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थम नहीं रही तालिबान की दरिंदगी, अब लोकगायक फवाद अंद्राबी को मार डाला

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द फॉलोअप टीम, रांची:

अफगानी पागलों  की तरह अपने  ही मुल्क से भाग रहे  हैं। क्योंकि तमाम दावों के बावजूद अफगानिस्तान में तालिबान की दरिंदगी थम नहीं रही है। दरिंदगी का बिना डरे विरोध करने वालों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। कुछ दिनों पहले कॉमेडियन नजर मोहम्मद की हत्या तालिबानियों ने कर दी थी। मशहूर टिक-टॉक स्टार और कॉमेडियन नजर मोहम्मद को खाशा जवान के नाम से भी जाना जाता था। वह दक्षिणी हिस्से में काफी लोकप्रिय थे। वह आम तौर पर तालिबान पर कॉमेडी वीडियो बनाते थे। अब तालिबानियों ने लोकगायक फवाद अंद्राबी को मार डाला है।

पढ़िये लेखक ध्रु्व गुप्‍त की टिप्‍पणी- संगीत की हत्या

अफगानिस्तान के अंद्राबी घाटी के लोकगायक फवाद अंद्राबी को अफगान लोकसंगीत की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम है जिन्हें बड़े सम्मान से सुना जाता है। अब वे हमारे बीच नहीं रहे। तालिबान द्वारा शरिया कानून के तहत संगीत पर प्रतिबंध के बाद संगीत की महफ़िल सजाने के आरोप में आतंकियों द्वारा रविवार को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। दुनिया भर के संगीतप्रेमियों के लिए यह एक स्तब्ध कर देने वाली घटना है। इस हत्या पर चिंता व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान से कलाकारों के मानवाधिकारों का सम्मान करने का आह्वान किया है। इस घटना के बाद  एक बार फिर यह बहस शुरू हो गई है कि इस्लाम में सचमुच संगीत हराम है या यह सोच संसार की इस श्रेष्ठ कला के विरुद्ध कुछ दकियानूस मुल्लों की साज़िश है। इस विषय पर पवित्र कुरान को साक्ष्य मानें तो वहां एक भी आयत ऐसी नहीं है जिसके आधार पर यह मान लिया जाय कि इस्लाम संगीत का निषेध करता है। हदीसों में ज़रूर कहीं-कहीं संगीत को गैरजरूरी बताया गया है।

 

लेकिन पूरी तरह निषेध बिल्‍कुल नहीं है। बस उसे अच्छी नज़र से नहीं देखा गया है। बस इसी आधार पर कुछ लोग कुछ ख़ास अवसरों पर ही संगीत को वैध मानते है और कुछ लोग किसी भी परिस्थिति में उसे हराम। ज्यादातर मुस्लिमों की उलझन यह है कि वे कुरान की सुनें या हदीस की। उचित तो यह है कि मुस्लिमों को कुरान को साक्ष्य मानकर अल्लाह के इस्लाम पर ही चलना चाहिए। संगीत में अश्लीलता का विरोध हर हाल में सही है और यह सबको करना चाहिए, लेकिन एक कला के रूप में संगीत का विरोध गलत है। कुरान में स्वयं अल्लाह ने ऐसे विरोधियों पर नाराज़गी व्यक्त की है जो अपनी मर्ज़ी से उन बातों के लिए भी मना करते हैं जिनके लिए अल्लाह ने मना नहीं किया है।

 

(लेखक IPS अधिकारी रहे हैं।  स्‍वेच्‍छा से रिटायरमेंट लेने के बाद पटना में रहकर संप्रति स्‍वतंत्र लेखन। कई किताबें प्रकाशित )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।