द फॉलोअप टीम, डेस्क:
भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने पोस्ट कोविड समस्याओं की वजह से चंडीगढ़ के पीजीआई हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। मिल्खा सिंह ने अपनी जिंदगी में भारत के लिए कई पदक जीते। कहा जाता है कि पूरे करियर में मिल्खा सिंह ने कुल 75 रेसों में जीत दर्ज की। उनके नाम 4 एशियाई स्वर्ण पदक और 1 राष्ट्रमंडल स्वर्ण पदक है। इन सबके बीच मिल्खा सिंह की एक ख्वाहिश अधूरी रह गई जिसका जिक्र उन्होंने अपने आखिरी इंटरव्यू में किया था। मिल्खा सिंह की वो अधूरी ख्वाहिश क्या थी।
छत्तीसगढ़ में दिया था आखिरी साक्षात्कार
साल 2016 में मिल्खा सिंह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक रोटरी कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। वहां एक साक्षात्कार में मिल्खा सिंह ने कहा था कि उनकी ख्वाहिश है कि उनके जीते-जी कोई भारतीय एथलिट ओलंपिक में गोल्ड जीते। एथलेटिक्स चैंपियन के तौर पर भारत का तिरंगा ओलंपिक में लहराये। बता दें कि भारत ने बैटमिंटन, निशानेबाजी, मुक्केबाजी और कुश्ती में ओलंपिक पदक जीता है लेकिन एथलेटिक्स में अभी तक भारत की झोली खाली है।
मिल्खा सिंह की ये ख्वाहिश अधूरी रह गई
मिल्खा सिंह ने उस बातचीत में अपने संघर्ष के दिनों को याद किया था। उन्होंने कहा था कि जब मैं दौड़ता था तो पैरों में जूते नहीं होते थे। ना तो ट्रैक की सुविधा थी ना ही ट्रैक सूट की। कोच का मार्गदर्शन भी नहीं था। उन्होंने तब कहा था कि अभी भारत की आबादी 125 करोड़ है और मुझे देख के साथ ये कहना पड़ता है कि 60 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में दूसरा मिल्खा सिंह पैदा नहीं हो सका। उन्होंने कहा था कि मेरी एक ही ख्वाहिश है कि कोई एथलेटिक्स में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीते। ओलंपिक में अपना तिरंगा लहराये। राष्ट्रीय गान बजे। ये ख्वाहिश अधूरी रह गयी।
ये थी फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की ख्वाहिश
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह के अलावा साल 1964 में रंधावा, 1974 में रामसिंह और 1984 में पीटी उषा ओलंपिक फाइनल तक पहुंचे लेकिन पदक जीतने से चूक गए। मिल्खा सिंह ने कहा था कि मेरी दिली ख्वाहिश है कि मेरे दुनिया छोड़ने से पहले कोई नौजवान एथलीट भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते। मिल्खा सिंह ने युवाओं को फिटनेस का मंत्र भी दिया था।
पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने दिया था ये खिताब
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत में साल 1929 में हुआ था। बंटवारे के वक्त भड़की हिंसा में उनके माता-पिता और 8 भाई-बहनों की हत्या कर दी गई थी। वो किसी तरह भागकर भारत पहुंचे। बचपन का काफी सारा हिस्सा शरणार्थी कैंप में गुजारा। बाद में वे सेना में शामिल हो गए। कार्डिफ में आय़ोजित राष्ट्रमंडल खेलों में तात्कालीन विश्व रिकॉर्डधारी मैल्कम को हराकर उन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई।