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16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाए जाने की अपील क्यों कर रहा एक लेखक, जानिये

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प्रेमकुमार मणि, पटना: 

बहुत लोग हैं जिन्हे 16 दिसम्बर 1971 की तारीख भूली नहीं होगी। इस रोज पाकिस्तान दो हिस्सों में विभक्त हो गया था और उसकी लगभग एक लाख हथियार सहित सेना का ढाका में आत्मसमर्पण हुआ था। यह न केवल भारतीय इतिहास की, बल्कि पूरे विश्व के युद्ध इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था, जब इतनी संख्या  में सशत्र फ़ौज ने घुटने टेक  दिए थे। आज उस घटना की पचासवीं सालगिरह है। मैं  खुद को खुशकिस्मत समझाता हूँ कि इस पूरे अभियान के एक हीरो जगजीतसिंह अरोड़ा से मिलने और उनके साथ चंद लम्हे गुजारने का अवसर मुझे मिला। आज उस मुलाकात को भी याद कर रहा हूँ। 

बांगलादेशाचा निर्माता...

 

नई पीढ़ी को शायद यह बात थोड़े विस्तार से बतलानी होगी।  तब पाकिस्तान दो हिस्सों में था -पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पकिस्तान। दिसम्बर 1970 में पाकिस्तान में केंद्रीय असेम्बली के चुनाव हुए। इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश ) के लोकप्रिय नेता शेख मुजीब की पार्टी अवामी लीग को बहुमत मिला। पाकिस्तानी केंद्रीय असेम्बली की कुल 313 सीटों में से अवामी लीग को 169 सीटें मिली। पूर्वी पाकिस्तान की कुल 169 सीटों में से 167 सीटें ज़ुल्फ़िकार अली  भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को कुल 88  सीटें मिली थीं। लेकिन भुट्टो ने राष्ट्रपति याहिया खान और सेना की मदद से मुजीब को सत्ता सौपने की जगह पूर्वी पाकिस्तान पर दमन शुरू कर दिया। हज़ारों लोग मौत के घाट उतार दिए गए। मुजीब को बंदी बना लिया गया।भारत की जनता ने एतराज प्रदर्शित  किया। मार्च 1971 में भारत में भी चुनाव थे। इस चुनाव में इंदिरा गाँधी दो तिहाई के बहुमत से जीतीं। उन्होंने पद सँभालते ही पाकिस्तान के मामले में दखल दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मामला सुलझाने की कोशिश की गई। यह संभव नहीं हुआ। पाकिस्तान अमेरिका और चीन के बूते गुमान में था। अंततः भारत -पाक युद्ध  हुआ। 3 से 16 दिसम्बर तक चले युद्ध का अंत पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण में हुआ।  जनरल मानेक शॉ तब सेनाध्यक्ष थे। उस क्षेत्र के भारतीय सैन्य अधिकारी जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष पाकिस्तानी फौजी कमांडर जनरल नियाजी ने घुटने टेक  दिए थे। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि बाबू जगजीवन राम तब रक्षा मंत्री थे और इंदिरा गाँधी तब मुल्क की प्रधानमंत्री थीं।

 

Fifty Years of Liberation of Bangladesh from Pakistan - TheLeaflet

 

मैं उस वक़्त अपनी तरुणाई में था। फिर भी सब कुछ याद है। 3 दिसम्बर को कोलकाता में श्रीमती गाँधी भाषण दे रही थीं। तब आकाशवाणी ही मुख्य प्रसारण साधन था। इस भाषण को उसके सभी केन्द्रों ने सीधे  प्रसारित किया  था। हमलोग गांव में थे। भाषण सुन रहे थे- ' हमारे पड़ोस में इतनी ज्यादती हो और हम चुपचाप मूकदर्शक कैसे रह सकते हैं। डेढ़ करोड़ शरणार्थी आये हुए हैं। उनके प्रति हम अमानवीय नहीं हो सकते। पाकिस्तान ने तो एक तरह से हम पर युद्ध थोप दिया है. .... ' और रेडियो का संपर्क कट गया। हमलोग अपने ट्रांसिस्टर के कान उमेठते रह गए। केवल घर्र-घों की आवाज। फिर भी हमलोगों ने रेडियो नहीं छोड़ा। बहुत देर बाद रेडियो चालू हुआ।  पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री दिल्ली रवाना हो चुकी हैं। भारतीय सेना तेजी के साथ आगे बढ़ रही है ..जैसे वाक्यांश थे।


वह कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं था। न ही अपने मुल्क में लड़ा गया कारगिल युद्ध वह ऐतिहासिक युद्ध था। अमेरिका और चीन की धमकियाँ शुरू हो गईं और अमेरिका का जबरदस्त सातवां बेडा भारत केलिए निकल चुका था। लेकिन इंदिरा ने एक नहीं मानी सोवियत रूस ने जरूर साथ दिया और ज्यादातर मुस्लिम देशों ने भी। यह इंदिरा गाँधी की विदेश नीति थीं। मात्र चौदह दिनों ( महाभारत से चार दिन कम ) के संग्राम में पाकिस्तान दो टुकड़े हो गया। यह पौराणिक रामायण वाले युद्ध से भी कुछ बातों में  अधिक महत्वपूर्ण था। शेख मुजीबुर्रहमान पाकिस्तान की जेल में बंद थे।  उनकी रिहाई के लिए श्रीमती गाँधी ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाया। मुजीब छोड़े गए। उन्हें आज़ाद बांग्लादेश सौंप दिया गया। भारत की अपनी समस्याएं थीं, लेकिन उसने बांग्लादेश के नवनिर्माण में महती भूमिका निभाई।


सोमनाथ के पतन के बाद से हिन्दुस्तानियों की हार का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह लगभग हज़ार वर्षों के बाद अब एक जीत में बदला था और इसके नायक कौन थे ? एक स्त्री (श्रीमती इंदिरा गाँधी ) एक शूद्र (बाबू जगजीवन राम ) दो अकलियत ( जनरल मानेक शॉ और जगजीत सिंह अरोड़ा )।
16 दिसम्बर को सचमुच विजय दिवस के रूप में हर वर्ष आयोजित करना चाहिए जब देश में सामाजिक एकता रहेगी तब देश राष्ट्र बन जायेगा और यह एकता टूटेगी, तब खाप पंचायत . हमें तय करना होगा कि  भारत को खाप पंचायत बनाना है या एक राष्ट्र।

 

(प्रेमकुमार मणि हिंदी के चर्चित कथाकार व चिंतक हैं। दिनमान से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक पांच कहानी संकलन, एक उपन्यास और पांच निबंध संकलन प्रकाशित। उनके निबंधों ने हिंदी में अनेक नए विमर्शों को जन्म दिया है तथा पहले जारी कई विमर्शों को नए आयाम दिए हैं। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।