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पासवान के निधन से उपजे हालात के बाद चुनाव पर असर डालेगा सहानुभूति कार्ड! जदयू को नुकसान संभव

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द फॉलोअप टीम, पटना 
केंद्रीय मंत्री और एलजेपी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद चुनाव में कई नये मोड़ आने की संभावना बढ़ गई है। बिहार चुनाव से पहले ही एलजेपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है। जेडीयू के खिलाफ एलजेपी ने हर सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। इस बीच चुनावी माहौल में पासवान की मौत के आंसू से कई जिलों में सियासी समीकरण भी बिगड़ सकते हैं। खेल तो सभी दलों का खराब होगा लेकिन ज्यादा असर जेडीयू पर पड़ेगा।

सहानुभूति की लहर की उम्मीद
बिहार में रामविलास पासवान दलितों के इकलौते बड़े नेता थे। लोकसभा के लिए बिहार में सुरक्षित सीटों पर पासवान परिवार का ही कब्जा है। बिहार के 5 जिलों में दलित वोटर एक बड़े फैक्टर के रूप में काम करते हैं। पासवान के निधन से एक सहानुभूति की लहर है। जिसका फायदा राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी को हो सकती है। क्योंकि उनके बेटे चिराग पासवान पहले से ही बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

5 जिलों पर पड़ेगा असर
दरअसल, रामविलास पासवान के निधन से बिहार में सहानुभूति की लहर है। बिहार में 5 ऐसे जिले हैं, जहां पासवान परिवार का दबदबा है। पासवान के साथ एक बड़ा फैक्टर यह भी था कि अगड़ी जाति के लोग भी उन्हें पसंद करते थे, क्योंकि उन्होंने कभी भी कोई विवादित बयान नहीं दिया था। समस्तीपुर, खगड़िया, जमुई, वैशाली और नालंदा में महादलित वोटों की अच्छी खासी आबादी है।

आसान नहीं दलित वोटों में सेंधमारी 
बिहार में अभी की तारीख में महादलित और दलित वोटरों की आबादी कुल 16 फीसदी के करीब है। 2010 के विधानसभा चुनाव से पहले तक रामविलास पासवान इस जाति के सबसे बड़े नेता बताते रहे हैं। दलित बहुल्य सीटों पर उनका असर भी दिखता था। लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने नीतीश का साथ नहीं दिया था। इससे खार खाए नीतीश कुमार ने दलित वोटों में सेंधमारी के लिए बड़ा खेल कर दिया था। 22 में से 21 दलित जातियों को उन्होंने महादलित घोषित कर दिया था। लेकिन इसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया था।

नीतीश के मास्टर स्ट्रोक का असर हुआ था
नीतीश कुमार के इस खेल से उस वक्त महादलितों की आबादी 10 फीसदी हो गई थी और पासवान जाति के वोटरों की संख्या 4.5 फीसदी रह गई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के इस मास्टर स्ट्रोक का असर पासवान पर दिखा था। 2009 के लोकसभा चुनाव में वह खुद चुनाव हार गए थे। 2014 में पासवान एनडीए में आ गए। नीतीश कुमार उस समय अलग हो गए थे। 2015 में पासवान एनडीए गठबंधन के साथ मिल कर चुनाव लड़े, लेकिन उनकी पार्टी बिहार विधानसभा में कोई कमाल नहीं कर पाई। बाद में नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में आ गए, तो गिले-शिकवे को भूल कर 2018 में पासवान जाति को महादलित वर्ग में शामिल कर दिया।

हाजीपुर से भाई हैं सांसद
रामविलास पासवान खुद हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं। 2019 में उनके भाई पशुपति कुमार पारस यहां से चुनाव लड़े। हाजीपुर में भी करीब साढ़े तीन लाख से ज्यादा दलित वोटरों की संख्या है। इस संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा सीट आता है। जिसमें हाजीपुर, महुआ, राजापाकर, जंदाहा, महनार, पातेपुर और राघोपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। राजापाकर सुरक्षित सीट है और यह जेडीयू के खाते में गया है। इस सीट पर एलजेपी ने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में यहां भी जेडीयू को नुकसान की संभावना है। साथ ही दूसरे सीटों पर भी दलित वोटरों का असर है।

जमुई से हैं चिराग पासवान सांसद
जमुई लोकसभा क्षेत्र भी सुरक्षित सीट है। यहां से रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधनासभा क्षेत्र आता है। जिसमें जमुई जिले का 4 है। जमुई जिले की 2 सीटें जेडीयू के खाते में गई है। झाझा और चकाई, चिराग ने दोनों ही सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। झाझा से रविंद्र यादव को टिकट दिया है और चकाई से संजय कुमार मंडल को दिया है। दलित वोटों के साथ-साथ चिराग ने यहां अतिपिछड़ी जातियों के वोट में सेंधमारी की कोशिश की है। साथ में सहानुभूति फैक्टर अलग काम करेगा। इसका सीधा नुकसान जेडीयू को ही संभव है।

नीतीश के खेल पर लग सकता है ग्रहण ! 
नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में भी महादलित वोटरों की अच्छी आबादी है। नालंदा लोकसभा क्षेत्र में 7 विधानसभा सीटें आती हैं। 2014 में जेडीयू उम्मीदवार के खिलाफ यहां एलजेपी के सत्यानंद शर्मा ही मैदान में उतरे थे। एलजेपी ने जेडीयू को कड़ी टक्कर दी थी। नालंदा में महादलितों की आबादी साढ़े 4 लाख के करीब है। नालंदा की 7 में से 6 विधानसभा सीटें जेडीयू के पास है। राजगीर सुरक्षित सीट है। चिराग ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में यहां भी खेल बिगड़ सकता है।

शाह के ट्वीट के भी हैं सियासी मायने !
एलजेपी बिहार में एनडीए से अलग है। चिराग ने ऐलान कर दिया है कि हम बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेंगे। वहीं, बीजेपी नेताओं ने 2 टूक कहा है कि चिराग पीएम की तस्वीर यूज नहीं कर सकते हैं। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद अमित शाह का ट्वीट कुछ और इशारा कर रहा है। उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा है कि मोदी सरकार उनके गरीब कल्याण और बिहार के विकास के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए कटिबद्ध रहेगी। राजनीतिक गलियारों में इस ट्वीट के भी कई सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं। 

खुल कर वार करना मुश्किल होगा
चिराग भी इस चुनाव में सहानुभूति कार्ड खेलने की कोशिश करेंगे। वहीं, दूसरे सियासी दल अभी रामविलास पासवान पर खुल कर वार नहीं कर पाएंगे। नीतीश कुमार भी सीधे वार करने से बचते रहेंगे। ऐसे में इसका फायदा चिराग को मिल सकता है। इस चुनाव में उन्होंने दलितों के साथ-साथ अगड़ी जाति के लोगों को भी लुभाने की कोशिश की है। 42 में से 18 सीटों पर चिराग ने अगड़ी जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है। अब देखना है कि पासवान के निधन से उपजे हालात के चिराग की लौ मद्धिम होगी चकाचौंध करेगी।