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रांची में ‘रौशन हुई आज़ादी’, शेर-ओ-शायरी और गजल से देर शाम तक महफिल में गूंजती रही तालियां

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द फॉलोअप टीम, रांची
शाह रेसीडेंसी के पांच साल पूरे होने पर ‘रौशन हुई आजादी’ नाम से रांची के कलाल टोली में शेर-ओ-शायरी और गजल का दौर चला। इस खास शाम को यादगार बनाने के लिए शहर के जानेमाने शायर, गजल गायक और कवि इकट्ठा हुए थे। इस दौरान कलाल टोली स्थित शाह रेसीडेंसी में देशभक्ति के जज़्बे ने जमकर अंगड़ाई ली। शहरोज़ क़मर ने लॉकडाउन का चित्रण करते हुए खास तरीके से लोगों को आजादी की मुबारकबाद दी। शहरोज कमर ने सूनी गली दुकान को, पीले पहलवान को, खेत को किसान को, हर खास ओ आम को, आज़ादी मुबारक हो नाम की शायरी से समा बांधा। वहीं उनके मीठे स्वर में गूंजी ग़ज़ल ' कहीं आने नहीं देता कहीं जाने नहीं देता, वो मेरे पास अंधेरे को कभी छाने नहीं देता' पर महफिल में शामिल श्रोता वाह-वाह करते नजर आए। कार्यक्रम के संचालक के रूप में मौजूद युवा शायर सुहैल सईद ने तुम राम को समझो तो फिर रहमान को समझो, गीता को अगर समझो तो कुरान को समझो, हिंदू को अलग और ना मुसलमान को समझो, इंसान अगर हो तो फिर इंसान को समझो, शायरी से सबका दिल जीत लिया। इस महफ़िल में वरिष्ठ कवि सुब्रत चटर्जी के शेर ‘कितनी लंबी फेहरिस्त है पैबंद की, ज़िन्दगी क्या है एक पैरहन के सिवा’ पर भी महफिल तालियों से गूंज उठी। इसके अलावा उन्होंने काव्य पंक्ति 'वे अंधा नहीं बनाते, अंधेरा फैलाते हैं का भी पाठ किया। 

देर शाम तक गूंजती रही तालियां
वरिष्ठ शायर ख़ुमार शेरघाटवी ने भी खूब तारीफें बटोरी। उन्होंने अपने शेर ‘आग सीने में लगाई है तो फिर लिक्खी है ग़ज़ल, नींद पलकों में सजाई है तो लिक्खी है ग़ज़ल’ से चार चांद लगा दिए। इस दौरान युवा कवि तीर्थनाथ आकाश की कविता ने भी झारखंड और आदिवासियों का दर्द बयां किया। वहीं, हुसैन कच्छी और डॉ सरवर साजिद की नज़्म और गज़ल से भी श्रोता रूबरू हुए। डॉ मंज़ूर अहमद, अक़ीलुर्रहमान आदि ने भी रचना का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रांतीय उपाध्यक्ष हाजी मौलाना तहजीबुल हसन ने मुल्क की तरक़्क़ी और सलामती के लिए परिश्रम, सच्चरित्रता और ईमानदारी पर बल दिया। बक़ौल एक हिंदी कवि उन्होंने कहा कि कविता आदमी होने की तमीज़ बताती है। मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी, कहीं न कहीं फिर मुलाक़त होगी, डॉ बशीर बद्र के इस शेर के साथ युवा पत्रकार आदिल रशीद ने आभार ज्ञापन किया। 

कोरोना के कारण कम लोग हुए उपस्थित
कोरोना के कारण कार्यक्रम में सीमित लोग उपस्थित रहे। लेकिन फेसबुक लाइव से इसका प्रसारण जारी रहा। मौके पर आयोजक शाह उमैर, मौलाना डॉ उबैदुल्लाह क़ासमी, निहाल अहमद, नदीम खान, औरंगज़ेब, सुनीता मुंडा, डॉ नाज़िश हसन, अब्दुल मन्नान, आज़म अहमद, मो बब्बर, नवाब चिश्ती, , मोहम्मद मुस्तक़ीम, एमएस हुसैन, अरशद क़ुरैशी और अब्दुल ख़ालिक़ आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।