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जादूगोड़ा का दर्द : देश की परमाणु जरूरतों के लिए जिन्होंने यूरेनियम दिया, बदले में उन्हें मिला कैंसर-टीबी और विस्थापन

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रिपोर्ट- सूरज ठाकुर/ऋषभ गौतम

ये 52 वर्षीय जेना हेम्ब्रम हैं। जेना ये उम्मीद छोड़ चुकी हैं कि अब कभी दोबारा अपने पैरों पर खड़ी हो पाएंगी। जेना झारखंड के जादूगोड़ा के उन दर्जनों लोगों में से एक हैं जिन्होंने भारत के न्यूक्लियर पॉवर और एनर्जी के महात्वाकांक्षी सपनों की कीमत चुकाई है। जेना की मेडिकल रिपोर्ट में बीमारी तो अज्ञात है लेकिन परिवार को पक्का यकीन है कि इनकी ये हालत यूरेनियम कचरे से निकले रेडिएशन की वजह से है।

जेना हेम्ब्रम 

जादूगोड़ा। झारखंड की वो जगह जहां महंगे यूरेनियम का विशाल भंडार है। यूरेनियम परमाणु बम और बिजली, दोनों बनाने के काम आता है। जादूगोड़ा में इसे निकालने का काम करती है यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी यूसीआईएल। साल 1968 में इसकी शुरुआत हुई थी। बीते 66 साल में न्यूक्लियर पॉवर बनने की दिशा में भारत काफी आगे बढ़ा लेकिन बड़ा सवाल है कि जादूगोड़ा और उसके लोगों को क्या मिला...सारे सवालों के जवाब आगे रिपोर्ट में है। देखते जाइये।

UCIL प्लांट जादूगोड़ा 

जेना के बेटे अर्जुन हेम्ब्रम बताते हैं कि मां के दिमाग में रेडिएशन का असर हुआ फिर शरीर में उसके लक्षण दिखे। मेडिकल रिपोर्ट में सब नॉर्मल बताते हैं। उनका कहना है कि दरअसल, यहां ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं है जिससे साबित हो सके कि यूरेनियम कचरे से निकला रेडिएशन इस बीमारी का कारण है।

अर्जुन बताते हैं कि शायद डॉक्टर भी किसी डर की वजह से हमें हमारी मां की बीमारी का सही कारण नहीं बताते। वो आगे जोड़ते हैं कि, 1 साल पहले मां बिलकुल ठीक थीं। अचानक एक दिन आंगन में गिर पड़ीं। हमने उन्हें उठाकर बेड पर रखा। हमें लगा कि उनको चक्कर आया होगा। चेकअप में भी कोई गंभीर कारण नहीं मिला। बाद में हमने आयुर्वेदिक इलाज कराया लेकिन कोई सुधार नहीं है। उनकी नसों में दर्द होता है। ठंड में तकलीफ और बढ़ जाती है। 

जेना हेम्ब्रम कहते हैं कि छाती और पीठ में असहनीय दर्द होता है। कलाई, उंगलियां और शरीर के ज्वॉइंट्स अकड़ गये हैं। मैं खुद से कोई काम नहीं कर सकती। 

चाटीकोचा गांव की चीत्ता टुडू भी यूरेनियम कचरे से निकले रेडिएशन का शिकार हुई हैं। चाटीकोचा में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाती हैं। चीत्ता के शरीर के निचले हिस्से में भीषण दर्द रहता है। एक पैर भी टेढ़ा है। चीत्ता बचपन से ऐसी नही थीं बल्कि रेडिएशन का दुष्प्रभाव उनकी दिव्यांगता की वजह बना।

चीत्ता टुडू का कहना है कि उनकी मां ने बताया कि 4 साल की उम्र तक वह बिलकुल ठीक थीं फिर धीरे-धीरे पक्षाघात का शिकार हो गईं। उनका एक पैर कमजोर होकर मुड़ गया। शरीर के निचले हिस्से में दर्द रहता है। चलने-फिरने में परेशानी होती है।

चीत्ता टुडू इस दौरान माइंस प्रभावित गांवों में महिलाओं में गर्भधारण और माहवारी संबंधी परेशानियों का भी जिक्र करती हैं। चीत्ता बताती हैं कि गर्भवती महिलाओं का असमय गर्भपात हो जाता है। एक निश्चित उम्र से पहले ही महिलाओं को माहवारी आना बंद हो जाता है।

जेना की ये हालत कैसे हुई। इस सवाल का जवाब जानना जरूरी है। दरअसल, पूरे इलाके का पानी भयंकर तरीके से दूषित हो चुका है। शायद जहरीला कहना ज्यादा मुनासिब होगा।

जादूगोड़ा में यूसीआईएल की यूरेनियम माइंस है। खुदाई के बाद मिट्टी और पत्थर से यूरेनियम निकालने के लिए उसकी प्रोसेसिंग होती है। 

कहते हैं कि 1 किलोग्राम यूरेनियम हासिल करने में 1750 किलोग्राम रसायनयुक्त कचरा निकलता है। इस कचरे को पाइपलाइन के जरिये ऊपर पहाड़ी पर बने विशालकाय तालाबों में डंप किया जाता है। इन्हें टेलिंग्स पॉन्ड कहते हैं। दावा है कि इस टेलिंग्स पॉन्ड से रसायनयुक्त पानी रिसकर भूमिगत जल में मिल गया जिसकी वजह से प्रदूषण हुआ।

नदी और तालाब भी दूषित हो गये। जादूगोड़ा में विस्थापितों के कल्याण के लिए काम कर रहे भीम हांसदा विस्तार से इस पूरी प्रक्रिया को समझाते हैं।

टेलिंग पॉन्ड (इसमें यूरेनियम माइंस का रसायनिक कचरा डंप किया जाता है)

भीम हांसदा बताते हैं कि चाटीकोचा गांव में 100 मी से कम दूरी पर माइंस से निकले रसायनयुक्त कचरे को डंप करने के लिए 3 विशालकाय टेलिंग पॉन्ड बनाये गये हैं। इसमें निकासी के लिए 3 रास्ते बने हैं। जब पानी भर जाता है तो ड्रेन के जरिए उसकी निकासी होती है।

रसायनयुक्त पानी पहले ड्रेन से होता हुआ लोकल नदी में गिरता है और फिर आगे गुडरा नदी में मिल जाता है। गुडरा नदी से होता हुआ सारा रसायनयुक्त कचरा स्वर्णरेखा नदी के पानी में मिल जाता है।

गर्मियों में जब टेलिंग पॉन्ड का पानी सूख जाता है तो, रेडिएशनयुक्त धूलकण गांव में आ जाता है। घरों के आंगन और कमरों में भर जाता है। चाटीकोचा और और आसपास के सभी जलाशय दूषित हो चुके हैं। तालाब, नदी और झरने का पानी इस्तेमाल लायक नहीं रहा। भूमिगत जल भी जहर बन चुका है। 

रसायनिक कचरा युक्त पानी

जादूगोड़ा में यूरेनियम कचरा और रेडिएशन ने जेना और इन जैसे अन्य लोगों को केवल बीमार ही नहीं किया बल्कि स्थानीय आदिवासियों का रोजगार भी छीन लिया है। लोग पहले आजीविका के लिए खेती और मछलीपालन किया करते थे लेकिन अब ये संभव नहीं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में अब खेती किसानी नहीं होती क्योंकि सिंचाई के लिए पानी नहीं है। तालाब और नदी का पानी दूषित हो चुका है। पानी इस्तेमाल के लायक नहीं बचा।

तालाब में यूरेनियम कचरे की वजह से पत्थर सफेद हो चुके हैं। पानी कितना जहरीला हो चुका है, इससे समझा जा सकता है कि इस पानी में साबुन का झाग भी नहीं बनता।

चाटीकोचा के लोग अब आजीविका के लिए यूसीआईएल में कॉन्ट्रैक्ट लेबर के रूप में काम करने या फिर दूसरे प्रदेशों में पलायन को मजबूर हैं। 

दूषित हो चुका तालाब

रेडिएशन का शिकार वे भी हुए हैं जिन्होंने यूसीआईएल में नौकरी की। इन्हीं में से एक हैं मेघराय मुर्मू। 17 साल UCIL के लिए काम कर चुके मेघराय बीते 1.5 साल से टीबी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।

विडंबना देखिए कि 6 माह से उनका इलाज बंद है क्योंकि पैसे नहीं हैं। मेघराय मुर्मू बताते हैं कि मैं 1.5 साल से टीबी से पीड़ित हूं। दवाई खत्म हो गई। यूसीआईएल द्वारा बने जादूगोड़ा हॉस्पिटल में गया तो उन्होंने एक्स-रे करवाने को बोला। मैं एक्स-रे कराने घाटशिला गया। एक्स-रे रिपोर्ट लेकर गया तो कहा कि दवाई खत्म हो गई। मेघराय, टेलिंग पॉन्ड में 17 साल तक मिस्त्री का काम करते रहे।

अब ये बीमारी लग गई। मेघराय बताते हैं कि मेरे लिए रोज घाटशिला आना-जाना संभव नहीं है। मेरे पास इलाज के पैसे नहीं है। पैसे होंगे तो इलाज कराऊंगा। 

मेघराय मुर्मू, टीबी से पीड़ित हैं

जादूगोड़ा के रेडिएशन प्रभावित गांव चाटीकोचा में पेयजल का भीषण संकट है। भूमिगत जल दूषित हो चुका है और अब ग्रामीणों को यूसीआईएल द्वारा आपूर्ति किए जा रहे पानी का सहारा है। लेकिन, इसमें भी कई दिक्कते हैं। पानी से बदबू आती है। इसे भी कपड़े से छानना पड़ता है।

ग्रामीण बताते हैं कि चाटीकोचा में भीषण पेयजल संकट है। नदी, तालाब, कुआं और भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चुका है। यूसीआईएल पीने का पानी के लिए टैंकर भेजती है। एक ऊपर वाली बस्ती के लिए एक नीचे बस्ती के लिए लेकिन, ये नाकाफी है। जो पानी आता है उससे बदबू आती है। कपड़े से छानना पड़ता है। 

UCIL द्वारा पाइपलाइन द्वारा पेयजल की आपूर्ति

जादूगोड़ा के चाटीकोचा में लोग विस्थापन और पलायन का भी शिकार हुये हैं। कंपनी ने माइंस के लिए उनकी जमीनें ली थी। बदले में वादा रोजगार और मुआवजे का था लेकिन सारा वादा अधूरा है। रोजगार और मुआवजा तो नहीं मिला अलबत्ता समस्याएं दर्जनों मिलीं। एक महिला बताती है कि कंपनी ने उनकी जमीन ली थी। वादा किया था कि परिवार के सदस्यों को नौकरी मिलेगी लेकिन केवल 2 लोगों को नौकरी मिली।

आज तक जमीन का मुआवजा नहीं मिला है। मांगने पर केवल आश्वासन मिलता है। महिला कहती है कि कंपनी ने पुनर्वास का वादा किया था लेकिन, आज तक ऐसा नहीं किया।

कंपनी चाहती है कि हम अपने बड़े मकान छोड़कर, 2 कमरों के फ्लैट में चले जायें लेकिन हम अपने पशु और पूरा परिवार लेकर उसमें कैसे रहेंगे?

चाटीकोचा सामुदायिक भवन 

यूसीआईएल में बतौर टिम्बर मैन 40 साल तक सेवा देने वाले रतन मांझी भी उन बदनसीब लोगों में हैं जिन्हें गंभीर बीमारी ने घेर लिया है।

रतन मांझी कहते हैं कि मुझे क्या बीमारी है, मैं नहीं जानता। छाती से लेकर पूरे शरीर में भयानक दर्द होता है। आंखों से कम दिखता है। कान से भी कम सुनाई देता है। मैं यूसीआईएल में 40 साल तक टिम्बर मैन रहा। 5 साल से बीमार हूं। दवाई चल रही है। मुझे चलने-फिरने में परेशानी होती है। कंपनी से कोई मदद नहीं मिलती। इलाज का खर्चा उठाना मुश्किल है। 

रतन मांझी (इन्होंने 40 साल तक UCIL में नौकरी की, अब बीमारी हो गई)

जादूगोड़ा में यूरेनियम माइंस की वजह से चाटीकोचा गांव में आदिवासियों का पूजास्थल भी संकट में है। दरअसल, एक टेलिंग्स पॉन्ड जाहेर थान के बिलकुल पास में बना है। भीम हांसदा बहुत बेबसी से बताते हैं कि उनका पूजा स्थल खतरे में है। भीम हांसदा कहते हैं कि इसे जाहिर स्थान बोलते हैं। यहां हमारे देवी देवता हैं। जब से गांव बसा हम पूजा करते हैं। सारा पेड़ मर चुका है। साल पेड़ हमारे लिए शुभ है जो रेडिएसन की वजह से खराब हो गया। रेडिएशन का दुष्प्रभाव है।

कंपनी कहती है कि पेड़ बूढ़े हो गये हैं। ये बेतुका तर्क है। टेलिंग पॉन्ड की दीवार पूजास्थल से सटी हुई है। क्रेक है। कभी भी धंस सकता है। हमारे पूजा स्थल का क्या हाल हो गया। पूजा स्थल संकट में है। इसे भी विस्थापित किया जाना चाहिए। 

संताल आदिवासियों का पूजास्थल भी संकट में है

यूसीआईएल इस बात से साफ इनकार करती है कि रसायनयुक्त कचरा या रेडिएशन ग्रामीणों में बीमारी का कारण है। कंपनी का तर्क है कि लोग गंदगी और कुपोषण की वजह से बीमार पड़ रहे हैं लेकिन गांव वालों का रहन सहन कंपनी के दावों से मेल नहीं खाता। इसके अलावा कंपनी ने गांव के मुहाने पर एक चेतावनी भरा बोर्ड लगाया है। जिसमें लिखा है कि टेलिंग पॉन्ड के ऊपर या आसपास टहलना हेल्थ के लिए ठीक नहीं है। अवांछित है।

ग्रामीण तर्क के साथ सवाल पूछते हैं कि यदि रेडिएशन नहीं है तो फिर कंपनी टेलिंग पॉन्ड के पास टहलने से मना क्यों करती है। हम अपनी गाय बकरियां कहां चरायेंगे।

टेलिंग पॉन्ड को लेकर चेतावनी वाला बोर्ड

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला में जादूगोड़ा, भाटिन, नरवापहाड़, बागजाता, बांदुहुरंगा, तुरामडीह और मोहुलडीह में यूरेनियम माइंस है। यहीं से यूरेनियम देशभर के न्यूक्लियर रियेक्टर में भेजा जाता है। पर स्थानीय लोग विस्थापन, पलायन और गंभीर बीमारियां झेल रहे हैं। 

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