इसे शिगिर आइडल कहा जाता है। यह है 11000 साल पहले लकड़ी से बनी मूर्ति। जिसपर लिखी गई लिपि एवं संकेत चित्र को पूरी दुनिया पढ़ने की कोशिश कर रही है। पर आजतक किसी को सफलता हाथ नही लगी है। शोधकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों का एक वर्ग इस मूर्ति को दूसरे ग्रह तक का मानने से परहेज़ नहीं करता है। इसे लेख में जानिये उससे जुड़ी रोचक जानकारी।-सं.
ध्रुव गुप्त, पटना:
भाषा और लिपि के आविष्कार के पहले पृथ्वी पर हमारे पुरखों ने अभिव्यक्ति के लिए चित्र-भाषा का उपयोग किया था। ये चित्र जीवन और प्रकृति के उनके अनुभवों और और प्राकृतिक घटनाओं के प्रति उनकी सहज, सरल प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति थी। भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में पहाड़ियों की गुफाओं में पांच से पचास हजार साल तक पुराने ऐसे अनगिनत चित्र मिले हैं। लिपि के आविष्कार के बाद लोगों ने अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए चित्रों के साथ लिपि का भी प्रयोग शुरू किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी कुछ न कुछ लिख छोड़ा। ये चित्र और लिपियां पत्थरों पर भी दर्ज हैं और कहीं-कहीं लकड़ियों पर भी। उन प्राचीन अभिलेखों में से कुछ की ही लिपियां पढ़ी और समझी जा सकी हैं। ज्यादातर लिपियां आजतक डिकोड नहीं हुई हैं।
आम तौर पर लकड़ियों की उम्र ज्यादा से ज्यादा कुछ सौ सालों की होती है। यह कल्पना करना कठिन है कि लकड़ी की बनी कोई कलाकृति हजारों सालों तक सुरक्षित रह सकती है। लेकिन हमारी दुनिया में यह अजूबा भी हुआ है। ग्यारह हजार साल से भी पुरानी लकड़ी की एक कलात्मकता मूर्ति हमारी दुनिया में आज भी सही-सलामत है और उसपर लिखी इबारत भी। लकड़ी की बनी यह रहस्यमय मूर्ति लगभग सवा सौ साल पहले साइबेरियाई पीट बोग के शिगीर इलाके में मिली थी। इलाके में सोने की खुदाई करने वाले श्रमिकों को जमीन के करीब साढ़े तेरह फीट नीचे गड़ी यह मूर्ति अनायास ही हाथ लगी। कुछ टूटी-फूटी हालत में। मूर्तिकारों ने इसे जोड़-जाड़कर कर लगभग अपने मूल रूप में खड़ा किया। मूर्ति की वास्तविक ऊंचाई साढ़े सत्रह फीट थी जो टूट जाने के बाद नौ फीट से कुछ ही ज्यादा रह गई है। आरंभिक जांच से इस मूर्ति को साढ़े नौ हज़ार साल पुराना बताया गया था। वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा कुछ वर्षों पहले की गई रेडियोकार्बन डेटिंग के बाद इसे ग्यारह हज़ार वर्षों से भी ज्यादा पुराना घोषित किया गया। मूर्ति को बनाने की कला भी प्राचीन विश्वकी आम मूर्तियों से अलग है। बिल्कुल आधुनिक अमूर्त मूर्तिकला की तरह। पुराने लार्च वृक्ष की लकड़ी को तराश कर बनी इस नक्काशीदार मूर्ति में चेहरे अर्थात गर्दन के ऊपर के हिस्से में आंखें, नाक और मुंह तो है, लेकिन गर्दन के नीचे का शरीर सपाट और आयताकार है। इसकी सबसे खास बात यह है कि अलग कोणों से देखने पर इस मूर्ति के सात अलग चेहरे दिखते हैं। उनमें से एक चेहरा तो आश्चर्यजनक रूप से त्रिआयामी या थ्री डायमेंशनल है।
विश्व के सबसे बड़े आश्चर्यों में एक इस मूर्ति को अभी रूस के येसटेरिनबर्ग के म्यूजियम में जगमगाती रोशनियों के बीच प्रदर्शन के लिए रखा गया है। इसे देखने के लिए दुनिया भर के सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। यह दुनिया की प्राचीनतम काष्ठ-रचना है जिसकी उम्र मिस्र के पिरामिड या ब्रिटेन के स्टोनहेज से दोगुनी से भी ज्यादा है ! 'शिगीर आइडल' के नाम से जानी जानेवाली प्रस्तर युग की इस मूर्ति के चारों ओर किसी अज्ञात लिपि में कुछ शब्द भी खुदे हुए हैं और आड़ी-तिरछी या वक्र जयामितिक रेखाएं भी। लिपि और संकेत ऐसे हैं जिन्हें दुनिया भर के विशेषज्ञों के अथक प्रयास के बाद भी आजतक नहीं पढ़ा जा सका है। सवा सौ साल से शोधकर्ता इस जीवंत लेकिन जटिल संरचना ,उसकी लिपि और संकेतों के बारे में अलग-अलग अनुमान ही लगाते रहे हैं।
वैज्ञानिक और स्थापत्य तथा भाषा-लिपि विशेषज्ञ भले ही इस रहस्य की परतें नहीं खोल पाए हों, लेकिन परग्रही वैज्ञानिकों का एक वर्ग यह मानता है कि प्रस्तर युग में अत्याधुनिक तकनीक से बनी ऐसी किसी मूर्ति का निर्माण और संरक्षण उस दौर के लोगों के लिए कतई संभव नहीं था। इस बनाने में में जिस तकनीक या जिन औजारों का इस्तेमाल किया गया है वैसी कोई तकनीक या औजार पत्थरों या बर्फ के गोलों से पशुओं का शिकार कर पेट पालने वाले लोगों के पास रही होगी, इसकी कल्पना भी मूर्खता है। उनकी दृष्टि में शिगिर आइडल प्राचीन काल में दूसरे ग्रह से आने वाले एलियंस की रचना हो सकती है। अपने कथ्य के समर्थन में वे दुनिया भर में जहां-तहां मौजूद प्राचीन गुफाओं के रहस्यमय शिलाचित्रों का हवाला देते हैं जिनमें उड़ने वाले जहाज या उड़न तश्तरी जैसी वस्तुओं, अन्तरिक्ष यात्रियों जैसे परिधान पहने विचित्र चेहरे-मोहरे वाले लोगों और अलौकिक घटनाओं तथा दृश्यों का अंकन किया गया है। इंग्लैंड तथा दक्षिणी अमेरिका में हजारों साल पुरानी सितारों को लक्ष्य कर पत्थरों से बनीं या पत्थरों पर उकेरीं कुछ विचित्र ज्यामितिय संरचनाएं भी मिलती हैं जो उस दौर के लोगों द्वारा तबतक अर्जित ज्ञान से कतई मेल नहीं खातीं। बाइबिल सहित कुछ प्राचीन धर्मग्रंथों में भी आकाश से उतरने वाले अलौकिक, शक्तिशाली देवताओं और उनके द्वारा पृथ्वी की मादाओं से संसर्ग कर संतान उत्पन्न करने के बहुत सारे उल्लेख मिलते हैं। उन्नत तकनीक, ज्ञान और लोकोत्तर शक्तियों से लैस उन विचित्र प्राणियों के आगे हमारे असभ्य पूर्वज नतमस्तक हुए होंगे। परग्रही वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्नत तकनीक से बने दुनिया के कई दूसरे प्राचीन अजूबों के साथ शिगीर आइडल की रचना उन्हीं परग्रही एलियंस की है। इस मूर्ति पर उन्होंने अपनी भाषा में अपने बाद आने वाले परग्रहियों के लिए कुछ दिशानिर्देश या पृथ्वीवासियों के लिए कोई गुप्त संदेश लिख छोड़ा है। वे मूर्ति की आड़ी-सीधी रेखाओं को धरती और आकाश, जल और आकाश या कई अलग-अलग दुनियाओं के बीच की विभाजक रेखा और उनका अतिक्रमण करने के लिए जरुरी संकेतों की तरह देखते हैं।
कुल मिलाकर शिगिर आइडल को लेकर हम आज भी अंधेरे में हैं। अब तक उसकी जितनी व्याख्याएं सामने आई हैं, वे सब कल्पनाओं और अनुमानों पर आधारित हैं। यह जरूर है कि अभी रूस समेत पूरे यूरोप में इस मूर्ति पर जिस तेजी से काम हो रहा है उससे यह संभावना बनने लगी है कि शिगीर आइडल पर दर्ज लिपि को 'डिकोड' करना निकट भविष्य में संभव जरूर हो सकेगा। जर्मनी के कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी दावा है कि उन्होंने इस मूर्ति और उसपर लिखी इबारत का रहस्य लगभग सुलझा लिया है और एक-दो साल में उसका रहस्य दुनिया के सामने होगा। जर्मनी के प्रागेतिहासिक विशेषज्ञ थोमस तेर्बेर्गेर का कहना है - 'पूरे यूरोप में इससे ज्यादा रहस्यमय और गहरे अर्थ लिए कोई प्राचीन मूर्ति कहीं और उपलब्ध नहीं है। इस मूर्ति को पढ़ना, समझना और उसके गूढ़ रहस्य की तह तक पहुंचना हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा है।' अब पूरी दुनिया को जर्मन शोधकर्ताओं के रहस्योद्घाटन की प्रतीक्षा है। वह ऐसा दिन होगा जब शिगिर आइडल ही नहीं, शायद प्राचीन विश्व के कई अनसुलझे रहस्यों से भी पर्दा उठ सकेगा। (अमृत विचार)
(लेखक आईपीएस अफ़सर रहे हैं। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
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