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पड़ाेस: अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान भोगेगा तालिबानी क्रूरता

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रंगनाथ सिंह, दिल्‍ली:

भारत का दुर्भाग्य है कि उसका पड़ोसी पाकिस्तान है। इस बात को वही समझ सकता है, जिसे ऐसा विघ्नसंतोषी पड़ोसी मिला हो। पाकिस्तान ऐसा पड़ोसी है जो पड़ोसी की एक आँख फोड़ने के लिए अपनी दोनों आँखें फुड़वाने को तैयार रहता है। पाकिस्तानी संगीत, क्रिकेट और लाहौर-पेशावर के किस्से तो मनोरंजन या मनबहलाव के साधन मात्र हैं। इन चीजों से हम इनसे बड़ी हकीकत को नहीं छिपा सकते। पाकिस्तान को भारत और कश्मीर का मैनिया है। यह बात छिपी नहीं है कि पाकिस्तान सेना संचालित मुल्क है जिसकी कीमत खुद पाकिस्तानी अवाम समेत पूरा भारतीय उपमहाद्वीप चुका रहा है। कुछ विद्वान अफगानिस्तान में तालिबान के उभार को मनोरंजन की तरह देख रहे हैं। जाहिर है कि दूसरे का घर जल रहा हो तो बहुत से लोग आग तापने चले जाते हैं। अफगानिस्तान में लोकतंत्र की हत्या करके बन्दूक के दम पर इस्लामी हुकूमत कायम करने का परिणाम अफगानिस्तान के बाद सबसे पहले पाकिस्तान भोगेगा। 

 

जिहादी लड़ाकों के तौर पर तालिबान को देखना

पाकिस्तानी का एक वर्ग अभी तक तालिबान को इस्लामी निजाम कायम करने वाले जिहादी लड़ाकों के तौर पर ही देख रहा है। पाकिस्तान के धर्मान्ध धर्म प्रचारक पहले से ही तालिबान के प्रति नरमदिल रखते रहे हैं। पाकिस्तानी सेना को भ्रम है कि वो तालिबान को नियंत्रित रख सकते हैं। जहाँ तक मैं समझता हूँ, अगर तालिबान का अफगानिस्तान पर स्थायी कब्जा हुआ तो पाकिस्तान को एक और विभाजन के लिए तैयार रहना चाहिए। बलूचिस्तान क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा है जिसमें मुल्क की करीब एक तिहाई जमीन आती है। तालिबान पहले ही पाकिस्तान में पाकिस्तानी तालिबान के तौर पर मौजूद हैं। पाकिस्तान का बलूचिस्तान का इलाका पूरी तरह अफगानिस्तान से लगा हुआ है और उस इलाके में तालिबानी पश्तून जिरगों की अच्छी मौजूदगी और पकड़ है। कोई कारण नहीं है कि तालिबान अपने कबीले को लोगों को अपने मुल्क में न शामिल करना चाहें। बलूचिस्तान के अलावा पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा सूबे में भी तालिबान का प्रभाव है। 

 

इमरान  खान उर्फ तालिबान खान 

पाकिस्तान के मौजूदा सरबरा इमरान खान, जिन्हें कभी तालिबान खान भी कहा जाता था, को कट्टपंथियों के संग हूतूतू खेलने का बहुत शौक रहा है। वो अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि उनका देश किधर जा रहा है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि अफगान से भारत के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं। तालिबानी शासन का भारत में एक ही दुष्प्रभाव दिखता है कि हमारे यहाँ भी कुछ वर्गों में कट्टरवादी इस्लामी विचारधारा को बढ़ावा मिलने लगता है लेकिन धार्मिक साम्प्रदायिकता से जूझने का हमारे देश को काफी तजुर्बा हो चुका है तो उम्मीद है कि भारत स्थिति को सम्भाल लेगा। पाकिस्तान को अपने बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिए।

 

(रंगनाथ सिंह हिंदी के युवा लेखक-पत्रकार हैं। ब्‍लॉग के दौर में उनका ब्‍लॉग बना रहे बनारस बहुत चर्चित रहा है। बीबीसी, जनसत्‍ता आदि के लिए लिखने के बाद संप्रति एक डिजिटल मंच का संपादन। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।