द फॉलोअप डेस्क
हाल ही में एक फैसले में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक नाबालिग बेटी को अंतरिम भरण-पोषण देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मां की आय की परवाह किए बिना वित्तीय सहायता प्रदान करने के पिता के दायित्व की पुष्टि की गई। न्यायमूर्ति सुमीत गोयल द्वारा दिया गया यह निर्णय माता-पिता की जिम्मेदारी और माता-पिता दोनों के कानूनी कर्तव्यों पर न्यायालय के रुख को उजागर करता है, भले ही एक माता-पिता के पास बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन हों।
क्या है मामला
CRR(F)-1355/2024 शीर्षक वाले इस मामले में याचिकाकर्ता, पिता ने पारिवारिक न्यायालय, कैंप कोर्ट, नाभा के प्रधान न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। पारिवारिक न्यायालय ने उसे अपनी नाबालिग बेटी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 7,000 रुपये मासिक देने का आदेश दिया था, साथ ही 10,000 रुपये मुकदमे का खर्च भी देने का आदेश दिया था। अधिवक्ता राहुल गर्ग द्वारा प्रस्तुत याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनकी 22,000 रुपये प्रति माह की सीमित आय और मौजूदा पारिवारिक दायित्वों पर विचार नहीं किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि बच्चे की मां, जो 35,400 रुपये मासिक वेतन वाली एक सरकारी शिक्षिका है, के पास बच्चे की स्वतंत्र रूप से देखभाल करने के लिए पर्याप्त साधन हैं।
क्या कहा कोर्ट
न्यायमूर्ति सुमीत गोयल के फैसले ने पिता की अपने नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करने की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा, “पिता का अपने बच्चों का भरण-पोषण करना समान कर्तव्य है, और ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जिसमें केवल मां को ही बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा के खर्च का बोझ उठाना पड़े।”यह कथन न्यायालय की स्थिति को दर्शाता है कि पिता केवल इसलिए अपने दायित्व से बच नहीं सकता क्योंकि मां की आय स्थिर है।