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हूल दिवस पर भोगनाडीह में धर्मांतरण एवं घुसपैठियों के खिलाफ होगी निर्णायक आंदोलन की शुरुआत : चम्पाई सोरेन

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द फॉलोअप डेस्क

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने राज्य में बढ़ रहे धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की घोषणा की है। रांची आवास पर आयोजित एक प्रेस कांग्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने ऐलान किया कि हूल दिवस (30 जून) के दिन वीर भूमि भोगनाडीह में आदिवासी समाज के अभिभावकों, धर्म गुरुओं, मांझी परगना, पाहन, मानकी-मुंडा, पड़हा राजा आदि के साथ हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग जुट कर, आंदोलन की शुरुआत करेंगे। 

झारखंड में बढ़ते धर्मांतरण के मामलों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अगर धर्मांतरण को रोकने के लिए पहल नहीं हुई तो भविष्य में हमारे सरना स्थलों, देशाऊली एवं जाहेरस्थानों में पूजा करने वाला कोई नहीं बचेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस किसी भी व्यक्ति ने आदिवासी परंपराओं एवं जीवन शैली को त्याग दिया अथवा दूसरे धर्म में विवाह कर लिया हो, उसे संविधान द्वारा हमें दिए गए आरक्षण में अतिक्रमण का कोई अधिकार नहीं है। 

महान आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव को याद करते हुये उन्होंने कहा कि सन 1967 में उन्होंने संसद में डीलिस्टिंग विधेयक पेश किया था, जिसमें धर्म बदलने वाले आदिवासियों से आरक्षण छीनने की मांग की गई थी। उस विधेयक को तत्कालीन सरकार ने संसदीय समिति को भेजा था, जिसने आदिवासियों के अस्तित्व की रक्षा हेतु डीलिस्टिंग को जरूरी बताया था। लेकिन इसके बाद भी, जब कुछ नहीं हुआ तो बाबा कार्तिक उरांव ने 322 सांसदों तथा 26 राज्यसभा सांसदों से अनुशंसा पत्र हस्ताक्षरित करवाया था, लेकिन इसके बावजूद, ईसाई मिशनरियों के दबाव में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 

बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुये उन्होंने कहा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती। पाकुड़, साहेबगंज एवं दुमका समेत अन्य जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी समाज की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं, हमारी बेटियों को बहला-फुसला कर, अथवा धमकी देकर उनसे शादी कर रहे हैं, और उनके सहारे पिछले दरवाजे से हमारे समाज के लिए आरक्षित सीटों पर अतिक्रमण कर रहे हैं। इसे रोकना होगा। सीएनटी-एसपीटी एक्ट जैसे सुरक्षा कवच होने के बावजूद, इन्हें सैकड़ों एकड़ जमीनें कौन उपलब्ध करवा रहा है? इन्हें जमाई टोले बसाने में मदद करने वाले कौन लोग हैं? 

हजारों वर्ष पुरानी आदिवासी सभ्यता के संघर्ष को याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि खेरवाड़ वीरों से लेकर बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, भगवान बिरसा मुंडा, टाना भगत, पोटो हो, तेलंगा खड़िया तक, जब हमारे समाज ने अपने अस्तित्व एवं आत्म-सम्मान की लड़ाई में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया, तो आज हम कैसे झुक सकते हैं? 

उन्होंने कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी अस्मिता की रक्षा हेतु चल रहे उनके अभियान को आदिवासी समाज का अपार समर्थन मिल रहा है। हूल दिवस के बाद यह आंदोलन तेज गति पकड़ेगा, तथा लाखों लोग एकजुट होकर सड़कों पर आयेंगे, जिसके बाद समाज की भावना से केंद्र सरकार को अवगत करवाया जायेगा।

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