द फॉलोअप डेस्क
झारखंड प्रदेश भाजपा को अध्यक्ष मिलने में अभी और विलंब होगा। हालांकि प्रदेश में संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। लेकिन अब प्रदेश में संगठनात्मक चुनाव कोई मतलब मायने नहीं रखता। पार्टी हाईकमान जिसको मनोनीत करता है, वह प्रदेश अध्यक्ष बनता है। मंडल, जिला व अन्य कमेटियों की प्रदेश अध्यक्ष के चयन में कहीं कोई सीधी भूमिका नहीं रह गयी है। प्रदेश अध्यक्ष का मनोनयन नहीं होने से प्रदेश पदाधिकारियों के चयन का सवाल ही समाप्त हो जाता है। परिणामस्वरूप प्रदेश भाजपा के कई दिग्गज नेता बेकाम के हो गए हैं। संगठन की जिम्मेदारी से खुद भी अपने को लगभग दूर कर लिया है।
झारखंड भाजपा में बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और चंपाई सोरेन को फिलहाल बड़े नेताओं में गिना जाता है। चारो के चारो झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा कई महत्वपूर्ण पदों को भी सुशोभित किया है। बाबूलाल मरांडी वर्तमान में प्रतिपक्ष के नेता भी हैं। रघुवर दास उड़ीसा के राज्यपाल रह चुके हैं। अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। लेकिन प्रदेश में कुछ नेता काफी सक्रिय हैं तो कुछ अपने को सीमित दायरे में कर लिया है।
वर्तमान में प्रतिपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन काफी सक्रिय दिख रहे हैं। लेकिन उड़ीसा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद से रघुवर दास किसी नयी जिम्मेदारी की आस में समय काट रहे हैं। बीच बीच में किसी पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर या राज्य से जुड़े किसी मुद्दे पर बयान देकर अपनी जिम्मेदारी का इतिश्री मान रहे हैं। लगभग यही स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की भी है। वह भी इक्के दुक्के सार्वजनिक कार्यक्रमों में ही शामिल हो रहे हैं। प्रदेश में पार्टी के संगठनात्मक कार्यक्रमों से दूर दूर दिखते हैं। पिछले दिनों रांची में संपन्न पाकिस्तानी भारत छोड़ो कार्यक्रम में भी दोनों ही नेता नहीं दिखे।
बाबूलाल और चंपाई की मुलाकात की चर्चा
इधर प्रतिपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी की चंपाई सोरेन के आवास पर जाकर मुलाकात को पार्टी हलके में चर्चा का विषय बन रही है। आधिकारिक रूप से दोनों नेताओं ने मुलाकात का कारण नहीं बताया है। लेकिन मुलाकात के कई मायने निकाले जाने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश भाजपा के चारो पूर्व मुख्यमंत्री अलग अलग ध्रुव के माने जाते रहे हैं। लेकिन समय समय पर गठबंधन और समर्थन का खेल भी होता रहा है। अब चंपाई सोरेन से बाबूलाल मरांडी की मुलाकात भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है।