logo

Followup Special News

लखीमपुर खीरी हत्याकांड की तुलना जलियावाला बाग हादसे से करना कितना सही

'केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र के नेतृत्व में तेज रफ़्तार गाड़ियों का  एक काफिला प्रदर्शनकारी किसानों को कुचलते हुए निकल गया, जिससे अनेक किसानों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। दर्जनों लोग बुरी तरह घायल हैं।

साबरमती का संत-32: उसने गांधी को क्यों मारा-पड़ताल

'मैंने भी इस किताब के एक खंड को बहुत पहले पढ़ा था। खंड का नाम है- ‘अहिंसा और हमलों के बीच निर्भय जीवन : जनवरी 1948 से गांधी पर हुए हमले. इसी खंड में एक अध्याय है- ‘जाति-नस्ल-निष्ठा और गांधी।’

दुर्गापूजा, दशहरा और बाबूजी का नवाह पाठ

'प्राचीन काल से स्त्री के हर स्वरूप को हम पूजते आये हैं| महाभारत काल की एक सशक्त स्त्री  जिसके एक निर्णय ने इतिहास की दिशा और कुरुवंश की दशा ही बदल दी, उसकी चर्चा करना  ऐसे समय में तो बनती है न जिस समय में सब मातृशक्ति की उपासना कर रहे हैं| मातृशक्ति का आ

15वां स्मृति दिवस: राजनीति का बेमिसाल रसायनशास्त्री, जिन्हें मान्यवर कहा गया

'कांशीराम ने जब अपनी सामाजिक-राजनीतिक यात्रा शुरू की, तो उनके पास पूंजी के तौर पर सिर्फ एक विचार था। यह विचार भारत को सही मायने में सामाजिक लोकतंत्र बनाने का विचार था, जिसमें अधिकतम लोगों की राजकाज में अधिकतम भागीदारी का सपना सन्निहित था। कांशीराम अपने भा

विवेक का स्वामी-अंतिम: संघ और स्वामी विवेकानंद का हिंदुत्व कितना पास, कितना दूर 

'भारत के वामपंथियों को अन्य किसी भारतीय विचारक के मुकाबले नेहरू की धर्मनिरपेक्षता तुलनात्मक दृष्टि से पसंद रही है। उन्होंने उसकी मुखालफत भी नहीं की। वे यह भी कहते हैं कि संवैधानिक देशभक्ति में भरोसा रखना चाहिए। संघ परिवार और भाजपा के बड़े नेताओं ने विवेकान

साबरमती का संत-31: गांधी पाठशाला में महात्मा से मुठभेड़

भारतीय लोकतंत्र के जनवादी आन्दोलन के संदर्भ में मिथकों के नायक राम और कृष्ण के बाद कालक्रम में तीसरे स्थान पर गांधी ही खड़े होते हैं, कई अर्थों में उनसे आगे बढ़कर उन्हें संशोधित करते हुए। इस देश में ऐसा कोई व्यक्ति पैदा नहीं हुआ जिसने गांधी से ज़्यादा शब्द

साबरमती का संत-30: गांधी दर्शन-समरसता की बुनियाद पर टिकी अर्थव्यवस्था और राजनीति

गांधी जी द्वारा राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के विकेंद्रीकरण और मशीनों के नकार का आग्रह अनायास नहीं था। उनकी यह दृढ़ मान्यता थी कि लोकतंत्र मशीनों यानी कि प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन के केंद्रीकृत विशाल संसाधनों यानी कि उद्योग का दास होता है। गांधी जी यह जानते

साबरमती का संत-29: महात्मा गांधी का संकल्प- खादी आत्म निर्भरता का विकल्प

'किसी को समय बडा बनाता है और कोई समय को बडा बना देता है।कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैंऔर कुछ लोग आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं। कुछ लोग अतीत को परत दर परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबर

साबरमती का संत-28: विश्व अहिंसा दिवस और महात्मा गांधी का सच 

अहिंसा का प्रयोग गांधी का महत्वपूर्ण संदेश है। हिंसावादियों और अराजकता समर्थकों को आश्वस्त नहीं कर पाने की नाकामी से खिन्न गांधी ने अहिंसा की थ्योरी पर अमल करना सिखाया। गांधी की तयशुदा सलाह थी राज्य-शक्ति हिंसा का हथियार ही है। यह अलग बात है कि भारत पाक व

साबरमती का संत-27: क्यों डरते हैं गांधी से लोग, और प्रेम का ढोंग भी

गांधी जिस तरह का भारत चाहते थे उससे लीग, संघ, वामपक्ष, मूल निवासी राजनीति आदि को खत्म हो जाने या अप्रासंगिक हो जाने का खतरा था। इसलिए ये लोग उनका विरोध करते थे और अंततः संघी लोगों ने उनकी हत्या ही कर दी। इस तथ्य के बावजूद कि हिन्दू धर्म को उन्होंने जिस  त

विवेक का स्वामी-18: स्वामी विवेकानंद की अभिनव पहल 

भारत अपनी आत्मतुष्टि, बल्कि आत्मपुष्टि में इतना स्वाभिमानी रहा है कि अपने विचारों को न तो किसी अन्य मजहब पर लादना चाहता रहा है और न ही उनके विचारों के प्रचार प्रसार में भौतिक प्रतिरोध उत्पन्न करता रहा है। यदि अन्य मजहब के विचार भारतीय मनीषा में स्वानुभूत

साबरमती का संत-26: समकालीन विश्व में महात्मा की प्रासंगिकता कितनी सार्थक

'गांधीजी अगर 1915-16 में भारत न आने का फैसला करके द. अफ्रीका में अपने फीनिक्स आश्रम में ही रह जाते तब??...सबसे बड़ा अंतर यह पड़ सकता था कि भारत का आम आदमी आज़ादी की लड़ाई से इतना नज़दीकी न बना पाता, लड़ाई सभा-गोष्ठियों तक सीमित रहती।

Load More