मनोहर महाजन, मुंबई:
इंडियन सिनेमा की पहली सिंगिंग सुपर-स्टार कानन देवी की आज 29वीं पुण्यतिथि है। भारतीय सिने जगत में कानन देवी का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने बगैर प्रशिक्षण के न केवल फ़िल्म निर्माण की विधा बल्कि अभिनय और पार्श्वगायन से भी अपनी ख़ास पहचान बनाई।
कानन देवी का जन्म 22 अप्रैल 1916 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था के दिनों में ही उनके रमेश चन्द्र दास की मृत्यु हो जाने से परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी कंधों पर आ गई। कानन देवी जब सिर्फ़ 10 वर्ष की ही थीं, तब अपने एक पारिवारिक मित्र की मदद से उन्हें ‘ज्योति स्टूडियो’ द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘जयदेव’ में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद कानन देवी को ज्योतिष बनर्जी के निर्देशन में 'राधा फ़िल्म्स' के बैनर तले बनी कई फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने का मौक़ा मिला। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘माँ’ बतौर अभिनेत्री कानन देवी के सिने कैरियर की पहली हिट फ़िल्म साबित हुई।
1937 में प्रदर्शित ‘मुक्ति’ सुपर हिट फ़िल्म
कुछ समय के बाद कानन देवी न्यू थियेटर में शामिल हो गईं। इस बीच उनकी मुलाकात रायचंद बोराल से हुई, जिन्होंने कानन देवी के सामने हिन्दी फ़िल्मों में काम करने का प्रस्ताव रखा। तीस और चालीस के दशक में फ़िल्म अभिनेता या अभिनेत्रियों को फ़िल्मों में अभिनय के साथ ही पार्श्वगायक की भूमिका भी निभानी पड़ती थी। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए कानन देवी ने भी संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उस्ताद अल्लारक्खा और भीष्मदेव चटर्जी से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने रवीन्द्र संगीत भी सीखा। वर्ष 1937 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘मुक्ति’ कानन देवी के सिने करियर की सुपर हिट फ़िल्म साबित हुई। पी. सी. बरुआ के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद कानन देवी 'न्यू थिएटर' की चोटी की कलाकारों में गिनी जाने लगी।
गीत “दुनिया ये तूफ़ान मेल” काफ़ी लोकप्रिय हुआ
सन् 1941 में कानन देवी ने न्यू थियेटर छोड़ दिया और अब वे स्वतंत्र तौर पर काम करने लगीं। 1942 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘जवाब’ कानन देवी के सिने करियर की सर्वाधिक हिट फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में उन पर फ़िल्माया गया गीत “दुनिया ये तूफ़ान मेल” उन दिनों श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ और आज भी है। इसके बाद कानन देवी की ‘हॉस्पिटल’, ‘वनफूल’ और ‘राजलक्ष्मी’ जैसी फ़िल्में भी प्रदर्शित हुई, जो टिकट खिड़की पर सुपरहिट रहीं। अपनी इन सफलताओं के बाद कानन देवी ने 1948 में फ़िल्म नगरी मुंबई (भूतपूर्व बम्बई) का रुख़ किया। 1948 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘चंद्रशेखर’ एक अभिनेत्री के रूप में कानन देवी की अंतिम हिन्दी फ़िल्म थी। फ़िल्म में उनके नायक की भूमिका अशोक कुमार ने निभाई थी।
1949 में फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा
वर्ष 1949 में कानन देवी ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा। ‘श्रीमती पिक्चर्स’ के अपने बैनर तले कानन देवी ने कई सफल फ़िल्मों का निर्माण किया. वर्ष 1976 में फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में कानन देवी के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फ़िल्म जगत् के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में उन्होंने लगभग 60 फ़िल्मों में अभिनय किया। उनकी अभिनीत उल्लेखनीय फ़िल्मों में ‘जयदेव’, ‘प्रह्लाद’, ‘विष्णु माया’, ‘माँ’, ‘हरि भक्ति’, ‘कृष्ण सुदामा’, ‘ख़ूनी कौन’, ‘विद्यापति’, ‘साथी’, ‘स्ट्रीट सिंगर’, ‘हार-जीत’, ‘अभिनेत्री’, ‘परिचय’, ‘लगन’, ‘कृष्ण लीला’, ‘फैसला’ और ‘आशा’ आदि शामिल हैं। भारतीय सिनेमा में कानन देवी के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1976 में ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। उनका निधन 17जुलाई 1992 को हुआ।
(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।