गई। ग्रामीणों को गर्मी में तकरीबन तीन किमी दूर डुमरिया, काड़ीपहाड़ी, मुड़ासोल सहित आसपास के गावों से पानी लाना पड़ता है। इनमें से भी कई गावों में चापाकल का पानी सूख जाता है। वैसे में पेयजल के लिए झरने के पानी पर निर्भर होना पड़ता है। मांझी टोला के ग्रामीणों का कहना है कि उनको रोजाना तकरीन 1 किमी दूर जाकर जोरिया से पानी लाना पड़ता है। महिलाएं और बच्चे उबड़-खाबड़ और पथरीले रास्तों से होकर पानी लाने जाना पड़ता है। प्राणिक टोला के लोग भी गड्ढे का पानी ही पीने को विवश हैं। 


गांव में पाताल बोरिंग के साथ जलमीनार की मांग
गांव में पेयजल सहित पक्की सड़क, आवास और बिजली जैसी मूलभूत सुविधा का भी अभाव है। गांव का विद्यालय भी काफी जर्जर हो चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के वक्त अपना चेहरा दिखाने आते हैं। बाकी के पांच साल कोई उनकी तरफ झांकता भी नहीं। ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार लगाई है कि गांव में मौजूद सभी चापाकलों की मरम्मत करवा दी जाए ताकि पेयजल के लिए जूझना ना पड़े। ग्रामीणों की ये भी मांग है कि दोनों टोलों में पाताल बोरिंग करवाई जाये। गांव में जलमीनार भी लगने की मांग की गई।