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सदियों से सामंती समाज के जकड़न में फंसे बिहार को लालू यादव ने मुक्त कराया

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शिवानंद तिवारी, पटना:
बीच के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो भाजपा गठबंधन वाली नीतीश सरकार बिहार में अपने चौथे कार्यकाल में है। शासन में लगातार बने रहने कि यह लंबी अवधि है। सुशासन तथा विकास की भारी दावेदारी है। इसके बावजूद सरकार के लोगों में  आत्मविश्वास की इतनी कमी क्यों दिखाई देती है ! इनके नेताओं के रोजाना बयान को ही देखा जाए। लालू यादव को लेकर घीसा-पीटा रेकॉर्ड बजाने के अलावा इनके पास बोलने के लिए दूसरा कोई मसला नहीं है। बार-बार भ्रष्टाचार, नाजायज संपत्ति, होटवार जेल, इन्हीं बातों को तोता की तरह रोज रटते हैं। मुझे गंभीर संदेह है कि इन बयानों को लोग पढ़ते भी होंगे। इनमें कौन सी बात है जो बिहार की जनता से छिपी हुई है !
हम जानना चाहेंगे कि सारे आरोपों के बावजूद क्या वजह है कि लालू की शारीरिक अनुपस्थिति के बावजूद तेजस्वी के नेतृत्व में उनका दल बिहार में सरकार बनाते बनाते रह गया ! सुशासन और विकास  की दावेदारी पर गंभीर संकट क्यों उपस्थित हो गया था ! लालू जी को रोज गरियाने वाले लोग इस रहस्य को समझ नहीं पाएंगे। भविष्य में बिहार की राजनीति और समाज का इतिहास जरूर लिखा जाएगा। निश्चित रूप से उसमें एक अध्याय होगा। उसका शीर्षक होगा, लालू के पहले का बिहार और लालू के बाद का बिहार।

पहले वोट के दिन कमजोर और वंचित लोग टुकुर-टुकुर बस देखते रहते 
सदियों से सामंती समाज के जकड़न में फंसे बिहार को लालू यादव ने उस जकड़न से मुक्त कराया है। लालू यादव के पहले जो चुनाव होते थे, पुराने लोगों को उसका स्मरण होगा। वोट मांगने वाले वोटर के दरवाजे पर नहीं जाते थे। गांव के रसूखदार और जमीन जायदाद वाले तथाकथित मानिंद लोगों के दरवाजे पर बैठकी लगती थी। दिव्य भोजन होता था। आश्वासन मिल जाता था। जाइए यहां से निश्चिंत रहिए ! वोट के दिन कमजोर और वंचित लोग मतदान केंद्रों की तरफ टुकुर-टुकुर देखते रहते थे।

लालू यादव ने तोड़ी सामंती परंपरा 
लालू यादव ने इस सामंती परंपरा को तोड़ दिया। जो तुम्हारे बाप को प्रणाम करे, उसी को तुम प्रणाम करो। कमजोर लोगों को हीनता की बोध से मुक्त कराया. समाज का लोकतांत्रिकरण किया। चुनाव लड़ने वालों को अब वोट मांगने के लिए मुशहर के दरवाजे पर भी जाना पड़ता है। वहां भी वोट के लिए हाथ जोड़ना पड़ता है। उनकी भी दो बात सुननी पड़ती है। यह सत्य है कि नीतीश जी ने अति पिछड़ों को पंचायत और नगर निकायों के चुनाव में आरक्षण दिया।  हालांकि नौकरियों और पढ़ाई लिखाई में तो उनको आरक्षण कर्पूरी ठाकुर जी ने ही दे दिया था।  कर्पूरी जी के आरक्षण का जिस प्रकार विरोध हुआ था वह भी हम लोगों ने देखा है।

वंचित समाज लालू यादव के अवदान को भूला नहीं है
अगर लालू यादव ने मंडल कमीशन की लड़ाई नहीं लड़ी होती और बिहार के  सामंती समाज के आरक्षण विरोध को मजबूती के साथ दबा नहीं दिया होता तो नीतीश जी के लिए अति पिछड़ों को आरक्षण देना संभव नहीं था। बिहार के उस सामंती समाज ने इनको हवा में उड़ा दिया होता। बिहार का वह कमजोर और वंचित समाज लालू जी के उस अवदान को भूला नहीं है। लालू जी की यही ताकत है और इसी जमीन पर खड़ा होकर पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने नरेंद्र मोदी सहित नीतीश कुमार को पानी पिला दिया था।  लालू जी का आज जन्मदिन है। इस अवसर पर मैं उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की शुभकामना देता हूं। 



(बिहार के भोजपुर में जन्मे लेखक शिवानंद तिवारी देश की लोहियावादी बिरादरी के अहम स्तंभ हैं। सेकुलरिज्म और समाजवादी विचारों के लिए उनकी पहचान है। राजद के उपाध्यक्ष हैं। राज्यसभा सांसद भी।) 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।