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झारखंड में 30 नागरिक संगठन आए एक मंच पर, ‘जस्ट ट्रांजिशन’ के जरिये ग्रीन एनर्जी साधने की कवायद

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सुधीर पाल 
‘जस्ट ट्रांजिशन’ अब एक वास्तविकता है और आने वाले समय में हमें ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ना ही होगा। इस दिशा को लेकर न तो किसी को संदेह है और न ही यह अब किसी बहस का विषय रह गया है। झारखंड के लिए 'जस्ट ट्रांजिशन' का अर्थ है ऐसा रूपांतरण जो समावेशी हो और किसी के साथ भेदभाव न करे—विशेष रूप से समाज के सबसे वंचित समुदायों को ध्यान में रखते हुए। यही बातें इस सप्ताह रांची में आयोजित "सारथी नेटवर्क"—झारखंड जस्ट ट्रांजिशन नेटवर्क—के लोकार्पण समारोह में सामने आईं। इस अवसर पर वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव अबूबकर सिद्दि सहित कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया।


अबूबकर सिद्दि ने कहा कि बदलाव तो अवश्यंभावी है, लेकिन यह बदलाव समावेशी होना चाहिए, जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान किया जाए और टिकाऊ विकास सुनिश्चित हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि सबसे कमजोर व्यक्ति को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए और इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। झारखंड जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स को सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ समन्वय में कार्य करना होगा।
झारखंड को पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में आगे ले जाने के लिए 30 से अधिक नागरिक संगठनों ने मिलकर "सारथी – झारखंड जस्ट ट्रांजिशन नेटवर्क" का गठन किया है। यह देश का पहला ऐसा नेटवर्क है जो नागरिक संगठनों के माध्यम से जस्ट ट्रांजिशन पर केंद्रित होगा।
नेटवर्क के गठन के मौके पर दो सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र में आमंत्रित विशेषज्ञों ने जस्ट ट्रांजिशन को लेकर अपने विचार साझा किए, जबकि दूसरे सत्र में एनजीओ प्रतिनिधियों ने नेटवर्क की कार्ययोजना और भविष्य की गतिविधियों पर पैनल चर्चा की। यह नेटवर्क झारखंड में हरित, समावेशी और सतत विकास के लिए राज्य सरकार, सामाजिक संगठनों, शोध संस्थानों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम करेगा।
इस मौके पर झारखंड सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स के चेयरपर्सन एवं सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ए. के. स्तोगी ने कहा कि झारखंड से कोयला कई राज्यों में भेजा जाता है और प्रदेश के 18 जिलों की अर्थव्यवस्था फॉसिल फ्यूल पर आधारित है। आज भी देश की 70 प्रतिशत बिजली कोयले से उत्पन्न होती है। ऐसे में रातोंरात परिवर्तन संभव नहीं, लेकिन सारथी जैसे नेटवर्क की सहायता से यह प्रक्रिया आरंभ की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जस्ट ट्रांजिशन के लिए एक सकारात्मक नैरेटिव तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़े।


नाबार्ड झारखंड के सीजीएम गौतम कुमार सिंह ने कहा कि नाबार्ड 1990 के दशक से जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ कृषि और जलवायु-संवेदनशील खेती पर कार्य कर रहा है। झारखंड में तसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संस्थानों और समुदायों के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। यहां 250 से अधिक किसान उत्पादक संगठन (FPO) कार्यरत हैं, जो किसानों को अपने उत्पादों की विपणन क्षमता बढ़ाने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
सीएमपीडीआई के तकनीकी निदेशक शंकर नागाचारी ने जानकारी दी कि भारत सरकार ने जनवरी 2025 में खान बंदी (माइन क्लोजर) के लिए एक समग्र गाइडलाइन जारी की है। इसके अंतर्गत इको रेस्टोरेशन, मछली पालन, खनिज जल सिंचाई, इको पार्क जैसे टिकाऊ और रोजगारोन्मुखी ढांचे विकसित करने के कार्यक्रम चल रहे हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों की भागीदारी पर बल दिया।


विधायक उमाकांत रजक ने कहा कि वैकल्पिक आजीविका के क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि वन उत्पादों के माध्यम से ग्रामीणों की आजीविका को मजबूत किया जा सकता है। फ़िया फाउंडेशन के निदेशक जॉनसन टोपनो ने सारथी नेटवर्क के उद्देश्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन ऋचा ने किया।
इस अवसर पर दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र में सिविल सोसाइटी की भूमिका और जस्ट ट्रांजिशन में सीएसआर एवं अन्य संस्थाओं के वित्तीय निवेश पर चर्चा हुई। इस सत्र में कृष्णकांत, गुलबचन्द्र, रिनी सिन्हा, धीरज होरो, किरण और बिटिया मुर्मू ने एनजीओ की भूमिका पर अपने विचार रखे।
दूसरे सत्र में नाबार्ड के राकेश कुमार सिन्हा, पीडब्लूसी के पीरिश विषवाल और अनिल उरांव ने जस्ट ट्रांजिशन हेतु उपलब्ध वित्तीय संसाधनों की जानकारी साझा की। इस सत्र का संचालन इन पंक्तियों के लेखक सुधीर पाल ने किया। कार्यक्रम में झारखंड की 50 से अधिक संस्थाओं ने भाग लिया।

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