द फॉलोअप डेस्क
चार युद्ध, आतंकवाद की कई घटनाएं और भारत-पाक के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी के बावजूद कायम रही सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को भारत ने पहली बार औपचारिक रूप से निलंबित (suspended) कर दिया है। यह फैसला ऐसे वक्त आया है जब पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए गए हमले में 26 पर्यटकों की जान गई।
सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान पर गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि इसकी कृषि, ऊर्जा और पीने के पानी की आपूर्ति बड़ी हद तक सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। संधि के तहत पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब—का लगभग 84% पानी मिलता है, जो देश की सिंचाई और जल विद्युत परियोजनाओं के लिए आवश्यक है। यदि भारत इस पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है या नई जल परियोजनाएं शुरू करता है, तो पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है, जिससे कृषि उत्पादन, बिजली आपूर्ति और घरेलू उपयोग प्रभावित हो सकते हैं।
इसके अलावा, पाकिस्तान के लिए यह निर्णय कूटनीतिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण है। संधि में कोई स्पष्ट 'एक्जिट क्लॉज' नहीं है, जिससे पाकिस्तान के पास अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सीमित विकल्प रह जाते हैं। पूर्व में पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने कहा था कि यदि भारत संधि को रद्द करता है, तो इसे 'युद्ध की कार्रवाई' माना जा सकता है। इसलिए, भारत का यह कदम पाकिस्तान के लिए न केवल जल संकट बल्कि कूटनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों को भी बढ़ा सकता है।
हालांकि भारत ने सिंधु जल संधि को “तत्काल प्रभाव से निलंबित” कर दिया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर पाकिस्तान का पानी तत्काल रोक पाना अभी मुमकिन नहीं है। The Indian Express से बातचीत में सिंधु जल मामलों के पूर्व भारतीय आयुक्त पी. के. सक्सेना ने साफ कहा था कि भारत के पास अभी वह इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है जिससे वह पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब—का प्रवाह रोक सके या उसे पूरी तरह अपने उपयोग में ला सके। इन नदियों का बहाव ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों से सीधे पाकिस्तान की ओर होता है और इन पर भारत के पास फिलहाल केवल “run-of-the-river” परियोजनाएं हैं, जिनमें पानी जमा नहीं किया जा सकता।
BBC और Down To Earth जैसी स्रोतों के अनुसार, अगर भारत इस दिशा में कोई गंभीर जल परियोजना शुरू भी करता है—जैसे बड़े जलाशय, बैराज या डाइवर्ज़न टनल—तो उसे पूरा होने में 5 से 10 साल तक का वक्त लग सकता है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ पर्यावरणीय मंजूरी, धन और तकनीकी स्थायित्व की ज़रूरत होगी। उदाहरण के तौर पर, किशनगंगा और रतले परियोजनाओं को ही वर्षों की प्रक्रिया के बाद तैयार किया गया है। यानी भारत के इस कदम का रणनीतिक असर तात्कालिक रूप से पाकिस्तान को घेरने जैसा है, लेकिन जल-प्रवाह पर व्यावहारिक नियंत्रण फिलहाल एक दीर्घकालिक योजना ही बन सकती है।
सिंधु जल संधि क्या है?
1960 में कराची में भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि 9 वर्षों की बातचीत के बाद हुई थी। इसके तहत:
पूर्वी नदियाँ – सतलुज, ब्यास और रावी – भारत के अप्रतिबंधित उपयोग में दी गईं।
पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब – पाकिस्तान को मिलीं, लेकिन भारत को सीमित उपयोग की अनुमति है।
इस संधि में 12 अनुच्छेद और 8 परिशिष्ट (A से H) शामिल हैं।
भारत के फैसले की अहमियत क्या है?
इस निलंबन के बाद भारत के पास नदी जलों के उपयोग को लेकर अधिक विकल्प होंगे:
• पाकिस्तान को जल प्रवाह से जुड़ा कोई डेटा साझा नहीं किया जाएगा।
• भारत को अपने हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के डिज़ाइन या संचालन में किसी अंतरराष्ट्रीय अनुमति की जरूरत नहीं होगी।
• पश्चिमी नदियों पर जलाशय बनाए जा सकते हैं।
• किशनगंगा और रतले प्रोजेक्ट्स पर पाकिस्तानी अफसरों के निरीक्षण पर रोक लग सकती है।
• भारत, किशनगंगा पर reservoir flushing कर सकता है, जिससे डैम की उम्र बढ़ेगी।
हालांकि अभी कुछ वर्षों तक पाकिस्तान को मिलने वाले पानी के प्रवाह पर तात्कालिक असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत के पास फिलहाल पूरी जलधारा रोकने या मोड़ने का जरूरी ढांचा नहीं है।
सिंधु जल संधि में कोई एग्जिट क्लॉज नहीं है। इसका मतलब है कि न तो भारत और न ही पाकिस्तान कानूनी रूप से इसे एकतरफा रद्द कर सकते हैं। इस संधि की कोई एंड डेट भी नहीं है और इसमें किसी भी संशोधन के लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है।
संधि से एकतरफा बाहर नहीं निकल सकते
भले ही इस संधि से एकतरफा बाहर नहीं निकला जा सकता, फिर भी इसमें किसी भी तरह के विवाद के समाधान का नियम मौजूद है। अनुच्छेद IX, एनेक्सर F और G के साथ, कोई भी पक्ष एक तय प्रोसेस के तहत अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। वो शिकायत सबसे पहले स्थायी सिंधु कमिशन के सामने, फिर एक न्यूट्रल एक्सपर्ट के सामने और आखिरकार एक आर्बिट्रेटर फोरम के सामने रखी जा सकती है। पाकिस्तान ने भारत के सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है। हालांकि, पाकिस्तान के सूत्रों का कहना है कि सिंधु जल संधि के निलंबन से संभावित पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं पैदा होती हैं। सिंधु नदी सिस्टम में पानी का फ्लो कम होने से इकोसिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है।