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युवा, बेरोजगार, किसान और मजदूरों को ठेंगा दिखाने वाला रहा बजट: डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह

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पटना

केंद्रीय बजट पर बिहार के लिए फिर से हवा हवाई घोषणाएं करने वाली केंद्र सरकार पिछले लोक लुभावन बजट में हुई घोषणाओं को ही लागू नहीं कर पाई और फिर से नई घोषणाएं करके तारीफ लेने की कवायद में लगी है। युवा, बेरोज़गार, किसान, मजदूरों के हित और बिहार की मूलभूत मांगों को दरकिनार करने वाला यह बजट रहा। ये बातें बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने कही। 

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने बजट पर प्रतिक्रिया पर कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज जब बजट की शरुआत कृषि से तो की हैं लेकिन किसानों की मांगों और कृषि पर संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों पर पूरी तरह से वो चुप हैं। एमएसपी को कानूनी गारंटी के रूप में लागू करने और कृषि ऋण माफी पर कोई पहल नहीं की। वहीं पीएम किसान भुगतान का मुद्रास्फीति सूचकांकीकरण और पीएम फसल बीमा योजना में सुधार की भी कोई कवायद नहीं की है। 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय, 55% किसान कर्ज के बोझ तले हैं और 2014 से अब तक 1 लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अब फिर से किसानों की आय दोगुनी करने की बात हो रही है।

 

बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी द्वारा सौंपे गए 32 पन्नेन के ज्ञापन में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से उत्तर बिहार में बाढ़ प्रबंधन, दरभंगा हवाई अड्डे का अपडेट, राजगीर और भागलपुर में नए हवाई अड्डे और रक्सौल हवाई अड्डे के लिए 13,000 करोड़ रुपये की सहायता मांगी थी और उन्होंने 10 नए केंद्रीय विद्यालयों के निर्माण, अतिरिक्त उधारी के लिए राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत छूट और एक छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर की मंजूरी के साथ-साथ हाई-स्पीड कॉरिडोर की भी मांग की थी उसपर किस बिंदु को बजट में शामिल किया गया।

सिंह ने आगे कहा कि जुलाई 2020 से नवंबर 2024 के बीच 61,000 एमएसएमई बंद हो गए, जबकि 2024 के अंतिम 4 महीनों में 12,000 एमएसएमई बंद हुए। 2022 तक विनिर्माण को जीडीपी का 25% करने का लक्ष्य था, लेकिन वर्तमान में यह केवल 15.8% है। वार्षिक विनिर्माण वृद्धि दर 12-14% के लक्ष्य के बजाय केवल 5.8% ही रही है। भारत के सेवा निर्यात की वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी 4.6% से कम है, जबकि भारत के माल निर्यात की वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी 2% से कम है। भारत की वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में हिस्सेदारी 2.5% है और यह घट रही है।

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