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Ranchi : स्पीकर के न्यायाधिकरण में बाबूलाल मरांडी की आपत्तियां खारिज, संवैधानिक बिंदुओं पर होगी चर्चा

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रांची: 

बीजेपी विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के खिलाफ झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी में विलय के मामले में दल-बदल के तहत कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर स्पीकर के न्यायाधिकरण में सुनवाई हुई। याचिका में शिकायतकर्ताओं ने मांग की थी कि बाबूलाल मरांडी की सदस्यता समाप्त कर दी जाए। हालांकि, सुनवाई के दौरान प्रीलिमनरी आपत्ति को खारिज कर दिया गया। दरअसल,  बाबूलाल मरांडी के वकील ने मामले में ऑब्जेक्शन किया था। 

अगली सुनवाई में होगी संवैधानिक चर्चा
इसी आधार पर अगली सुनवाई होगी। तब तय किया जाएगा कि बाबूलाल मरांडी की सदस्यता रहेगी या वे विधानसभा के लिए अयोग्य ठहराए जाएंगे। गौरतलब है कि साल 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने झाविमो के सिंबल पर गिरिडीह के राजधनवार विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी। बाद में उन्होंने झाविमो का बीजेपी में विलय कर दिया। इसे चुनाव आयोग की स्वीकृति मिल गई लेकिन विधानसभा ने विलय को मान्यता नहीं दी। बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी नहीं मिला।

बाबूलाल मरांडी के खिलाफ इन्होंने की शिकायत
गौरतलब है कि बाबूलाल मरांडी के खिलाफ पूर्व विधायक राजकुमार यादव, झामुमो विधायक भूषण तिर्की, कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह और प्रदीप यादव सहित बंधु तिर्की ने याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि मरांडी के खिलाफ दल-बदल के तहत कार्रवाई करते हुए अयोग्य घोषित किया जाए। याचिका स्पीकर न्यायाधिकरण में दाखिल की गई। इसी विवाद की वजह से बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद भी बाबूलाल मरांडी के नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला। 

स्पीकर रविंद्रनाथ महतो के न्यायाधिकरण में सुनवाई
गौरतलब है कि सोमवार को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो के न्यायाधिकरण में सुनवाई हुई। कहा जा रहा है कि मामले में अब केवल संवैधानिक पहलुओं पर चर्चा होगी। इससे पहले 6 मई को भी मामले में सुनवाई हो चुकी है। सुनवाई के दौरान बाबूलाल मरांडी की तरफ से दलील दी गई थी कि संबंधित मामला हाईकोर्ट में चल रहा है, ऐसे में स्पीकर के न्यायाधिकरण में सुनवाई नहीं होनी चाहिए। ये संस्थाओं के टकराव का मामला बन जाएगा। 

बाबूलाल मरांडी के अधिवक्ता ने क्या-क्या तर्क दिये
बाबूलाल मरांडी के वकील का दूसरा तर्क ये है कि मामला विधानसभा की नियमावली के प्रतिकूल है। 11 फरवरी 2020 को झाविमो का भाजपा में विलय हुआ। 6 मई 2020 को निर्वाचन आयोग ने विलय को सही ठहराया। विलय के 10 महीने पश्चात 16 दिसंबर 2020 को पहला केस फाइल किया गया। 10वीं अनुसूची के प्रावधान-6 के मुताबिक दल-बदल मामले में देरी की गई।