Zeb Akhtar
पद्मश्री सम्मान से सम्मानित छुटनी देवी सरायकेला-खरसावां में सक्रिय एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस नाम के एनजीओ की निदेशक हैं। झारखंड और देशभर में आज जो उनका रूतबा और स्थान है, उसके लिए छुटनी देवी ने संघर्षों से भरा लंबा सफर तय किया है। छुटनी देवी ने अतीत में अपमान, तिरस्कार और असुरक्षा का ऐसा कांटों भरा सफर तय किया है जिसमें कदम-कदम पर समाज की गंदगी से उपजा महिषासुर उनके अस्तित्व को निगलने के लिए तैयार खड़ा था। छुटनी देवी ने झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और बंगाल तक फैले इन ना दिखाई देने वाले महिषासुर से अकेले जंग लड़ी है। सवाल है कि आखिर यह महिषासुर कौन है। कहां से आया। समाज में फैले अंधविश्वास और अशिक्षा से उपजे इस महिषासुर का नाम है डायन प्रथा। इसकी आड़ में संपत्ति के लालच में अंधे लोगों ने ना जाने कितनी महिलाओं को प्रताड़ित किया। उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया। गांव तक से निकाल दिया। उनकी आबरू लूटी और सरेआम चीरहरण तक किया।
13 साल की उम्र में शादी कर दी गयी
छुटनी देवी ने समाज में जगह-जगह व्याप्त ऐसे ही महिषासुरों का अकेले सामना किया। छुटनी देवी बताती हैं, महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गयी। 15-16 साल सब ठीक चला। फिर आई 3 दिसंबर 1995 की वह स्याह तारीख, जिस दिन से छुटनी देवी के लिए सबकुछ बदल गया। छुटनी देवी बताती हैं कि ससुराल बीरबांस गांव में उनकी भाभी की बच्ची बीमार पड़ गयी। बहुत इलाज कराया लेकिन वो ठीक नहीं हो सकी। गांव में डायन भूत और प्रेत की चर्चा आम है। इसी कुप्रथा का शिकार बनीं छुटनी देवी।
छुटनी देवी पर लगा बच्ची की मौत का इल्जाम
छुटनी देवी को बच्ची की बीमारी का कारण बताया गया। पंचायत बैठी और छुटनी देवी को मुजरिम मानते हुए 500 रुपये का जुर्माना लगाया। दंबगों के डर से छुटनी देवी ने जुर्माना भर दिया। दूसरे ही दिन बच्ची चल बसी। इसके बाद 40-50 लोगों की भीड़ ने छुटनी देवी के घर पर हमला कर दिया। भीड़ ने छुटनी को पीटा। उनके कपड़े फाड़ दिए। उनकी आबरू लूटने की कोशिश की गई। अंधविश्वास में अंधी भीड़ का जब इतने से भी मन नहीं भरा तो छुटनी देवी को मल-मूत्र पिलाया गया। बिना किसी गुनाह के पहले तो समाज ने छुटनी देवी को अमानवीय सजा दी और फिर नाते-रिश्तेदारों ने भी मुंह फेर लिया। पति ने भी छुटनी देवी का साथ छोड़ दिया। एक झटके में पति, घर और रिश्तेदार गंवा चुकी छुटनी देवी को गांव छोड़ना पड़ा। ठौर तो कहीं भी मिल जाता लेकिन अब जंग आत्मसम्मान की थी।
और फिर छोड़ देना पड़ा गांव
3 छोटे बच्चों को लेकर आधी रात छुटनी ने गांव छोड़ दिया। समाज, डायन कहकर छुटनी की जान का दुश्मन बना हुआ था। ससुराल ने सहारा नहीं दिया। छुटनी किसी तरह अपने रिश्तेदार के घर गई। खतरा वहां भी था। छुटनी ने खरकई नदी पार की और जमशेदपुर स्थित एक गांव में अपने भाई के घर पहुंची। बदकिस्मती, छुटनी का पीछा नहीं छोड़ रही थी। कुछ ही महीनों में मां की मौत हुई और फिर इल्जाम लगा छुटनी देवी पर। छुटनी देवी को अपने भाई का घर भी छोडऩा पड़ा। हालांकि, अब कहीं और जाने की न उसके अंदर ताकत बची थी न हिम्मत। छुटनी गांव के बाहर झोंपड़ी बनाकर 3 बच्चों के साथ रहने लगी। गुजर के लिए मजदूरी करने लगी। छुटनी देवी बताती हैं लगता था उनके जीवन में कभी सवेरा नहीं होगा। नियति को कुछ ही मंजूर था। किस्मत ने उनके लिए कुछ ही और तय कर रखा था। उन्हीं दिनों छुटनी देवी की मुलाकात फ्रीलीगलएड कमेटी यानी फ्लैक के कुछ मेंबर से हुई। इन मेंबर्स की मदद से छुटनी देवी की कहानी लोकल मीडिया और फिर नेशनल मीडिया तक पहुंची।
नेशनल जियोग्राफिक चैनल ने बनयी फिल्म
ये 1996-97 का समय था। जब नेशनल जियोग्राफिक चैनल तक उनकी बात पहुंची और अब तक के उनके संघर्ष और उनकी जिजीविषा पर चैनल ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनायी। इस बीच छुटनी देवी हर उस जगह पर पहुंचने लगी जहां ड़ायन बिसाही के नाम पर किसी महिला को परेशान किया जाता था। किसी का जीना मुश्किल हो गया था। इस तरह छुटनी देवी तब तक 500 से ज्यादा महिलाओं की जान बचा चुकी थी। वर्ष 2000 में गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉरसोशल एंड ह्यूमनअवेयरनेस, आशा ने उन्हें सामाजिक बदलाव और और अंधविश्वास के खिलाफ जारी अभियान से जोड़ा। छुटनी देवी को तब समझ में आया कि कानून के सहारे कैसे रुढियों और अंधविश्वास से लड़ा जा सकता है। छुटनी ने सोशल एवयरनेस का ग्रामर समझा और हर उस गांव में जाने लगी जहां किसी को डायन-ओझा कहकर परेशान करने की शिकायत मिलती। छुटनी को दबंगों की धमकियां भी मिलीं लेकिन, छुटनी देवी को अब लडऩा आ गया था।
2021 में पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया।
छुटनी देवी यहीं नहीं रुकीं, रेस्क्यू की गयीं महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया। आशा की ओर से उनको सिलाई-बुनाई, हस्तकला, शिल्पकला और दूसरे काम की ट्रेनिंग दी गयी। इसी दौरान बीरबांस में ही आशा का पुनर्वास एडवाइजरी सेंटर बना। छुटनी देवी को यहां डायरेक्टर बनाकर भेजा गया। इस तरह छुटनी देवी की लड़ाई फिर से वहां पहुंच गयी जहां कभी उसे तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब उनकी आवाज बीरबांस गांव तक ही सीमित नहीं रह गयी थी। उनकी आवाज अब झारखंड के चाईबासा, सरायकेला-खरसांवा, खूंटी, चक्रधरपुर से निकलकर छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल और ओडिशा की सीमा तक पहुंचने लगी थी। ये उनके काम, उनके समर्पण और संघर्ष का ही परिणाम था कि उनको 2021 में उनको पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया।
आज भी जारी है झारखंड में डायन के नाम पर जुल्म
बहरहाल छुटनी देवी बताती हैं कि डायन के नाम पर आज भी झारखंड के कई इलाकों में जुल्म नहीं रुका है। इसकी वजह सिर्फ अंधविश्वास नहीं है। ऐसी घटनाओं के पीछे आपसी रंजिश से लेकर संपत्ति हड़पने तक की साजिशें होती हैं। छुटनी देवी की बातों की तस्दीक इन आंकड़ों से होती है कि डायन के नाम पर अकेले झारखंड में पिछले 2 सालों में 38 लोगों की जान ली जा चुकी है। इनमें 95 फीसदी महिलाएं हैं। दूसरा आंकड़ा बताता है कि पिछले 7 साल में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में ही हर साल औसतन 35 हत्याएं हुईं हैं। सीआईडी की रपट है कि 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या की गयी। बहरहाल, छुटनी देवी के काम उनके योगदान को किसी भी सम्मान और पद से तौला नहीं जा सकता है।
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