हिमांशु कुमार
गिरिडीह के राजधनवार में रमज़ान में होली के गाने न बजाने की बात को लेकर एक समूह ने दुकानें जला दीं, बाइक में आग लगा दी। यह घटना निंदनीय है। पूरे राज्य में घटना आग की तरह फैली। ऐसा लगा जैसे तेज़ी से फैलने से झड़प बंद हो जाएगा, जबकि इस तरह की घटना को फैलने से रोकने का प्रयास करना चाहिए। अफवाह से बचना चाहिए। कई मीडिया भी तेज़ी से सक्रिय हो गए। फिर शुरू होता है बीजेपी के मंडल स्तरीय नेताओं से लेकर राज्य स्तरीय नेताओं का विरोध और हिंदू-मुस्लिम को लेकर बड़ी-बड़ी धार्मिक बातें। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी संप्रदाय को लेकर प्रतिक्रिया देने लगते हैं। आज राज्य में लगभग सभी नेताओं ने अपने सोशल साइट्स पर इस घटना का विरोध किया है, जबकि शपथ ग्रहण करते समय वे प्रतिज्ञा करते हैं कि धार्मिक सद्भावना बिगाड़ने वाली बात न करेंगे और न ही ऐसा कोई काम करेंगे। लेकिन वे ऐसा करते हैं—कोई बात नहीं, कीजिए! राजनीति में कुछ मजबूरियां भी होती हैं। चुनाव भी जीतना है, सरकार भी बनानी है। सांप्रदायिक चर्चा मुख्यमंत्री योगी जी भी करते हैं, लेकिन अपराधियों से कोई समझौता नहीं करते। अपराधी किसी भी जाति का हो, किसी भी धर्म का हो—Zero Tolerance की नीति पर काम होता है।
हज़ारीबाग में NTPC के AGM की हत्या
वहीं, आज से 8 दिन पहले हज़ारीबाग में NTPC के AGM की हत्या होती है। एक युवा मारा जाता है। 10 वर्ष की एक बिटिया है उस बेचारे की। किसी स्थानीय नेता (किसी भी दल के) ने उनके परिजनों से मिलने तक की हिम्मत नहीं दिखाई। कितना पंगु हैं ये बड़ी-बड़ी बातें करने वाले! इसलिए इनके बहकावे में आकर सामाजिक सद्भाव मत बिगड़ने दीजिए। ये अपने मतलब और सुविधा के अनुसार बातों को परोसते हैं—बड़े समझौतावादी होते हैं।
इतनी बड़ी घटना के बाद भी राज्य की राजनीतिक महफिल के बड़े से बड़े किरदार कुछ बोलना उचित नहीं समझते हैं। केंद्र सरकार का उपक्रम है NTPC। राज्य के सभी माननीय सांसदों (चाहे किसी दल के हों) को इस विभत्स और मार्मिक घटना के विरुद्ध आवाज़ मुखर करनी चाहिए। आप सभी के सोशल मीडिया साइट्स को खंगाल लें, कोई प्रतिक्रिया तक नहीं मिलेगी। एकाध लोगों ने औपचारिकता निभाई है। यहां तक कि अधिकांश राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों ने भी सांत्वना के दो शब्द बोलना उचित नहीं समझा।
इस घटना की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही थी। सभी राष्ट्रीय चैनलों ने इसे प्रमुखता से लिया। झारखंड में विधानसभा का सत्र चल रहा था। कुछ चर्चाएं हुईं, विरोध हुआ, लेकिन मूल बात गायब रही। झारखंड विधानसभा में किसी विरोध को अंजाम तक पहुंचाना बहुत मुश्किल है—दिन में किसी विषय को लेकर विरोध कीजिए और शाम में संबंधितों के साथ बैठक। यही परिपाटी बन चुकी है।
NTPC केंद्र सरकार का उपक्रम है। केंद्रीय एजेंसी से जांच की मांग उठती, तो समझ में आता। हज़ारीबाग पुलिस की कार्यशैली पर एक शब्द चर्चा नहीं हुई। विगत 5 महीनों में हज़ारीबाग में 5 चर्चित हत्याएं हो चुकी हैं। उस समय संसद का सत्र भी चल रहा था—वहाँ तक बात पहुंचाई जा सकती थी।
दुर्भाग्य है इस राज्य का। जिस घटना में कोई हताहत नहीं होता, उसके पीछे की दीवानगी और जहां एक AGM स्तर का युवा मारा जाता है, वहाँ घनघोर चुप्पी। अमन साहू का एनकाउंटर कर राज्य सरकार भी निश्चिंत हो गई। ऐसा लग रहा है कि पुलिस के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि अमन साहू ने ही AGM की हत्या की हो।
याद रखिए, यह अच्छा नहीं कर रहे हैं हम—झारखंड की आने वाली पीढ़ी के साथ। हमारी आने वाली पीढ़ियां भी भुगतेंगी। मत सोचिए कि बहुत धन कमा लिया, कोई दिक्कत नहीं—परिवार खुशहाल रहेगा। परिणाम सबको भुगतना होगा, आज नहीं तो कल। आने वाली पीढ़ी इसको माफ नहीं करेगी। धन ज़रूरी है, लेकिन इतना भी क्या ज़रूरी कि हम अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी को भूल जाएं? राजनीति करते हैं, तो ज्वलंत मुद्दों पर मुखर होना होगा।
(नोट - प्रस्तुत आलेख में व्यक्त विचार लेखक, हिमांशु कुमार के निजी विचार हैं। इनका द फॉलोअप से कोई लेना-देना नहीं है। लेखक हिमांशु कुमार का संबंध NDA फोल्डर से रहा है )