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लाल-जवाहर-4: तब आज़ाद नगर होता इस्पात नगरी भिलाई का नाम, जानिए नेहरू का क्या था नज़रिया

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बाल दिवस के रूप में आज समूची दुनिया में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती मनाई जा रही है। मुल्क में विकास की मीनारें खड़ी करने का श्रेय उन्हें निस्संदेह जाता है। इसमें से छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी का प्लांट भी उनके ही सपने का साकार रूप है। आज जानिये इस शहर से जुड़ी नई जानकारी।-संपादक

 

मुहम्मद जाकिर हुसैन, भिलाई:

भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के निर्माण के शुरुआती दौर में एक समय ऐसा भी आया जब भिलाई नगर का नाम बदलकर मौलाना अबुल कलाम आजाद नगर रखने मध्यप्रदेश विधानसभा और देश की संसद से मांग उठी थी। हालांकि नगरों के नाम बदलने को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नजरिया बिल्कुल साफ था। 

Dr. Kailash Nath Katju

प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का इंतक़ाल 22 फरवरी 1958 को नई दिल्ली में हुआ था। उनके गुजरने के बाद मौलाना आजाद के नाम पर राष्ट्रीय स्तर की यादगार रखने की मांग हुई थी और  मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू (जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दादा) इस मुहिम का नेतृत्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने लोकसभा के सांसदों के पारित प्रस्ताव की प्रति 2 अगस्त 1959 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भेजी थी।

स्रोत-सलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू

भिलाई का नाम बदलकर मौलाना अबुल कलाम आजाद नगर रखने मध्यप्रदेश विधानसभा से उठी मांग को मध्य प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों के सांसदों को भेजा गया था। जिसमें कई सांसदों ने इस मांग का समर्थन करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। जब जवाहरलाल नेहरू को यह पत्र मिला तो उन्होंने 4 अगस्त 1959 को लिखे अपने जवाब में साफ तौर पर कहा कि- "मौलाना साहब के नाम पर भिलाई का नाम बदलना कहीं से भी उचित नहीं होगा। क्योंकि मैं इस मसले को लेकर पूरी तरह साफ हूं कि भिलाई का नाम बदलना नहीं चाहिए। मैं यह पसंद नहीं करूंगा कि किसी शख्सियत का नाम इस तरह रेखांकित किया जाए। भिलाई को पूरी दुनिया में भिलाई के नाम से ही जाना जाता है और इसे ही बरक़रार रहना चाहिए।"

 

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(लेखक-पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन भिलाई में रहते हैं। इस्पात नगरी भिलाई के इतिहास पर उनकी बहुचर्चित किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' हाल ही में प्रकाशित है।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।