द फॉलोअप डेस्क
बाबानगरी देवघर पर बसंत पंचमी का रंग पूरी तरह से चढ़ गया है। सोमवार को बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव हुआ बाबा को तिलक चढ़ाने के लिए मिथिला से तिलकहरुए बड़े-बड़े कांवर लेकर बाबाधाम पहुंचे हैं। मिथिलावासियों से बाबा मंदिर सहित पूरा शहर पट गया है। हर तरफ बाबा को तिलक चढ़ाने आए तिलकहरुओं का हुजूम लग गया है।
क्यों चढ़ाते हैं मिथिलांचलवासी तिलक
माता सीता मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री थी,इसलिए मिथिलांचलवासी सीता माता को अपनी बहन मानते हैं। सीता का विवाह महाशिवरात्रि के दिन हुआ था और इनका तिलक फलदान बसंत पंचमी के दिन हुआ था। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचलवासी बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाने देवघर पहुंचते है,विशेष प्रकार के कांवर, वेश-भूषा और भाषा से अलग पहचान रखनेवाले ये मिथिलावासी अपने को बाबा का संबंधी मानते हैं और इसी नाते बसंत पंचमी के दिन बाबा के तिलकोत्सव में शामिल होने देवघर आते हैं। अभी से ही कई टोलियों में आ रहे मिथिलावासी शहर के कई जगहों पर इकठ्ठा होते हैं और बड़ी श्रद्धा से पूजा-पाठ,पारंपरिक भजन-कीर्तन करते है। बसंत पंचमी के दिन बाबा का तिलकोत्सव मनाते हैं खुशियां बांटते है और एक-दुसरे को अबीर गुलाल लगाकर बधाईयां देते हैं.इसके बाद से इनलोगों की होली की भी शुरुआत हो जाती है।
अति प्राचीन परंपरा आज तक निभाई जा रही
बाबा मंदिर के तीर्थ-पुरोहितों की मानें तो बसंत पंचमी के अवसर पर मिथिलांचल के लोगों द्वारा देवाधिदेव महादेव को तिलक चढ़ाने की अति प्राचीन परम्परा रही है। कहते हैं कि ऋषियों- मुनियों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी,जिसे आजतक मिथिलावासी निभाते आ रहे हैं। यही वजह है कि मिथिलावासियों की विशेष कांवर से मंदिर ही नहीं मंदिर परिसर के आसपास क्षेत्र पटा पड़ा है। बसंत पंचमी के मौके को देखते हुए सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से एक विशेष तरह के कांवर में जलभर कर ये श्रद्धालू देवघर पहुंच रहे है। बसंत पंचमी के दिन बाबा पर तिलक चढ़ाने के बाद बाबा को हिमालय पुत्री माँ पार्वती के विवाह में शामिल होने का निमंत्रण देकर वापस अपने घर लौट जाते हैं।