पुष्परंजन, दिल्ली:
आर्यन ख़ान आखिर आर्थर जेल से रिहा हो चुके। इस रिहाई के साथ कई सवाल हैं। दरअसल, यह हाई प्रोफाइल प्रकरण हिंदू-मुस्लिम, दलित बनाम सवर्ण की लड़ाई को दरपेश नहीं कर रहा। इसका सीधा संबंध सत्ता व नौकरशाही के दुरुपयोग से जुड़ चुका है, जिसके लिए एक ऐसे 'आइकॉनिक पृष्ठभूमि' वाले युवक को चुना गया, जो लंबी अवधि तक पूरे देश का ध्यान उलझा कर रखे। तीन हज़ार किलो हेरोइन की ख़बर को 2. 6 ग्राम गांजे की ख़बर से कैसे दबा देनी है, यह अद्भुत अदा इसी सरकार में मिलेगी। बात 24 साल पहले की है। 1997 में सिमी ग्रेवाल शो होस्ट कर रही थीं, जिसमें शाहरुख़ ख़ान और गौरी छिब्बर ख़ान स्क्रीन पर नमूदार थे। इस इंटरव्यू के तीन हफ्ते पहले आर्यन का जन्म हो चुका था। जैसा कि सिमी ग्रेवाल प्रोग्राम होस्ट करते समय आदतन निजी सवाल पूछती थीं। उस मौके पर भी पूछ ही लिया, 'आप आर्यन की कैसी परवरिश करना चाहेंगे?' और जो जवाब शाहरूख़ ख़ान ने उस वक्त दिया था, कई अखबारों की हेडलाइन बनी थी। एसआरके ने कहा, 'मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा जब तीन-चार साल का हो जाए, मैं उससे कहूंगा कि वो लड़कियों के पीछे जा सकता है। ड्रग्स ले सकता है। वुमनाइजिंग कर सकता है। बेहतर हो कि वो ये सब जल्दी शुरू कर दे, जो मैं नहीं कर सका था। अगर आर्यन घर से बाहर जाता है, तो मैं चाहूंगा कि मेरे साथ काम करने वाले लोग, जिनकी बेटियां हों, वह मेरे पास आकर उसकी शिकायत करें।'
अब पता नहीं, उस वक्त किस रक़ीब या रफ़ीक़ के दिल से 'आमीन' निकला होगा। क़ुदरत ने क़ुबूल कर ली, और शाहरुख़ ख़ान की बरसों दबी ख्वाहिश पूरी हो गई। शाहरुख़ की बेटी सुहाना का जन्म तीन साल बाद सन् 2000 में हुआ था, मगर ऐसी ख्वाहिश उन्होंने अपनी बेटी के लिए क्यों नहीं व्यक्त की? यों भी, भारतीय पिता अपनी पुत्री के लिए ऐसी कामना नहीं करता। कल्पना तक नहीं। पितृसत्तात्मक समाज में जीते हैं हम सब। बेटियां नशा करें, लड़कों के पास जाएं, पूरे ख़ानदान की इज्जत दांव पर लग जाती है। बेटा कृष्ण कन्हैया हो, दीवार फांदें, पैग लगाये या सुट्टा मारे, अधिकांश बाप ऐसे होते हैं, जिन्हें कुछ ख़ास फर्क़ नहीं पड़ता। बल्कि, कई लोग बिगडै़ल संतान को लेकर शान बघारते हैं। शाहरुख़ अपने बेटे से दीन पर चलने की नसीहत नहीं दे सकते। ये सब मदरसों में तालीम लेने वाले छात्रों या फिर मिडिल क्लास लोगों के बच्चों तक सीमित है। आर्यन जेल गये, तो उनके दादा मीर ताज मोहम्मद ख़ान की दुहाई दी गई, जिन्होंने सीमांत गांधी ख़ान अब्दुल गफ़्फार ख़ान की 'ख़ुदाई खिदमतगार आंदोलन' में हिस्सेदारी ली थी। अफसोस, जो आइकॉन बन जाते हैं, उनके लिए विरासत वक्त, बे-वक्त छवि निर्माण के काम आता है, जैसे घर के किसी कोने में धूल फांकते मेडल।
पुत्र 27 दिन जेल में रहा, और पिता खामोश। किंग ख़ान मुंह खोले तो कैसे? जो पाया है, उसे खोने का डर है। कोर्ट ने आर्यन को एक लाख मुचलके और 14 शर्तों के साथ ज़मानत का आर्डर दिया है. उसे हर जुम्मे को अदालत में हाज़िर होना है। किसी के आगे मुंह नहीं खोलना है, ख़ुसूसन मीडिया से। आर्यन शनिवार की सुबह जेल से रिहा हो चुके. जो 14 शर्तें लगायी गयी हैं, ज़रा सा उसका उल्लंघन हुआ, ज़मानत रद्द और वापिस जेल के अंदर. आर्यन जेल से बाहर तो हो गए, मगर बंदिशों से बाहर नहीं। अदालत को ज़मानत देने में 25 दिन लगे, फिर भी जय-जय हो रही है। जनता जर्नादन भी कमाल है। ज़मानत में विजय और कोर्ट में पंच परमेश्वर नज़र आने लगा। भूलिए मत, यही जनता एक पल में आपको ख़ुदा से ख़ाक बना देती है। इस कांड से पहले नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के वाइस चांसलर फैज़ान मुस्तफा को 'लीगल अवेयरनेस वेब सीरीज़ ' बनाने की ज़रूरत क्यों नहीं पड़ी? नारकोटिक्स मामलों के हज़ारों अंडर ट्रायल ज़मानत के इंतज़ार में महीनों-बरसों से इस देश की जेलों में पड़े हैं। 1985 में नारकोटिक्स सब्सटेंस एक्ट को फाइनांस एक्ट 2016 के ज़रिये संशोधित कर लागू किये जाने में कई सारे झोल को फ़ैज़ान मुस्तफा रेखांकित करते हैं। फ़ैज़ान मुस्तफा ज़रा सा ड्रग यूज़ करने, और धंधे के वास्ते ड्रग की बड़ी खेप के फर्क को समझाते हैं। किलो, आधा किलो ड्रग धंधे के वास्ते, और कुछ ग्राम इस्तेमाल के वास्ते. उन्होंने यह भी बताया, 'ड्रग एडिक्ट के लिए नार्को क़ानून यहां तक छूट देता है, कि उसकी तड़प शांत करने के वास्ते उसे डोज़ उपलब्ध कराओ, क्योंकि एक जीवन बचाना हैं।' ठीक बात है, समझना चाहिए इस क़ानूनी झोल को, और कोर्ट के रवैये को। मगर, आज ही क्यों सबकी चेतना जाग्रत हुई है?
सवाल यह है, क्या आर्यन इस देश के युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं? इस देश में एक टॉप क्लास है, जिनमें बच्चों को विदेश पढ़ाने और ख़र्चीली लाइफ स्टाइल दिखाने की होड़ लगी है। उनकी नकल करता है अपर मिडिल क्लास। उनके पास समय नहीं है, यह देखने के वास्ते कि उनके बच्चे क्रूज़ पर जाकर क्या कर रहे हैं, चैटिंग किससे कर रहे हैं? शान इसमें है कि उनकी छुट्टियां यूरोप के किसी आइलैंड पर गुज़रना चाहिए। हर सीज़न में नई गर्लफ्रेंड हो, तो वंडरफुल। यही बच्चे लाखों-करोड़ों और अपना सब कुछ लुटाने वाले पेरेंट्स को एक झटके में जवाब दे देते हैं, 'माइंड योर ओन बिजनेस।' पर प्रश्न है, ये खाये-पिये अघाये लोग अक्खा इंडिया हैं क्या? जी नहीं, ये मात्र दसेक फीसद उच्चवर्गीय बच्चे होंगे, जिनके नशेड़ी होने की वजह बेरोज़गारी, आर्थिक तंगी, काम-धंधे का छूट जाना नहीं होता है, संत्रास, सानिहा, इमोशनल कारण अधिक होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र का नशा व अपराध निरोधक कार्यालय (यूएनओडीसी) ने वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 जारी करते हुए जानकारी दी थी कि पूरी दुनिया में साढ़े सताइस करोड़ लोग नशे के आदी हैं। भारत में अफीम युक्त दर्द रोधक दवाओं (ओपिओइड) के यूजर्स, दो करोड़ 30 लाख हैं। एम्स की 2021 में जारी रिपोर्ट बताती है कि 18 लाख युवा और 4 लाख 60 हज़ार बच्चे सबसे बदतर हालत में हैं, जिनसे नशा छुड़वाना असंभव सा लगता है। हम यह भी नहीं कह सकते कि वर्तमान सरकार लोगों में बढ़ते नशे की लत को लेकर सरोकार नहीं रखती। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 2019 में 87 पेज की रिपोर्ट जारी कर बाकायदा जानकारी दी थी कि देश में 10 से 75 साल की उम्र के 16 करोड़ लोग अल्कोहल लेते हैं। यह कुल आबादी का 14.6 प्रतिशत है। तीन करोड़ 10 लाख लोग (जो जनसंख्या के 2.8 फीसद हैं) ड्रग एडिक्ट हैं। 87 पन्नों की इस रिपोर्ट में नशे के प्रकार, इसके सेवन करने वाले, और समाज का जो तबका इससे प्रभावित है, लगभग सारी सूचनाएं समेटने की कोशिश की गई है। मगर अफसोस, आंकड़ों से लदी सूचनाएं, समाधान नहीं बतातीं।
25 जून 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले एक ट्वीट के ज़रिये, और उसके प्रकारांतर मन की बात कार्यक्रम में देश में नशे की बढ़ती लत को लेकर चिंता व्यक्त की थी। जब 14 सितंबर 2021 को गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर डीआरआई के अफसर 21 हज़ार करोड़ के 2988. 21 किलो हेरोइन जब्त करते हैं, तब सत्ता प्रतिष्ठान की खामोशी पर सवाल तो उठता है। सत्तर साल में देश की सबसे बड़ी ड्रग जब्ती। कहां? मुंद्रा पोर्ट पर, जिसकी पूरी टाउनशिप पर अडानी परिवार राज करता है। अब जांच अधिकारियों को देखिए, वो बेचारे विजयवाड़ा स्थित मेसर्स आडी ट्रेडिंग, जिसने अफग़ानिस्तान से 'सेमी प्रोसेस्ड टेल्कम पाउडर' का आयात ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से किया था, वहीं तक महदूद थे। उनके आगे अदृश्य लक्ष्मण रेखा खींच दी गई कि अडानी पोर्ट्स एंड लॉजिस्टक की तरफ पलट कर नहीं देखना है। तीन हज़ार किलो हेरोइन की ख़बर को 2. 6 ग्राम गांजे की ख़बर से कैसे दबा देनी है, यह अद्भुत अदा इसी सरकार में मिलेगी। विषय को दूसरी दिशा में मोड़ दो, विमुख कर दो।
दिलचस्प है, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवन्यू इंटेलीजेंस के अफसरों ने तीन हज़ार किलो हेरोइन को पकड़ा, इसकी जांच गृह मंत्रालय ने 'एनआईए' के हवाले कर दिया। अब समझ में नहीं आता नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और कस्टम विभाग को किस काम के वास्ते रखा गया है़? मार्च 1986 में 'एनसीबी' की स्थापना हुई थी। पता करना चाहिए कि 1986 से 2014 तक यूपीए-टू के समय गृह मंत्रालय के अधीन इस महकमे का दुरूपयोग हुआ था, या नहीं? हुआ भी होगा, तो इतनी नंगई शायद ही।
'एनसीबी' के एक अफसर समीर वानखेड़े की वजह से यह विभाग पिछले कुछ समय से 'द ग्रेट बाम्बे सर्कस' बना हुआ है। गुरूवार को एक तरफ आर्यन की ज़मानत की सुनवाई हो रही थी, दूसरी तरफ समीर वानखेड़े करप्शन मामले में किसी गिरफ्तारी से बचने के लिए मुंबई हाइकोर्ट पहुंचे हुए थे। महाराष्ट्र सरकार ने अदालत से स्पष्ट किया कि 72 धंटे की पूर्व सूचना पर ही हमारी कोई कार्रवाई होगी। अभी केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग को यह सुनिश्चित करना बाक़ी है कि समीर के जन्म के समय उसके पिता मुस्लिम धर्म कुबूल चुके 'दाउद वानखेड़े' थे, या कि दलित ज्ञानदेव वानखेड़े? दूसरा, यदि समीर ने अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाया है, तो डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग (डीओपीटी) द्वारा 19 मई 1933 के सर्कुलर के अनुसार, बर्खास्तगी और जेल दोनों भुगत सकता है।
दरअसल, यह हाई प्रोफाइल प्रकरण हिंदू-मुस्लिम, दलित बनाम सवर्ण की लड़ाई को दरपेश नहीं कर रहा, इसका सीधा संबंध सत्ता व नौकरशाही के दुरूपयोग से जुड़ चुका है। जिसके लिए एक ऐसे युवक को चुना गया, जो लंबी अवधि तक पूरे देश का ध्यान उलझा कर रखे। ऐसा लगता है, इस मामले को एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र सरकार के माइनॉरिटी मंत्री नवाब मलिक अंजाम तक पहुंचाकर ही रहेंगे। शाहरुख ख़ान अपने बेटे को लेकर चुप हैं, मगर, नवाब मलिक दामाद की वजह से ख़ुद के दामन पर लगे द़ाग को धोने के वास्ते हर रोज़ नये खुलासे कर रहे हैं। नवाब मलिक ने जितने खुलासे किये, उससे लगता हैं कि समीर वानखेड़े नामक अफसर माया नगरी में वसूली अफसर के रूप में 'कुख्यात' रहा है. यदि ऐसा है, तो गृह मंत्रालय को इसे पहले से संज्ञान में लेना चाहिए था, क्योंकि एनबीसी उसी के अधीन है,
फ्राड मामले में कथित प्राइवेट जासूस किरण गोसावी, पुणे पुलिस की गिरफ़्त में है। वह क्या खुलासा समीर वानखेड़े से गठजोड़ की करता है, उसका इंतज़ार करना होगा। मुझे एक घटना समीर वानखेड़े के बैचमेट को लेकर याद आ रही है, जो पश्चिम चंपारण में मेरे पड़ोस का क़स्बा चनपटिया का था। उसका वास्तविक नाम था राजेश कुमार शर्मा। राजेश ने किसी नवनीत कुमार की ग्रेजुएशन वाली डिग्री चुराई, और उसी नाम से उसने यूपीएससी क्लियर कर लिया। वह कहीं अच्छे पोजिशन पर तैनात था। अक्टूबर 2019 में 'आईआरएस अधिकारी नवनीत कुमार' उर्फ राजेश कुमार शर्मा का फर्जीवाड़ा सीबीआई ने पकड़ा, और उसे जेल भेज दिया।
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(कई देशी-विदेशी मीडिया हाउस में काम कर चुके लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। संंप्रति ईयू-एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक।)
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