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'जग जीत' ने वाले के बारे में एक दोस्त के माध्यम से जानिए

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मनोहर महाजन, मुम्बई:

-होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो..बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो...

-तुमको देखा तो ये ख्याल आया, जिंदगी धूप, तुम घना छाया...

-तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,क्या गम है, जिसको छुपा रहे हो...

दशकों बीत जाने के बाद भी ये गज़लें किसी ताज़े फूल की तरह अपनी ख़ुशबू बिखेरती हैं। इन ग़ज़लों में ऐसी मिठास और दिलकशी है कि इंसान अपना सब कुछ भूलकर इसमें रम जाता है। यक़ीनन जब पहली बार आप मुहब्बत में गिरफ्तार हुए होंगे-तो ये गज़लें-आपकी साथी रही होंगी। ऐसी और ऐसी ही अनगिनत गज़लों को अपनी, कोमल, सुरीली, मीठी और खरजदार आवाज़ से अमर कर देने वाले जगजीत सिंह (8 फरवरी 1941-10 अक्टूबर 2011) और मेरा बम्बई, अब की मुंबई में आगमन एक ही समय में हुआ था। ख़ालिस उर्दू जानने वालों की 'मिल्कियत' समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में 'वाह-वाह की दाद" पर इतराती ग़ज़लों को आम-आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़,उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

ऐसी शख्शियत को नज़दीक़ से जानने और पहचानने का अवसर मुझे मुंबई के एक मशहूर रिकॉर्डिंग स्टूडियोज़ West&Outdoor में अक्सर मिला, जहाँ के एक स्टुडियो में वो अपनी गजलें रिकॉर्ड कर रहे होते और दूसरे में मैं अपने साप्ताहिक  रेडियो-प्रोगाम-"मोदी के मतवाले राही" और दूसरे दीगर प्रोग्राम। हम लोगों का लंच और शाम का नास्ता प्राय:साथ साथ होता। उन्हीं मुलाक़ातों की यादों से उभरी कई जानी-अन्जानी बातें आज मैं आपके साथ शेयर करने जा रहा हूँ। ये बातें रोचक भी हैं और जगजीत सिंह की शख्सियत के कई पहलुओं को उजागर करने वाली भी।

जगजीत सिंह के पिता की इच्छा थी कि वे इंजीनियर या आई.ए. एस.ऑफिसर बने। पर जगजीत के मन में गायकी के क्षेत्र में नाम कमाने की ख्वाहिश थी। कॉलेज के दिनों में ही पिता की जानकारी के बिना वो 'रेडियो' और स्टेज' पर गाते गाने लगे थे। जगजीत सिंह के पहले गुरु रहे, उसके गांव के आसपास के गुरुद्वारे जहाँ उसने शुरुआती संगीत सीखा। बाद में वो प्रसिद्ध संगीतकार पं. छगनलाल शर्मा के सम्पर्क में आये और उस्ताद जमाल खान के शिष्य भी रहे। जगजीत सिंह कुल 7 भाई-बहन थे। जिनमें उनकी 4 बहनें और 2 भाई शामिल थे। जालंधर में कॉलेज में अध्ययन करते हुए ही जगजीत सिंह ने "ऑल इंडिया रेडियो' के लिए गाने और संगीत देने का काम  शुरू कर दिया था। जगजीत सिंह ने हरियाणा की "कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी" से इतिहास में 'पोस्ट ग्रेजुएशन' किया था। श्रीगंगानगर राजस्थान की सीमाओं से बाहर निकल कर जगजीत सिंह तब की बम्बई तो आ गये, पर परिवार की आर्थिक-स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी बम्बई में उनका परिवार उन्हें स्पोर्ट कर सके। यही वजह थी कि अपने शुरुआती दिनों में जगजीत सिंह शादियों में परफोर्म कर अपना गुजारा करते थे। ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक 1967 में जगजीत सिंह की मुलाकात एक 'रेडियो जिन्गल' की रिकॉर्डिंग के  दौरान चित्रा दत्ता से नहीं हुई, जो ख़ुद एक बहुत अच्छी गायिका थीं। पहले जगजीत की 'सादगी' और बाद में उनकी 'गायकी' पर फ़िदा होकर  उन्होंने अपने पहले पति को तलाक़ देकर उससे शादी कर ली।शादी होते ही जगजीत का सितारा अपनी चमक बिखेरने लगा। अपनी पत्नी चित्रा के साथ जगजीत सिंह ने 1970 और 1980 के बीच पूरे एक दशक तक बेशुमार गज़लें गाकर गज़लों की दुनिया में 'गज़ल-किंग' का खिताब हासिल किया। जगजीत सिंह और चित्रा की जोड़ी के गाये फिल्म-'अर्थ' और 'साथ'साथ' के गानों ने धूम मचा दी।

एच.एम.वी.द्वारा रिलीज़ इस जोड़ी के गाये albums ने बिक्री के नये रिकॉर्ड क़ायम किये। यही नहीं, आगे चलकर जगजीत सिंह ने लता मंगेशकर के साथ गा कर एक नये  नॉन फिल्मी एलबम का निर्माण किया।एच.एम.वी.द्वारा ये अलबम भी का सबसे अधिक बिकने वाला एलबम साबित हुआ।जगजीत सिंह ने कई भाषाओं में गाया है। भारत सरकार द्वारा उन्हें 2003 में 'पद्मभूषण' से नवाज़ा जा चुका है। साल 2014 में भारत सरकार ने जगजीत सिंह के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। अपने 5 दशक लंबे करियर में जगजीत सिंह ने करीब 80 एलबम बनाये और गाये।


जगजीत सिंह ने गज़ल और गज़ल की रूपोश होती जा रही विधा में अपनी गायकी से नई ऊर्जा दी बल्कि उसे ज़मीन से उठाकर आसमान की बुलंदियों तक पहुँचाया, उसे आम-फ़हम तक पहुँचाया-लोकप्रिय बनाया। जगजीत सिंह अकेले ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिखे गानों को गाया और संगीतबद्ध किया। जगजीत सिंह शायद पहले गायक थे, जिन्होने गीतकारों को किसी एलबम की कमाई में हिस्सा दिए जाने की शुरुआत की। प्रसिद्ध गायक कुमार शानू को बॉलीवुड गायिकी में  पहला ब्रेक देने वाले भी जगजीत सिंह थे। जगजीत सिंह के 1982 में हुए कंसर्ट 'लाइव एट रॉयल अल्बर्ट हॉल' के टिकट 3 घंटे में ही बिक गए थे।जगजीत सिंह का 1987 में जारी एलबम 'बियॉन्ड टाइम' भारत का ऐसी पहला एलबम था जिसे डिजिटली रिकॉर्ड किया गया था।

सब कुछ अच्छा चल रहा था। माँ सरस्वती और लक्ष्मी दोनों हाथों से उन पर  अपनी कृपा लुटा रही थीं। तभी काल के क्रूर हाथों ने 1990 में  कार-दुर्घटना में उनके 21वर्षीय पुत्र विवेक को उनसे छीन लिया। इस आकस्मिक आघात ने जगजीत सिंह और उनकी पत्नी चित्रा को अंदर तक तोड़ दिया। चित्रा ने उसके बाद से एक भी परफॉरमेंस नहीं दिया। जगजीत सिंह अकेले ही अपने इस आघात को दबाते हुए गाते रहे-और गज़ल की दुनिया को और मालामल करते रहे। 2011 में यूनाइटेड किंग्डम का टूर खत्म कर जब जगजीतसिंह भरत लौटे तो उन्हें मुंबई में एक शो करना था, पर तभी वे 23 सितंबर 2011 को 'सेरेब्रल-हेमरेज' से ग्रसित हो गए।  क़रीब 2 हफ्ते कोमा में रहे और 10 अक्टूबर 2011 को वो इस  फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गये। एक शायर ने जगजीत सिंह की आवाज़ से मत्तासिर होकर क्या ख़ूब कहा था:

मेरे लफ़्ज़ों को जो छू लेती है, आवाज़ तेरी।
सरहदें तोड़ के उड़ जाते हैं, अल्फ़ाज़ मेरे।

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।