दीपक झा जामताड़ाः
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय की घोषणा नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे जामताड़ा में विभिन्न पार्टी प्रचार प्रसार तेज हो गया है। बता दें कि जामताड़ा ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्मभूमि के साथ-साथ साइबर क्राइम के गढ़ के रूप में भी पूरे देश में कुख्यात है। यही नहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से जामताड़ा विधानसभा सीट भी कई मायने में महत्वपूर्ण है। वैसे तो जामताड़ा विधानसभा सीट कांग्रेस की गढ़ रही हैं, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी यहां से एक बार चुनाव जीत चुके है। जामताड़ा विधानसभा सीट की बात की जाए तो साल 2009 से 2014 के कार्यकाल को छोड़ दे तो 1982 से अब तक कांग्रेस के एक ही परिवार के नेताओं का यहां लगातार कब्जा रहा है।
बिहार सरकार में मंत्री रहे फुरकान अंसारी जामताड़ा विधानसभा सीट से लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जबकि वर्तमान समय में उनके पुत्र इरफान अंसारी लगातार 10 वर्षों से जामताड़ा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जिस कारण यह माना जा सकता है कि जामताड़ा कांग्रेसियों का अभेद किला है। जिसे एक ही परिवार के सदस्य बचाए हुए हैं। यही नहीं इसे ध्वस्त करने के लिए विरोधियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। वर्ष 1980 के चुनाव में जामताड़ा विधानसभा सीट पर फुरकान अंसारी चुनाव लड़े थे और उनके प्रतिद्वंदी कम्युनिस्ट पार्टी से वीरू बोस थे। मतगणना के दौरान वीरू बोस को विजय घोषित कर दिया गया। लेकिन इसके विरोध में फुरकान अंसारी न्यायालय के शरण में गए और 1982 में कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए बीरू बोस की दावेदारी रद्द कर दी। उसके बाद फुरकान अंसारी लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे और 2004 तक जामताड़ा विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया।
हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में फुरकान अंसारी ने कांग्रेस की टिकट पर गोड्डा से चुनाव लड़ा और वहां से वो विजय घोषित हुए। लेकिन 2009 में फुरकान अंसारी एक बार फिर जामताड़ा विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें जेएमएम प्रत्याशी विष्णु भैया से हार का सामना करना पड़ा। वहीं उसके बाद 2014 में फुरकान अंसारी के पुत्र इरफान अंसारी ने कांग्रेस के टिकट पर जामताड़ा से चुनाव लड़े और वह विजय घोषित हुए। 2019 के चुनाव में भी इरफान अंसारी ने जीत दर्ज की। जिस कारण यह कहा जा सकता है कि 35 साल से जामताड़ा विधानसभा सीट पर एक ही परिवार के लोगों का कब्जा है।
अन्य पार्टी ने भी चखा है जीत का स्वाद :
जामताड़ा विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहने के बाद भी यहां पर कई अन्य राजनीति पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत का स्वाद चखा है। जानकारी के अनुसार 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से कृष्णा देवदास यहां विधायक बने। 1957 में कम्युनिस्ट पार्टी के शत्रुघ्न बेसरा ने जीत दर्ज की। 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी काली प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज। 1967 और 1969 में भीं काली प्रसाद सिंह ने जीत हासिल की। 1972 में दुर्गा प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित घोषित हुए। 1977 में भी दुगी प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर जीते। 1980 के पहले कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को विजयी घोषित किया गया, लेकिन अदालत के आदेश के बाद कांग्रेस के फुरकान अंसारी को 1992 में विजयी घोषित किया गया। इसके बाद से वो 2004 तक लगातार जामताड़ा के विधायक रहे। वर्ष 2005 में भाजपा से विष्णु भैया यहां जीते। 2009 में विष्णु भैया ने इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव में शिबू सोरेन यहां से विजय घोषित हुए। वहीं 2009 में पुनः विष्णु भैया झामुमो की टिकट पर जीत दर्ज की। लेकिन उसके बाद से यहां कांग्रेस का कब्जा है।