Zeb Akhtar
12वीं सदी का समय, बिहार का रोहतास गढ़। सोन नदी की तराई। मर्दाना भेष, हाथों में तलवार, माथे पर पगड़ी और घोड़ों पर सवार आदिवासी उरांव महिलाओं की फौज और मुकाबला महिषासुर रूपी मुगलों की फौज से। सिनगी देई के शौर्य की कहानी यहीं शुरू होती है, जिनके हाथों में इस महिला फौज की कमान थी। उरांवों की लोककथा और लोकगीतों में ये लड़ाई औऱ राजकुमारी सिनगी देई के साहसिक कारनामे आज भी जिंदा है। भले ही इतिहास ने सिनगी दई, उनकी महिला फौज और मुगलों पर मिली 3 शानदार जीत को वो जगह ना दी हो लेकिन लोककथाओं में इन वीरांगनाओं की वीरता की कहानियां जिंदा हैं। कैसी रही होंगी सिनगी देई? कैसा रहा होगा उनका बचपन, कैसा रहा होगा वह शौर्य? द फॉलोअप की इस खास सीरीज में इसी सिनगी देई की वीरगाथा जानेंगे।
कौन थी सिनगी देई
गाहे बगाहे बिहार के रोहतास गढ़ का नाम इतिहास में आता रहता है। रूईदास इसी रोहतास गढ़ के राजा थे। उन्हीं की इकलौती बेटी थी सिनगी दई। राजा रुईदास के राजकाज और उनकी वैभव की चर्चा दूर दूर तक होती थी। बहरहाल, राजा रुईदास की बेटी सिनगी देई बचपन से ही चंचल और निडर थी। कुशाग्र बुद्धि वाली सिनगी दई शारीरिक रूप से काफी मजबूत थीं। राजा रूईदास भी राजकाज में बेटी की सलाह लिया करते। यह देख रानी कहतीं, खेलने-कूदने की उम्र में सिनगी को राजकाज में मत उलझाओ। राजा ने जवाब दिया, “महारानी आपको सिनगी की काबिलियत का अंदाजा नहीं है। मैं जानता हूं मेरी बेटी क्या कर सकती है।“
सिनगी की सहेली और उसकी राजदार कइली
सिनगी देई को बचपन से ही घुड़सवारी का शौक था। सेनापति की बेटी कइली उसकी दोस्त और राजदार, दोनों थीं। अक्सर दोनों सहेलियां लंबी घुड़सवारी के लिए निकल जाया करती थीं। साधारण आदमी यानी पुरुष की वेशभूषा में। घुड़सवारी के कई मकसद होते थे। जनता के सुख-दुख, उनकी जरूरतों की जानकारी लेना, राज्य की सीमा पर नजर कि कहीं से कोई घुसपैठिया न अंदर आ जाये। ऐसी बातों की जानकारी सिनगी देई चुपचाप लिया करती थी। सिनगी का यह अनुभव तब काम आया जब दिल्ली पर कब्जा कर चुकी मुगल सेना ने रोहतास गढ़ पर कब्जे के इरादे से हमला कर दिया।
पड़ोसी राजाओं ने मुगलों का साथ दिया
इस हमले में रोहतास गढ़ के पड़ोसी राजाओं ने भी मुगलों का साथ दिया। जिनमें चेरो, खेरवार और अन्य पड़ोसी राज्यों के राजा शामिल थे। इससे पहले भी कई बार ये पड़ोसी राजा रोहतास गढ़ को जीतने की नाकाम कोशिश कर चुके थे लेकिन, मुगलों के आने से उनका मनोबल फिर से बढ़ने लगा। इनको अब तक समझ में आ चुका था कि सीधी लड़ाई में राजा रुईदास को परास्त करना दिन में सपने देखने जैसा है। छल से काम लिया गया। इसी दौरान दुश्मन राजाओं को खबर मिली कि रोहतासगढ़ से लुन्दरी नाम की एक ग्वालिन दूध बेचने पड़ोसी राज्यों में जाया करती है। ग्वालिन को रोहतासगढ़ के बारे में स बकुछ पता था। दुश्मन राजाओं ने इस ग्वालिन के पीछे गुप्तचर लगा दिये। गुप्तचरों ने ग्वालिन को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। ग्वालिन उनको रोहतास गढ़ की खबरें देने लगी। एक दिन ग्वालिन ने उनको बताया, “उरांव समाज में हर साल “विशु सेन्दरा” त्योहार मनाया जाता है। और इस त्योहार में सभी पुरुष शिकार करने जंगल चले जाते हैं। ये त्योहार एक महीने चलता है। इसका मतलब था, एक महीने तक पूरे राज्य में सिर्फ महिलाएं ही होती हैं।”
ग्वालिन ने की दुश्मनों की मदद
दुश्मनों के लिए इतना जानना काफी था। इधर, विशु सेंदरा का त्योहार शुरू हुआ। उधर, दुश्मन राजाओं के हमले की तैयारी भी होने लगी लेकिन, उनसे एक गलती हो गयी। ग्वालिन ने उनको सिनगी देई के बारे में नहीं बताया था। सिनगी सचेत थी। राजा नहीं थे, तो सिनगी और भी ज्यादा चौकस थी। निश्चित दिन आने पर रोहतास गढ़ के सभी पुरुष राजा रुईदास के साथ विशु सेन्दरा के लिए निकल पड़े। पड़ोसी राजाओं ने पूरी ताकत से रोहतासगढ़ पर आक्रमण किया। सिनगी देई को हमले का पता चल गया। उसने अपनी सहेली कइली के साथ मिलकर महिला सेना तैयार की और दुश्मनों का मुकाबला किया। पुरुष वेष में लड़ रहीं महिला सैनिकों से दुश्मन पराजित होकर भाग खड़े हुए। कुछ दिनों बाद दुश्मनों ने फिर से रोहतासगढ़ में हमला बोला। इस बार भी उनको पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसा 3 बार हुआ। हार कर उन्होंने ग्वालिन लुन्दरी को पकड़ा और पूछा, “तुम तो कहती थी सभी पुरुष सेन्दरा त्यौहार में चले जाते हैं, पर पुरुष सैनिक तो थे। यह सुनते ही ग्वालिन हंस पड़ी और बोली, “वो पुरुष नहीं, महिला सैनिक थी, तुमलोग महिलाओं से हार गये।“
सिनगी की सेना पर चौथा आक्रमण
मुगल और दूसरे राजाओं को ग्वालिन की बातों पर यकीन नहीं हुआ। ग्वालिन ने कहा, “अगर आप लोगों को मेरी बात पर यकीन नहीं है तो अभी भी जाकर देख लीजिए। महिलाओं ने अभी सोन नदी नहीं पार की होगी। सोन पार करने के दौरान वे हाथ-मुंह धोयेंगी और अगर वे पुरुष हैं तो एक हाथ से चेहरा धोएंगी। अगर वे महिलाएं हैं तो दोनों हाथों से अपना चेहरा धोयेंगी।” यह सुनते ही राजाओं ने अपने गुप्तचरों को सोन नदी की ओऱ भेजा। पता चला कि ग्वालिन की बात सच थी। वे महिला फौज से हार गये हैं। वो भी 3 बार। उनको गुस्सा आया और उन्होंने चौथी बार आक्रमण की तैयारी की और सिनगी दई की सेना को ललकारा। इतने कम समय में चौथे हमले के बारे में सिनगी देई ने नहीं सोचा था। उसे राजा को भी इसकी सूचना देने का मौका नहीं मिला। इस बार सिनगी की सेना दुश्मनों का सामना नहीं कर पाई। हार लगभग तय थी।
इस तरह हुई जनी शिकार की शुरुआत
दुश्मन के हाथ लग जाना सिनगी देई के लिए और भी खऱाब होता। इसलिए उसने सभी महिलाओं को साथ लेकर गुप्त रास्ते से निकल जाना ही सही समझा। इस तरह सिनगी देई को अपना राज्य छोड़कर जाना पड़ा। सिनगी ने कुछ महिला और पुरुष सैनिकों को राजा के पास सेन्दरा स्थल की ओर सूचना देने भेजा। सैनिक भटक गए। जंगल में उरावं महिलाओं और पुरुषों के 2 समूह बन गये। इसी में से एक समूह भटकते हुए झारखंड के छोटानागपुर में प्रवेश कर गया और पिठरोरिया होते हुए रांची के सुतियांबे तक पहुंच गया। दूसरा समूह राजमहल की पहाड़ियों की ओर पहुंच गया। दोनों ही स्थानों पर करम पेड़ की छांव में उरावों को शरण मिली। इसलिए आज भी करम का पेड़ उरांवों के लिए आराध्य है। अंततः दुश्मन सिनगी देई को नहीं ढूंढ पाये। बहरहाल, वीरांगना सिनगी देई की याद में आज भी उरांव समाज “मुक्का सेन्दरा”यानी जनी शिकार का आयोजन करता है। यह मुक्का सेन्दरा प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार किया जाता है और इसमें सिनगी दई को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है। इसमें कोई दोराय नहीं कि सिनगी देई जैसा महिलाएं मां दुर्गे की शक्ति का प्रतीक और पर्याय दोनों हैं। आज जरूरत इनके शौर्य और पराक्रम को समझने की है।
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