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हिंदी साहित्य में कहां है मुस्लिम समाज, शोधकर्ता मुख्तार खान को मुंबई यूनिवर्सिटी ने दी Phd की उपाधि

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द फॉलोअप डेस्क
"हिंदी साहित्य में कहां है मुस्लिम समाज?" इस सवाल को शोध का विषय बनाकर सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज, मुंबई से जुड़े मुख्तार खान ने एक महत्वपूर्ण शोधकार्य पूरा किया है। उनके शोध “1980 के बाद की हिन्दी कहानियों में मुस्लिम समाज का समाजशास्त्रीय अनुशीलन” को मुंबई विश्वविद्यालय ने वर्ष 2024-25 के लिए पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। इस शोधकार्य में डॉ. सतीश पांडेय ने उनके मार्गदर्शक की भूमिका निभाई।

मुख्तार खान का यह शोध साहित्य और समाजशास्त्र के मध्य सेतु बनाता है। शोध में 1980 के बाद लिखी गई हिंदी कहानियों के माध्यम से भारतीय मुस्लिम समाज की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण किया गया है। शोध को कुल आठ अध्यायों में बाँटा गया है, जिनमें कहानी के इतिहास से लेकर मुस्लिम समाज के जीवन के विविध पहलुओं पर चर्चा की गई है।

प्रारंभिक अध्याय में हिंदी कहानी के क्रमिक विकास का विवरण दिया गया है, जबकि अन्य अध्यायों में ब्रिटिश काल से लेकर वर्तमान तक मुस्लिम समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों का साहित्यिक विश्लेषण किया गया है। इसमें सामाजिक यथार्थ, आर्थिक पक्ष, धार्मिक आस्था, प्रगतिशील विचारधाराएं और मुस्लिम राजनीति जैसी जटिल विषयवस्तुओं को कहानियों के माध्यम से समझने की कोशिश की गई है।

मुख्तार खान के अनुसार, “शोध का उद्देश्य यह जानना था कि हिन्दी कहानियों के ज़रिये मुस्लिम समाज की असल स्थिति को किस हद तक समझा जा सकता है। खासकर 1980 के बाद जब वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी बदलाव तेज़ हुए, तब मुस्लिम समुदाय पर इनका क्या असर पड़ा—इसी को साहित्य के आइने में देखने की कोशिश की गई है।”

उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य एक राष्ट्रीय स्वर है और यह जरूरी था कि अल्पसंख्यक समाज के प्रति हिन्दी साहित्यकारों का दृष्टिकोण भी समझा जाए। इसी क्रम में उन्होंने उन कहानियों को चुना, जो मुस्लिम समाज की जमीनी हकीकत, आंतरिक संघर्ष, परंपराएं, रूढ़ियाँ, महिलाओं की स्थिति और सामाजिक बदलावों को प्रतिबिंबित करती हैं।
यह शोध न केवल हिंदी साहित्य के लिए एक उपयोगी संदर्भ बनता है, बल्कि मुस्लिम समाज की संरचना और समकालीन स्थिति को समझने के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से तैयार यह अध्ययन शोध जगत में एक नई दृष्टि और विमर्श को जन्म देता है।

मुस्लिम समाज की वर्तमान स्थिति, समाज के भीतर पनप रही विभिन्न प्रवृत्तियों, सामजिक संघर्षों को अलग अलग दृष्टिकोण से अनेक रचनाकारों ने अपनी कहानियों में दर्ज किया है। शुरुआत में प्रेमचन्द, यशपाल, ने हिन्दी कहानियों में मुस्लिम समाज को पेश किया। बाद के दौर में जैनेन्द्र, उदय प्रकाश, शानी, राजेन्द्र यादव,स्वयं प्रकाश, मंजूर एहतेषाम, असगर वजाहत, हरीभटनागर, सुधा अरोरा, नासीरा शर्मा, मोहम्मद आरिफ़,मेहरुननिसा परवेज़, गीतांजलि श्री, अवधेश प्रीत, ज़ेब अख्तर, मोहम्मद आरिफ़, सोहेल अहमद, हरियेश राय, हुसना  तबस्सुम नेहा, जैसे आज की पीढ़ी के कथाकारों ने अपनी कथाओं में मुस्लिम जीवन के विभिन्न आयाम को पेश किया है। जिस में मुस्लिम समाज की  प्रमप्रयाएं, दैनदिन जीवन, धर्म, संस्कृति,पेशे, आर्थिक स्थिति,महिलाओं की स्थिति,  समय की चुनौतियाँ, समाज में आरहे परिवर्तन,  सामाजिक राजनैतिक उथल-पुथल तथा सांस्कृतिक पतन और विकास को भी इन कथाओं में रचा गया है।
इस शोध में कहानियों के अतिरिक्त ऐसे सभी बुद्धिजीवों के विचार उनके एतिहासिक संदर्भों के साथ लिए गए हैं। भारतीयमुस्लिम समाज के इतिहास वर्तमान समाजिक सांस्कृतिक स्थिति जानने के लिए यह शोध ज़रूर उपयोगी साबित होगा।
 

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