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पेयजल संकट : सीएम हेमंत के निर्देश के 2 साल बाद भी नहीं लगा नलकूप, गड्ढे का गंदा पानी पीते हैं ग्रामीण

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मोहित/दुमका: 

गंदे पानी से भरा ये झरना, झुलसाती धूप, पथरीला रास्ता, कंधे और कमर पर पानी के बर्तनों का भारी बोझ इन गांव वालों की किस्मत है। सरकारी फाइलों और राजनीतिक दलों के पोस्टर्स में विकास पथ पर सरपट दौड़ते झारखंड के कई गांवों में पीने के पानी के लिए रोजाना होने वाली जद्दोजहद इन गांव वालों की तकदीर है। वर्षों से पेयजल जैसी बुनियादी जरूरत के लिए कई किमी का सफर ऐसे ही पथरीले पगडंडियों पर तय करना इस जनता की नियति है, अंतर सिर्फ इतना है कि ये तकदीर, किस्मत और नियति ये लोग भगवान के घर से अपने कपार पर लिखवा कर नहीं लाये थे बल्कि हुक्मरानों की बेकद्री ने इनकी जिंदगी में ये दुर्भाग्य लिख दिया है। 

हर घर नल से जल योजना का पोस्टर! 
इस पोस्टर को गौर से देखिये। क्या लिखा है इसमें। चलिये हम बताते हैं। हर घर नल जल योजना (Har Ghar Nal Jal Yojana) के लिए थैंक्यू मोदीजी। अब जरा सिर पर पानी भरा तसला उठाकर पत्थर भरे रास्तों पर तकरीबन लंगड़ाते हुए चलती इस लड़की को देखिये। फिर, खुद से एक सवाल पूछिये। क्या जनप्रतिनिधि इस लड़की की आंखों में आंख डालकर कह सकते हैं कि हर घर तक नल से जल पहुंचाने के लिए थैंक्यू मोदीजी (Narendra Modi)। यकीन है। यदि किसी में थोड़ी भी सियासी सुचिता और शर्म बची होगी तो वो नहीं कह पायेगा थैंक्यू मोदीजी। दिक्कत ये है कि दावों की ढिंढोरा पीटती होर्डिंग हवा में लटकी रहती है। उसका जमीन से कोई जुड़ाव नहीं होता। जब जमीन से जुड़ाव ही नहीं होगा तो धरातल की सच्चाई दिखेगी कैसे।

झरने का गंदा पानी पीते हैं ग्रामीण
ये देखिये। झरने के किनारे कतार में खडे ये लोग अपने-अपने तसलों और डब्बों को पानी की सतह में हिला रहे हैं। ये लोग झरने के पानी को साफ करने की असफल कोशिश कर रहे हैं। इससे पानी में गिरा खर-पतवार तो अलग हो जाता है लेकिन क्या सड़ी हुई पत्तियों से उपजा बैक्टीरिया भी साफ होगा। क्या तल में जमा जानवरों का मल पानी को हिला देने से साफ हो जायेगा।

जाहिर है नहीं लेकिन इनके पास और कोई ऑप्शन ही कहां है। खाना बनाना है। प्यास बुझानी है। नहाना है। इन सारी बुनियादी जरूरतों के लिए इनके पास पानी का केवल यही एक स्त्रोत है। कुछ दिन पहले झारखंड के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर (Drinking Water Minister Mithilesh Thakur) ने दावा किया था कि राज्य के 90 फीसदी गांवों में नल से दल पहुंचा दिया गया है। क्या, वे यही दावा इस झरने के पास पानी भरते इन ग्रामीणों सामने खड़े होकर कह सकते हैं। यदि सियासत में कहीं भी थोड़ी सी भी शर्म की गुंजाइश है तो जाहिर है कि नहीं कह पाएंगे। हां, अलग बात है कि इस बात से ही मुकर जाएं कि ये नजारा झारखंड का है। 

दुमका के मुड़ासोल गांव में पेयजल किल्लत
पानी के लिए जद्दोजहद करते ग्रामीणों की ये तस्वीर दुमका (Dumka) की है। दुमका के गोपीकांदर प्रखंड (Gopikandar Block) मुख्यालय से 15 किमी दूर टायजोर पंचायत के मुड़ासोल गांव (Mudasol Village) में पेयजल की घोर किल्लत है। बीते कई वर्षों से यहां के लोग पानी से संबंधित हर जरूरत के लिए इसी झरने पर निर्भर हैं। मुड़ासोल गांव के आदिवासी बहुल जोजो टोला में 80 परिवार रहते हैं। सैकड़ों की आबादी वर्षों से रोज सुबह पानी के लिए संघर्ष करती है। कड़कड़ाती ठंड हो। झुलसाती गर्मी हो या फिर गरजता-बरसता मानसून।

यहां के लोग रोज सुबह तसला, बाल्टी और डब्बा लेकर अंग्रेजी वाला शफर करने निकल पड़ते हैं क्योंकि हुक्मरानों ने कोई और चारा नहीं छोड़ा। हवा में होर्डिंग टांगने में इतने व्यस्त रहे कि धरातल की सच्चाई दिखी ही नहीं। ऐसा नहीं है कि यहां के ग्रामीणों ने आवाज नहीं उठाई। भला हो ट्विटर का कि आवाज मुख्यमंत्री तक पहुंची। मुख्यमंत्री ने निर्देश भी दिया लेकिन 2 साल बीतने को हैं। लोग आज भी झरने का गंदा पानी ही पी रहे हैं। 

मुख्यमंत्री ने 2 साल पहले दिया था निर्देश
बात 2 साल पुरानी है। 6 जुलाई 2020 को मुख्यमंत्री  (Chief Minister Hemant Soren) ने इस गांव में पानी की समस्या पर संज्ञान लेते हुए ट्वीट किया था। उन्होंने दुमका की तात्कालीन डीसी राजेश्वरी बी (Deputy Commissioner Rajeshwari B) को निर्देश दिया कि मामले की जांच करें और लोगों को पेयजल सहित अन्य मूलभूत जरूरतों का लाभ देते हुए सूचित करें।

इसमें पेयजल मंत्री मिथिलेश ठाकुर और राजमहल सांसद विजय हांसदा को भी टैग किया गया था। तब डीसी रहीं राजेश्वरी बी ने जवाब दिया। इलाका ड्राई जोन है। यहां उच्च प्रवाही नलकूप की जरूरत है। पेयजल विभाग को 2 दिन में डीपीआर बनाने का निर्देश दिया है। फिर प्रोजेक्ट को सेन्सन और इंप्लीमेंट कर दिया जायेगा। 2 साल बीत गये। ना तो डीपीआर बना। ना प्रोजेक्ट सेन्सन हुआ। इंप्लीमेंट तो आप देख ही रहे हैं।