द फॉलोअप डेस्क
राज्य के अल्पसंख्यक सह जल संसाधन मंत्री हफीजुल हसन व अन्य गणमान्य 14 लोगों को भारत वर्चुअल ओपेन एजुकेशन यूनिवर्सिटी द्वारा दी गयी पीएचडी की मानद उपाधि पर विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा ने इस पर कई तरह के सवाल खड़े किए हैं। इसके बाद भारत वर्चुअल एजुकेशन ओपेन यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ एमएम अहमद ने कहा है कि केवल अफवाह फैलायी जा रही है। आरोप और अफवाह पूरी तरह निराधार है। उन्होंने कहा है कि भारत वर्चुअल एजुकेशन ओपेन यूनिवर्सिटी कंसेप्ट एजुकेशनल ट्रस्ट का एक पार्ट है। इसका 7 दिसंबर 2017 में दिल्ली में निबंधन हुआ है। ट्रस्ट द्वारा एक रेगुलेशन पास कर भारत वर्चुअल एजुकेशन ओपेन यूनिवर्सिटी को 2018 में अस्तित्व में लाया गया। 2018-2025 के बीच यूनिवर्सिटी द्वारा कला, संस्कृति, शिक्षा व कई अन्य क्षेत्रों में गणमान्य लोगों को अशैक्षणिक मानद उपाधि दी गयी। यह उन लोगों को दी जा रही जो समाज में यूनिटी और इंटिग्रिटी के लिए काम करते हैं। 26 अप्रैल को भी भारत वर्चुअल एजुकेशन ओपेन यूनिवर्सिटी द्वारा जिन 15 लोगों को मानद उपाधि दी गयी, उनमें 14 गैर मुसलिम हैं। हफीजुल हसन के अलावा इसमें पोधानी सुरेंद्र, काजर कानपुरवाला, इलशाम व अन्य शामिल हैं।
भारत वर्चुअल एजुकेशन ओपेन यूनिवर्सिटी द्वारा 2021 में करबी एलिंग काउंसिल के सीएम तुली राम रुहांग और असम के डिप्टी स्पीकर एनिमुल हक लहकर को भी मानद उपाधि दी गयी। उन्होंने कहा है कि गुगल और यू ट्युब पर सर्च कर संस्था के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की जा सकती है। यह प्राइवेट यूनिवर्सिटी है, इसलिए यूजीसी से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है।