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काव्‍य गोष्‍ठी: प्रेम की तरह ही धीरे-धीरे फैलती है नफरत भी

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द फॉलोअप टीम, रांची:

हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने की बात तो सभी लोग करते हैं लेकिन इसके लिए आधारभूत जरूरतों को पूरा करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। दूसरी तरफ, शुद्धता के नाम संस्कृतनिष्ठ बनाने का अभियान चलाने वाले भी हिंदी के विकास को अवरुद्ध ही कर रहे हैं। साहित्यिक संस्था 'शब्दकार' की शनिवार को संस्था की अध्यक्ष वीना श्रीवास्तव के आवास पर आयोजित गोष्ठी सह परिचर्चा में ये बातें उभरकर सामने आयीं। कोरोना लॉकडाउन के बाद शब्दकार का यह पहला ऑफ लाइन आयोजन था। इस कार्यक्रम में दिल्ली से आये पत्रकार-साहित्यकार अनुराग अन्वेषी और धनबाद से कवयित्री कविता विकास विशेष रूप से शामिल हुईं। आयोजन में शब्दकार की रश्मि शर्मा, संगीता कुजारा टाक, राजीव थेपड़ा, रीता गुप्ता, शालिनी नायक, अपराजिता, मुक्ति शाहदेव, रेणु झा, अनामिका प्रिया, संध्या चौधुरी 'उर्वशी', नंदिनी प्रणय व इमरान भी मौजूद थे। 


कार्यक्रम के पहले हिस्से में हिंदी भाषा की मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा हुई। इसके बाद बच्चों के नामकरण पर तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक प्रवृत्तियों के असर पर बात हुई। कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में कविता पाठ हुआ। कविता विकास ने ग़ज़ल से आगाज़ किया ‘तुम्हारे नाम से आबाद करके, रखा है दिल को मैंने शाद करके’। इसके बाद अनुराग अन्वेषी ने प्यार और नफरत को परिभाषित करते हुए अपनी कविता पढ़ी -प्रेम की तरह ही/ धीरे-धीरे फैलती है नफरत भी/बचते-बचाते चुनती है वह/ एक मोहरा/ हम सबके बीच से' सुनाकर वाहवाही बटोरी।

 

अनामिका प्रिया ने' मेरी दुनिया मे प्रेम की/ये सीढ़ियां जरूरी नहीं थी/पर तुम थे जरूरी मीत तुम जिधर ले गए मैं चलती गई' सुनाई। शालिनी'सह्बा ने की ग़ज़ल 'ये आंधियां कहीं बर्बाद कर न दे मुझको/कि एक तूफ़ां है बाहर तो एक अंदर है' पर खूब तालियां बजीं। अपराजिता मिश्रा ने मार्मिक रचना 'मैं औरत थी जो अपने लिए आशीर्वाद की /भी नहीं अधिकारी थी /वंश बढ़ाओ पुनः काम की एक नई जिम्मेदारी थी'', रेनू झा ने ‘भोर से देखो सांझ भई/ नहीं आए साजन हमारे’ नंदनी प्रणय ने 'जब होने लगे बंद पलकें/सरक कर मेरे सीने से /लग जाए किताब' सुनाई।