Nancy Oraon
करम पर्व भारत के आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। करम पर्व मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश एवं ऐसे राज्यों में मनाया जाता है जहां आदिवासी आबादी अधिक है। करम पर्व भादो के महीने में मनाया जाता है।
क्यों मनाते हैं करम पर्व
करम पर्व को लेकर अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार करम पर्व कुंआरी आदिवासी लड़कियां अपने भाई के लंबे जीवन के लिए करती हैं। एक दूसरी मान्यता के अनुसार यह पर्व शक्ति, यौवन और युवावस्था के देवता करम देवता को समर्पित है। वहीं, कुछ इलाकों में करम पर्व अच्छी फसल और स्वास्थ्य के लिए की जाती है। साथ ही प्रकृति से मिलने वाली चीजों के लिए आभार व्यक्त करते हैं। कुछ स्थानों इस दिन कुंवारी लड़कियां करम पेड़ को अपना भाई मान कर पर्व करती हैं। आदिवासी लड़कियां उपवास रख कर शाम को अखड़ा में जा कर करम पेड़ की पर्व-अर्चना करती हैं। इस दौरान अदिवासी समाज कृषि, वन और प्रकृति के देवता करम देवता की पर्व अच्छी फसल के लिए करता है।
कैसे होती है करम पर्व
झारखंड की बात करें तो, करम पर्व से 8-9 दिन पहले कुवारी लड़कियां जावा उगाती हैं। गांव के लोग जंगल से फल, फूल और आनाज लेकर आते हैं। ये सब करम पर्व के दिन करम देवता को आभार व्य्क्त करने के लिए भेंट के रूप में दिया जाता है। वहीं गांव के पाहन अखड़ा के बीच में लगे करम पेड़ को मुर्गे की बलि देते हैं। कुंवारी लड़कियां करम पेड़ को अपना भाई मानकर पर्व करती हैं और सुख-समृद्धि के लिए कामना करती हैं। अखड़ा में पर्व करने के बाद सभी लोग मिल कर ढोल-नगाड़ा बजा कर अपना पारंपरिक गीत गाते हैं और पूरी रात नाचते झूमते हैं। यह नृत्य और संगीत आदिवासी समाज की एकता और सामूहिकता को दर्शाता है।
करम पर्व का इतिहास
आदिवासी लोककथाओं के अनुसार करम पर्व के पीछे कई मिथक और कथाएं हैं। एक लोककथा के अनुसार किसी समय एक गांव में दो भाई रहते थे। एक का नाम करमा था और दूसरे के नाम धरमा। धरमा का जीवन बहुत अच्छा चल रहा होता है। उसकी फसलें लहलहाती थीं। वहीं करमा की फसलें मुरझा जाती थीं। लोककथा के अनुसार, इस कारण करमा के अंदर ईर्ष्या का भाव प्रकट हो गया और वह गांव के अखड़े में लगे करम पेड़ को उखाड़ फेंकता है। इस अपमान से करम देवता नाराज हो जाते हैं और गांव छोड़ कर चले जाते हैं। इसके बाद गांव में आकाल पड़ जाता है। लोगों की फसलें खराब हो जाती हैं। नदी, तालाब सब सूख जाते हैं। करमा को अपनी गलती का अहसास होता है और वह करम देवता की खोज में निकल जाता है। वह नदी, पहाड़, पर्वत पार करता है। उसे रास्ते में कई कठिनाइयां मिलती हैं लेकिन वह आगे बढ़ता जाता है। बहुत दूर जाने के बाद उसे एक पेड़ से सफेद रोशनी आती दखाई देती है। पास आकर जब वो देखता है तो वहां करम देवता बैठे रहते हैं। करमा उनसे माफी मांगता है और अपने साथ गांव चलने के लिए प्रार्थना करता है। फिर दोनों उसी रास्ते वापस अपने गांव पहुंचते हैं। जब दोनों गावं पहुंचते है तो करमा देखता है कि पूरा गांव अखड़ा में झूम रहा है और करम पेड़ की पर्व कर रहा है। गांव वाले दोनों का धूमधाम से स्वागत करते है। इसी के बाद से आदिवासी समाज के लोग करम देवता के लौटने की खुशी में करम पर्व मनाते हैं।
आज के समय में करम पर्व का महत्व
करम पर्व मनुष्य और प्रकृति के संबंध को दर्शाता है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि मनुष्य के कर्म और प्रकृति के साथ उसका संतुलन ही उसे सच्ची समृद्धि और सुख की ओर ले जा सकता है। यही कारण है कि आज के आधुनिक समय में भी करम पर्व की प्रासंगिकता और जरूरत बनी हुई है। एक ओऱ जहां पेड़ काटे जा रहे हैं, पहाड़ों का अस्तित्व समाप्त किया जा रहा और प्रदूषण का स्तर दिनों दिन ऊंचा होता जा रहा है, वहीं, करम पर्व हमें इन प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा का संदेश देता है। सही मायनों में करम पर्व संदेश हमें प्रकृति के प्रति उदार और सहिष्णु होना सिखाता है।