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संकट : दुमका के सिदपहाड़ी गांव में पेयजल की घोर किल्लत, 3 किमी दूर जाकर पानी लाते हैं ग्रामीण

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दुमका: 

दुमका के कई गांवों में पेयजल की घोर किल्लत है। ये तस्वीर दुमका जिला के गोपीकांदर प्रखंड के टायंजोड़ पंचायत अंतर्गत पहाड़िया जनजाति बहुल सिदपहाड़ी गांव की है। तकरीबन 50 परिवार वाले इस गांव में पेयजल का एकमात्र साधन यही एक कुआं है। दलदली जमीन के बीच बने इस कुएं में भूमिगत जल का स्तर काफी कम है। ग्रामीण रोज सुबह तसला, बाल्टी और प्लास्टिक का डब्बा लेकर कुएं के पास पहुंचते हैं और पानी की एक-एक बूंद के लिए कड़ी मशक्कत करते हैं। 

पेयजल का एकमात्र साधन कुआं 3 किमी दूर
गांव वालों के लिए पेयजल का एकमात्र साधन ये कुआं गांव से 2 किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुंचना हो तो कच्ची पगडंडी और पथरीले रास्ते से होकर जाना पड़ता है। बड़े-बड़े तसलों, बाल्टियों को गांव की महिलायें और पुरुष बहंगी के सहारे ढोते हैं। चूंकि रास्ता पथरीला और फिसलन भरा है तो दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। हालांकि, गांव वालों के पास कोई औऱ चारा भी नहीं है।

गांव में कहने को तो 2 चापाकल हैं लेकिन बीते कई वर्षों से खराब पड़े हैं। कई बार मांग की लेकिन मरम्मत नहीं करवाया गया। गांव के महिला, पुरुष और बच्चे रोजाना पेयजल के लिए इस जंगली पथरीले रास्ते से गुजरते हैं। पेयजल की सुविधा के अभाव की वजह से ग्रामीणों में काफी आक्रोश है। वे व्यवस्था से खासे नाराज हैं। 

पानी लाने के लिए करनी पड़ती है खासी मशक्कत
द फॉलोअप संवाददाता से ग्रामीणों ने बताया कि पेयजल के लिए उनको पहाड़ से नीचे चिरापाथर गांव या रोलडीह गांव जाकर पानी लाना पड़ता है। सिदपहाड़ी गांव से चिरापाथर की दूरी 3 किमी है तो वहीं रोलडीह गांव की दूरी 2 किमी है। इतनी भीषण गर्मी में पानी लाने में ग्रामीणों को चिलचिलाती धूप, पथरीला रास्ता और दुर्गम जंगल का सामना करना पड़ता है। चूंकि रास्ता पथरीला और फिसलन भरा है तो कई बार पानी की बर्तन गिर जाता है। लोगों को गंभीर चोट भी लगती है।

 

जनप्रतिनिधि और प्रशासन से नाराज हैं ग्रामीण
गांव के प्रधान टोला में सात महीने पहले डीप बोरिंग की गई थी लेकिन अभी तक जलमीनार नहीं बना। ग्रामीण प्रशासनिक उदासीनता की वजह से नाराज हैं। ग्रामीणों की शिकायत है कि ना तो सरकार का नुमाइंदा और ना ही प्रशासनिक अधिकारी उनकी बात सुनते हैं।

गांव वालों का कहना है कि अभी पीने की पानी की शिकायत है। कुछ दिनों बाद जब बारिश शुरू हो जायेगी तो जंगल वाला रास्ता कीचड़युक्त और दलदली हो जायेगा। ढलाने पर फिसलने का खतरा भी है।