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पाकिस्तान यात्रा-13: बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म

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(हिंदी के वरिष्‍ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्‍होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 13 वां भाग:)

 

मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:

अपने निकटतम संबंधी की शादी के अवसर पर पाकिस्तान जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। पाकिस्तान उच्चायोग से शादी का कार्ड दिखाकर वीज़ा प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं हुई परंतु पाकिस्तान उच्च आयोग में वीज़ा देने के लिए उचित व्यवस्था नहीं की गयी है। उसका मुख्य द्वार बंद रहता है जो नियमित समय पर खुलता है परंतु वीज़ा लेने आए व्यक्तियों की लाइन सवेरे से लग जाती है। गेट के बाहर घंटों लाइन में खड़े हर आयु के लोगों के सर पर ना गर्मी की धूप से और ना बरसात की बारिश से बचने के लिए कोई साया है। पहले विचार था कि हवाई जहाज से सीधे कराची पहुंच जाएंगे परंतु पूर्व में पाकिस्तान की यात्रा कर चुके कुछ संबंधियों ने सुझाव दिया कि बस का सफर बहुत रोचक है। डॉक्टर अंबेडकर बस टर्मिनल से बस द्वारा दिल्ली से लाहौर का टिकट मात्र 1500 रुपए में बुक हो गया। यह बस दिल्ली से लाहौर सप्ताह में केवल रविवार को छोड़कर शेष सभी दिन चलती थी, जिसमें 3 दिन दिल्ली परिवहन निगम द्वारा और 3 दिन पाकिस्तान पर्यटन विकास निगम द्वारा चलाई जाती थी।

 

यह बस सेवा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के द्वारा 1999 में आरंभ की गई थी तथा बस के इनॉगरेशन के समय वह स्वयं इस बात से लाहौर गए थे। प्रसिद्ध अभिनेता देव आनंद भी इस सफर में उनके साथ थे। नियत तिथि को सामान सहित प्रातः 4:00 बजे डॉक्टर अंबेडकर बस टर्मिनल पहुंच गए। सामान की चैटिंग के पश्चात सामान का भार किया गया। प्रातः 5:30 बजे बस आ गई और परिवहन निगम के कुलियों  द्वारा सामान बस में रख दिया गया। बस पर दोनों देशों के राष्ट्रीय ध्वज लगे हुए थे तथा बस पर 'सदा ए सरहद' लिखा था जिसका अर्थ है 'बॉर्डर की आवाज'। अपने निर्धारित  समय 6:00 बजे बस बाहर निकली।  बाहर निकलने पर देखा कि मार्ग का संपूर्ण ट्रैफिक हमारी बस के कारण रुका हुआ है और हमारी बस के आगे पुलिस की गाड़ी चल रही है। यह देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मात्र 1500 रुपए व्यय करके हम वी आई पी बन गए हैं। बस एयर कंडीशन थी।  तथा उसमें दो टीवी स्क्रीन लगे थे जिसमे हिंदुस्तानी फिल्म चल रही थी। बस में मोबाइल फोन सहित समस्त सुविधाएं उपलब्ध थी। बस में पाकिस्तानी नागरिक भी थे।

 

 

लगभग 165 किलोमीटर चलने के पश्चात हरियाणा के शहर पीपली के 'प्रकीट टूरिस्ट कंपलेक्स' में बस रुकी जहां पुलिस की समुचित व्यवस्था में यात्रियों को जलपान कराया गया। इसके पश्चात लगभग 100 किलोमीटर चलने के बाद बस पंजाब के शहर  सरहिंद में 'बोगनविलिया कंपलेक्स' में रुकी जहां विभिन्न रंगों के बौगनविलिया के फूल बहुत सुंदर लग रहे थे। यहां एक विशेषता यह थी कि कंपलेक्स के एक और बड़ी नहर बह रही थी जिस में पैंटून डालकर फ्लोटिंग यानी पानी के ऊपर तैरता हुआ रेस्टोरेंट्स बनाया हुआ था। बस यहां  से 150 किलोमीटर चलकर पंजाब के शहर करतारपुर में रुकी जहां दोपहर का भोजन कराया गया। बस के यात्रियों के द्वारा भोजन अथवा जलपान करते समय किसी अन्य व्यक्ति का प्रवेश रेस्टोरेंट में वर्जित था। इसके अतिरिक्त संपूर्ण यात्रा के दौरान बस के आगे पुलिस की गाड़ी चलती रही जो किसी भी चौराहे पर लाल लाइट पर भी नहीं रुकती थी। यहां से चलकर बस भारत व पाकिस्तान के बॉर्डर पर रुकी जहां इमीग्रेशन व कस्टम की औपचारिकताएं पूर्ण की गई। यहां पर भारत व पाकिस्तान दोनों देशों के ध्वज आमने-सामने लहरा रहे थे। इसके पश्चात बस बाघा बॉर्डर में स्थित पाकिस्तान पर्यटन विकास निगम के मोटल पर रुकी जहां संध्या के जलपान की व्यवस्था थी। यहां हमने पासपोर्ट दिखाकर पाकिस्तानी मोबाइल सिम भी प्राप्त किया।

 

 

कुछ देर बाद बस लाहौर के लिए रवाना हो गई। यहां बस के साथ पुलिस सुरक्षा और अधिक हो गई। पुलिस की एक खुली जीप और मोटरसाइकिल बस के आगे और एक पुलिस की गाड़ी बस के पीछे चलने लगी। लगभग 450 किलोमीटर की यात्रा 13 घंटों में पूर्ण करके हम शाम 7:00 बजे लाहौर पहुंच गए। बस स्टैंड से बाहर निकले तो हमारी बहन और उनके पति हमारे स्वागत के लिए उपस्थित थे। हम उनके साथ कार में बैठाकर घर के लिए रवाना हो गए। लाहौर पाकिस्तान का खूबसूरत शहर है और वहां का मौसम भी दिल्ली जैसा था। रास्ते में बाजार से गुजरते हुए हमें भारत और पाकिस्तान में कोई अंतर नहीं दिखाई दिया सिवाय इसके कि वहां दुकानों के बोर्ड उर्दू और अंग्रेज़ी में लिखे हुए थे। वरना उसी प्रकार सड़कों और बाजारों में भीड़। उसी प्रकार मोटरसाइकिल सवार हमारी कार के दाएं और बाएं दोनों ओर से आगे निकलते हुए दिखाई दिए। एक अंतर यह दिखाई दिया कि वहां साइकिल रिक्शा नहीं चल रहे थे।.  

जारी

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पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्‍तान, तो क्‍या हुआ पढ़िये दमदार संस्‍मरण

दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें:  पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्‍तानी

तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण

चौथा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा

पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: दरवाज़े पर ॐ  लिखा पत्‍थर और आंगन में तुलसी का पौधा

छठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे

सातवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक

आठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना

नौवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची के रत्‍नेश्‍वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता

दसवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान

11वां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची

12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़

 

(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्‍वतंत्र लेखन )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।