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खपरैल वाले मकान से टोक्यो ओलंपिक्स तक, चुनौतियों से भरा रहा हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे का सफर

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द फॉलोअप टीम, डेस्क: 

खपरैल की छत भींगी हुई दीवारें और बांस के झुरमुट से भरा आंगन। ये पक्के इरादों वाली सलीमा टेटे का कच्चा मकान है। सलीमा टेटे, हमें उम्मीद है कि ये नाम आपके लिए अब अनजान नहीं रहा होगा। जब आप और हम तड़के अपनी आंखें मींच ही रहे थे तब हजारों किलोमीटर दूर टोक्यो के मैदान में इतिहास लिखा जा रहा था। इतिहास जो जीवंत है। महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों ने वो कर दिखाया कि उसकी तस्वीरें किसी जीवंत दस्तावेज की तरह आंखों में छप गई। रच बस गई है। इसी टीम की अहम सदस्य हैं सलीमा टेटे। अपने झारखंड की सलीमा टेटे। 

मिट्टी के कच्चे मकान से टोक्यो तक की यात्रा
मिट्टी के मकान में मिट्टी के चूल्हे पर कालिख पुती हांडी पर पकता खाना वैसे तो काफी आम है। गरीबी की निशानी है लेकिन अब ये आम नहीं रहा। जैसे ही यहां की माटी से जन्मी एक बेटी ने टोक्यो में हिंदुस्तान की पताका फहराई तो सब खास हो गया। विशेष हो गया। इसी आम से खास हो जाने के सफर की ध्वजवाहक बनी हैं सलीमा टेटे। आंगन में प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठे ये साधारण से दिखने वाले लोग उस असाधारण लड़की के संघर्षों, मुश्किलों, कामयाबी, नाकामयाबी सहित तमाम उतार चढ़ाव के साथी हैं। ये सलीमा टेटे का परिवार है। शांत से दिखने वाले ये चेहरे कितने गौरवान्वित होंगे, इसका अंदाजा हम और आप नहीं लगा सकते। 

करोड़ों बच्चों के हाथों में हॉकी स्टिक दिखेगी
हाथ में हॉकी स्टिक लिए ये बच्चा भले ही ओलंपिक का मतलब ना समझता हो। उसे नहीं पता कि गोल्ड, सिल्वर या ब्रांच जीतने के मायने क्या हैं। पर सलीमा की कामयाबी की वजह से सैकड़ों ऐसे बच्चों के हाथों में हॉकी स्टिक दिखेगी इसकी गारंटी है। अब जब भी हॉकी और सलीमा की कहानी लिखी जाएगी तो पूर्ण विराम से पहले गर्व था कि जगह गर्व है लिखा जाएगा। 

गरीब माता-पिता के परिवार में जन्मीं सलीमा टेटे
वीडियो में सलीमा के माता-पिता दिख रहे हैं। पिता के पैरों में लिपटा कीचड़ बताता है कि इन्होंने सलीमा को अपनी मेहनत से इतना सींचा है ताकि वो आसमान की ऊंचाइयों तक परवाज कर सके। पिता औऱ माता दोनों के पैरों में ना चप्पल है ना पहनने को ढंग का कपड़ा। आंगन में बारिश की वजह से कीचड़ है। घर में रखा सामान देखिए. समझ पाएंगे कि सलीमा की जिंदगी कितनी संघर्षों भरी रही होगी। झारखंड के सिमडेगा जिले से टोक्यो के खेलगांव तक का सफर एक मिसाल है। ये गांव, कच्चे मकान, पथरीला रास्ता और ये साधारण सा खेल का मैदान..सब सलीमा की कामयाबी की कहानी कहते प्रतीत होते हैं। कभी मौका मिले तो ठहर कर सुनिएगा, यहां सलीमा के संघर्षों वाले दिन की पदचाप सुनाई देगी। 

महिला हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में बनाई जगह
भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक्स के सेमीफाइनल में जगह बना ली है। क्वार्टर फाइनल में सबसे मजबूत टीम ऑस्ट्रेलिया को हराया है। ये पहली बार है जब टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची है। दुनिया की तमाम जीत केवल जीत होती है, पर जब परिवार, समाज, आर्थिक स्थिति और हजारों सवालों से जूझती लड़कियां जीत हासिल करती हैं तो उसे मिसाल कहते हैं। महिला हॉकी टीम, कप्तान रानी रामपाल और  झारखंड की सलीमा टेटे. ये सभी मिसाल हैं। रहेंगे।