द फॉलोअप डेस्क
वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली 70 से अधिक याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश कीं, जबकि केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने एक तीखा सवाल उठाया। जब याचिकाकर्ताओं की ओर से वक्फ बोर्ड की संरचना और उसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों की संभावित भूमिका को लेकर चिंता जताई गई, तो चीफ जस्टिस ने केंद्र के वकील से पूछा, "क्या आप यह कह सकते हैं कि अब हिंदू धार्मिक संस्थाओं में मुस्लिमों को भी शामिल किया जाएगा? क्या वे उन संस्थाओं का हिस्सा बन सकेंगे?" मुख्य न्यायाधीश ने आग्रह किया कि इसका उत्तर स्पष्ट शब्दों में दिया जाए।
इसके अलावा अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों का निपटारा अदालतों के बजाय कलेक्टर जैसे कार्यकारी अधिकारियों को क्यों सौंपा गया है। चीफ जस्टिस ने कहा, "विवादों का समाधान न्यायिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।" जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन पहले भी अनिवार्य था और अब संशोधित कानून में यह प्रावधान और स्पष्ट किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि कोई मुतवल्ली रजिस्ट्रेशन से बचता है, तभी उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
कपिल सिब्बल ने यह सवाल भी उठाया कि नए कानून में वक्फ बोर्ड की संरचना में मुसलमानों की संख्या कम क्यों कर दी गई है। उन्होंने कहा कि "अब बोर्ड में 22 में से केवल 10 सदस्य ही मुस्लिम होंगे, जो संविधान के अनुच्छेद 26 में प्रदत्त धार्मिक स्वायत्तता के अधिकार का उल्लंघन है।"
केंद्र की ओर से यह भी दलील दी गई कि नया कानून मुस्लिम समुदाय को यह विकल्प देता है कि वे चाहें तो वक्फ बोर्ड के स्थान पर ट्रस्ट का गठन भी कर सकते हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने माना कि कानून में कुछ सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन कई बिंदु ऐसे हैं, जिन पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। अंत में अदालत ने संकेत दिया कि इन याचिकाओं की प्रारंभिक सुनवाई के लिए किसी उच्च न्यायालय को जिम्मा सौंपा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट तभी कोई ठोस निर्णय लेगा जब हाई कोर्ट इस पर अपना मत दे देगा।